बोकारो, सीपी सिंह : 19 जून को झारखंड में मॉनसून का आगमन हुआ था, लेकिन अब तक जमकर बदरा नहीं बरसे हैं. नतीजतन खेत सूखे नजर आ रहे हैं. जिन खेतों में धन रोपनी के लिए हल चलाये गये थे, वहां अब घास उगने लगी है. अब तक जिले में 400.1 मिमी बारिश हो जानी चाहिए थी, लेकिन सिर्फ 200.7 मिमी बारिश ही हो सकी है. मौसम की बेरुखी शुरू से ही देखी जा रही है. इस साल सही तरीके से प्री-माॅनसून की बारिश भी नहीं हुई. मौसम विभाग की रिपोर्ट बताती है कि जून के पहले व दूसरे सप्ताह में 99 प्रतिशत कम बारिश हुई. तीसरे सप्ताह में 86 प्रतिशत कम बारिश हुई. लेकिन इसके अगले सप्ताह में यानी 21 से 28 जून तक बारिश सामान्य हुई. लगा कि इस साल माॅनूसन की बारिश पिछले साल की सुखाड़ को कम करेगी. लेकिन मौसम का मिजाज बदल गया. जुलाई के प्रथम सप्ताह में 22 प्रतिशत, दूसरे सप्ताह में 76 प्रतिशत, तीसरे सप्ताह में 52 प्रतिशत व अंतिम सप्ताह में अबतक 33 प्रतिशत कम बारिश हुई है.
जैसे-तैसे बिचड़ा लगाया, अब रोपनी से कतरा रहे
प्री-माॅनसून की बारिश नहीं होने के बाद भी किसानों ने जैसे-तैसे बिचड़ा तो लगाया था, लेकिन अब रोपनी करने से कतरा रहे हैं. अब तक जिला में कहीं से भी रोपनी की सूचना नहीं है. जिला में 33 हजार हेक्टेयर में धान की खेती का लक्ष्य है. चास में 7592, चंदनकियारी में 5228, जरीडीह में 2468, कसमार में 2203, पेटरवार में 3262, गोमिया में 4964, बेरमो में 641, नावाडीह में 3387 व चंद्रपुरा प्रखंड में 3255 हेक्टेयर भूमि पर धान खेती का लक्ष्य निर्धारित है. लेकिन कहीं भी रोपनी की शुरुआत नहीं हुई है.
क्या कहना है विशेषज्ञों का
कृषि पदाधिकारी उमेश तिर्की ने बताया कि विभाग मौसम पर नजर बनाये हुए है. अगले एक सप्ताह में अगर मौसम ने साथ दिया तो खेती हो जायेगी वरना स्थिति कुछ और होगी. आठ दिन तक मौसम का हाल देखने के बाद ही विभाग कुछ फैसला लेगा. भू-गर्भ शास्त्री नीतीश प्रियदर्शी की मानें तो धान की बुवाई का अनुकूल समय एक जुलाई से 20 जुलाई तक होता है. पिछले कुछ वर्षों में देरी से मानसून आने या फिर कम बारिश होने की वजह से कई किसान अगस्त के मध्य तक फसल की बुवाई करते हैं, लेकिन इससे अच्छी फसल नहीं होती है.
कृषि वैज्ञानिक अनिल कुमार की मानें तो पानी का कोई विकल्प नहीं है. धान मुख्य फसल है और इसकी खेती के लिए पानी प्रचुर मात्रा में चाहिए. लेकिन माॅनसून का साथ नहीं मिलने से किसानों को परेशानी हो रही है. इससे निबटने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने की जरूरत है. बारिश की स्थिति को देखते हुए अब बूंदा विधि से धान की खेती करने की जरूरत है. इतना ही नहीं, बोकारो की अनुकूलता के अनुसार मोटे अनाज की खेती जैसे मड़ुआ, बाजरा, मक्का की खेती भी बेहतर विकल्प है.
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2022 में भी सूखाग्रस्त था बोकारो
मानसून का सितम बोकारो में पिछले साल भी देखने को मिला था. 2022 में जिला में 68 प्रतिशत से कम खेती हुई थी. चास, चंद्रपुरा व चंदनकियारी को छोड़ अन्य सभी छह प्रखंड को सूखाग्रस्त घोषित किया गया था. इसका असर धान खरीद में भी देखने को मिला था. 1.80 लाख क्विंटल धान खरीद के लक्ष्य के विरुद्ध सिर्फ 40939.57 क्विंटल धान की खरीद हो पायी थी. इससे पहले भी कई साल जिला सूखाग्रस्त घोषित हुआ है. बड़ी बात यह कि सूखाग्रस्त होने के नाम पर किसानों को आर्थिक मदद तो मिलती है, लेकिन माॅनसून पर निर्भरता को कम करने की कोशिश या विकल्प बनाने की कोशिश बड़े स्तर पर नहीं होती है.
विभाग मौसम पर नजर बनाये हुए है. अगले एक सप्ताह में अगर मौसम ने साथ दिया तो खेती हो जायेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ तो स्थिति कुछ और होगी.आठ दिन तक मौसम का हाल देखने के बाद भी विभाग कुछ फैसला लेगा. कृषकों से लगातार संपर्क स्थापित किया जा रहा है.
-उमेश तिर्की, कृषि पदाधिकारी
प्रखंडवार धान की खेती का लक्ष्य (हेक्टेयर में)
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प्रखंड लक्ष्य रोपनी
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चास 7592 00
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चंदनकियारी 5228 00
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जरीडीह 2468 00
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कसमार 2203 00
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पेटरवार 3262 00
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गोमिया 4964 00
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बेरमो 641 00
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नावाडीह 3387 00
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चंद्रपुरा 3255 00