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19 सालों में ₹30 से ₹120 की हुई आम आदमी की थाली, जानें कैसे बढ़ती गई महंगाई

Inflation :आम आदमी के लिए पांच आवश्यक चीजें हैं. इनमें रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा और स्वास्थ्य शामिल हैं. इन पांच आवश्यक चीजों में सबसे अहम भोजन है. भोजन माने रोटी. मगर, आपको यह जानकर हैरानी होगी कि पिछले 19 सालों में महंगाई सुरसा के मुंह की तरह काफी बढ़ गई. इसी का नतीजा है कि पिछले 19 साल के दौरान एक थाली भोजन की कीमत में करीब 400% की बढ़ोतरी हो गई. आइए, विस्तार से जानते हैं कि पिछले 19 सालों के दौरान कितनी सरकारें बदलीं और उन सरकारों के कार्यकाल में आम आदमी की थाली कितनी महंगी होती चली गई

Inflation: 2005 से 2024 के बीच भारत में भोजन की लागत में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है. यह वृद्धि न केवल खाद्य मुद्रास्फीति के कारण हुई, बल्कि इसमें प्राकृतिक आपदाओं, अंतरराष्ट्रीय आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान और महामारी जैसे कई कारकों का योगदान रहा. इस अवधि में गेहूं, चावल, दाल और सब्जियों जैसी आवश्यक वस्तुएं गरीब और मध्यम वर्ग के लिए महंगी होती चली गईं. इस लेख में हम भारत में बढ़ती खाद्य कीमतों के पीछे के कारणों, प्रभावों और समाधानों का विश्लेषण करेंगे. साथ ही, विशेषज्ञ की राय से समझेंगे कि इस समस्या का हल कैसे निकाला जा सकता है.

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कीमतों में बदलाव का तुलनात्मक विश्लेषण 2005 बनाम 2024

2005-2010: महंगाई का आरंभ

2005 के बाद से भारत में खाद्य कीमतों में तेजी देखी गई. इस अवधि में चावल, दाल, और खाद्य तेल जैसी आवश्यक वस्तुएं महंगी होने लगीं.

मुख्य कारण: 

  • उत्पादन में गिरावट और बढ़ती मांग
  • वैश्विक आर्थिक संकट
  • कमजोर खाद्य आपूर्ति श्रृंखला.

आंकड़े:  

  • चावल: ₹10-12 प्रति किलोग्राम (2005) से ₹20-25 प्रति किलोग्राम (2010)
  • दाल: ₹30-40 प्रति किलोग्राम से ₹70-80 प्रति किलोग्राम.

इन बढ़ती कीमतों ने गरीब और मध्यम वर्ग की क्रय शक्ति को सीमित किया.

2010-2015: उच्च मुद्रास्फीति का दौर

यह समय महंगाई के चरम का था. प्याज, टमाटर और अन्य सब्जियों की कीमतों ने आम आदमी की जेब पर भारी असर डाला.

मुख्य घटनाएं: 

  • उत्पादन और आपूर्ति में अस्थिरता
  • अंतरराष्ट्रीय कीमतों का प्रभाव.

आंकड़े:  

  • चावल: ₹35-40 प्रति किलोग्राम (2015) 
  • दाल: ₹100-120 प्रति किलोग्राम.

प्रभाव:  

  • गरीब और मध्यम वर्ग के लिए पोषण का संकट
  • शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में समान रूप से महंगाई का प्रभाव.

विशेषज्ञों का कहना था कि इस दौर में सरकार को अधिक संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता थी.

2015-2020: स्थिरता की कोशिश

2015 के बाद सरकार ने खाद्य महंगाई को नियंत्रित करने के लिए कई योजनाएं लागू कीं, जैसे प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना. हालांकि, महंगाई पूरी तरह से नियंत्रण में नहीं आ सकी.

आंकड़े: 

  • गेहूं: ₹20-25 (2015) से ₹30-35 प्रति किलोग्राम (2020).
  • दाल: ₹120-140 प्रति किलोग्राम.

चुनौतियां:  

  • प्राकृतिक आपदाएं
  • उर्वरक लागत में वृद्धि
  • कृषि आयात पर निर्भरता.

यहां सरकार की प्राथमिकता खाद्य आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करने पर थी.

