Agriculture : कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी ने शुक्रवार को एक सम्मेलन में कहा कि यदि सरकार बड़ी सब्सिडी जारी रखती है, तो मांग को पूरा करने के लिए सरकार को 2030 तक 8-10 मिलियन टन दालों का आयात करना पड़ सकता है. गुलाटी किसानों को दालों की खेती के लिए प्रोत्साहित करने के महत्व पर जोर देते हैं, क्योंकि उन्हें चावल की तुलना में कम पानी की आवश्यकता होती है और उनका पोषण मूल्य अधिक होता है.
आयात करने को हो सकते हैं मजबूर
CACP के पूर्व प्रमुख गुलाटी ने किसानों को दालों और तिलहनों की खेती के लिए प्रोत्साहित करने के लिए एक उचित पुरस्कार प्रणाली लागू करने के महत्व पर जोर दिया. उनका मानना है कि यह भारत को इन फसलों में आत्मनिर्भरता हासिल करने में मदद करने के लिए जरूरी है. गुलाटी ने कहा कि अगर सरकार अपनी नीतियों में कुछ बदलाव नहीं करती है तो भारत को 2030 तक 80-100 लाख टन दालों का आयात करना पड़ सकता है.
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कॉन्फ्रेंस में उठा दाल का मुद्दा
इंडिया पल्सेस एंड ग्रेन्स एसोसिएशन की तरफ से आयोजित एक प्कॉन्फ्रेंस के दौरान गुलाटी ने प्रस्ताव दिया कि नीतिगत बदलावों से भारत को दालों में आत्मनिर्भरता हासिल करने में मदद मिल सकती है. आईपीजीए के अध्यक्ष बिमल कोठारी ने कहा कि भारत में दालों का सालाना उत्पादन 240-250 लाख टन होने के बावजूद आयात बढ़कर 47 लाख टन हो गया है. गुलाटी ने 2030 तक 400 लाख टन की अनुमानित मांग को पूरा करने के लिए धान की खेती के समान दलहन और तिलहन के लिए सब्सिडी प्रदान करने वाली सरकारी नीतियों के महत्व पर बल दिया.
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