2020-2024: कोविड-19 और वैश्विक संकट का प्रभाव

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A healthcare worker checks the temperature of a woman inside her hut during a coronavirus disease vaccination drive for workers at a brick kiln in Kavitha village.

कोविड-19 महामारी ने भारत की खाद्य अर्थव्यवस्था को गंभीर झटका दिया. आपूर्ति श्रृंखला बाधित होने से खाद्य वस्तुओं की कीमतों में तेज उछाल आया.

आंकड़े: 

  • चावल: ₹50-60 (2020) से ₹70-80 प्रति किलोग्राम (2024)
  • दाल: ₹150-200 प्रति किलोग्राम
  • प्याज: ₹100 प्रति किलोग्राम.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस दौरान कहा, “महंगाई को नियंत्रित करना हमारी प्राथमिकता है, और इसके लिए हम दीर्घकालिक रणनीतियों पर काम कर रहे हैं.”

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15 अगस्त 2023 ,प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लाल किला से भाषण देते हुए

कुल वृद्धि (2005-2024)

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कीमतों में बदलाव का तुलनात्मक विश्लेषण 2005 बनाम 2024

प्रमुख घटक: चावल, दाल, सब्जी, तेल, और एलपीजी.

महंगाई का प्रभाव:

गरीब और मध्यम वर्ग पर असर:  महंगाई ने गरीब वर्ग की क्रय शक्ति को कमजोर किया, जिससे संतुलित आहार तक पहुंच कठिन हो गई.

पोषण की कमी:  महंगे भोजन ने पोषण को दुर्लभ बना दिया, जिससे बच्चों और महिलाओं में कुपोषण की समस्या बढ़ी.

शहरी-ग्रामीण असमानता:  ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति अधिक गंभीर रही, जहां आमदनी कम और खाद्य कीमतें अधिक थीं.

सरकार के कदम

  • प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना: गरीबों को मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध कराना.
  • उर्वरक और बीज पर सब्सिडी:  किसानों को राहत देने के लिए.
  • खाद्य आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करना: लॉजिस्टिक्स और कोल्ड स्टोरेज इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार.

महंगाई कैसे बढ़ती-घटती है

महंगाई का बढ़ना और घटना प्रोडक्ट की डिमांड और सप्लाई पर निर्भर करता है. जब लोगों के पास अधिक पैसे होते हैं, तो वे ज्यादा चीजें खरीदते हैं. इसका परिणाम यह होता है कि चीजों की डिमांड बढ़ जाती है, और अगर सप्लाई उस डिमांड के हिसाब से नहीं होती, तो कीमतों में वृद्धि हो जाती है. इस तरह से बाजार महंगाई का सामना करता है. सरल शब्दों में कहें तो, बाजार में पैसे का अत्यधिक प्रवाह या चीजों की कमी महंगाई का कारण बनता है. वहीं, अगर डिमांड कम हो और सप्लाई अधिक हो, तो महंगाई घट सकती है.

महंगाई को मापने तरीका

महंगाई को मापने का एक प्रमुख तरीका है कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI). यह उन कीमतों के बदलाव को दर्शाता है, जो हम रिटेल बाजार से सामान और सेवाओं को खरीदते समय अनुभव करते हैं. CPI हमारे द्वारा चुकाए गए औसत मूल्य को मापता है.

इसके अलावा, कच्चे तेल, कमोडिटी की कीमतें, और उत्पादन लागत जैसे अन्य कारक भी महंगाई दर को प्रभावित करते हैं. रिटेल महंगाई की दर तय करने के लिए करीब 300 उत्पादों की कीमतों को ध्यान में रखा जाता है.

विशेषज्ञ की राय

“खाद्य वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि केवल आपूर्ति की समस्या नहीं है, बल्कि यह मांग और वितरण प्रणाली की असफलताओं का नतीजा है.” — डॉ. सुरेश मेहता, कृषि विशेषज्ञ

आगे की राह

  • खाद्य उत्पादन में वृद्धि: उन्नत तकनीक और कृषि सुधारों के माध्यम से.
  • स्थानीय आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करना: ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच बेहतर तालमेल
  •  प्रभावी नीतियां: स्थायी और दीर्घकालिक समाधान के लिए

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