New Government Challenge: 18वीं लोकसभा के चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है. हालांकि, घटक दलों को मिलाकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को बहुमत मिल गया है, लेकिन भाजपा को घटक दलों पर निर्भर रहने की वजह से नई सरकार को जमीन और श्रम के साथ-साथ प्रमुख आर्थिक सुधार करने चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. देश-विदेश के अर्थशास्त्रियों और रेटिंग एजेंसियों ने इस बात की आशंका जताई है कि भाजपा को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने की वजह से उसे सरकार बनाने के लिए एनडीए के घटक दलों पर निर्भर रहना पड़ेगा. ऐसी स्थिति में जब कभी भी सरकार बड़े आर्थिक सुधार करने की दिशा में कदम बढ़ाएगी, तो उसके सामने कड़ी चुनौती आ सकती है और उसे कदम उठाने से पहले गठबंधन के घटक दलों को मान-मनौव्व्ल करना पड़ेगा.
घटक दलों पर बढ़ेगी सरकार की निर्भरता
मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नीत भाजपा ने 2014 के आम चुनाव के बाद 2024 के चुनाव में पहली बार अपना बहुमत खो दिया है. वह 543 सीटों वाली लोकसभा में से सिर्फ 240 सीट पर ही जीत हासिल कर पाई है. ऐसे में वह एनडीए के घटक दलों के साथ मिलकर तीसरी बार सरकार बनाने की योजना बना रही है. एनडीए के घटक दलों के 52 सीट मिलाकर 292 के आंकड़े हासिल हो जाते हैं. इस संख्या बल के आधार पर नरेंद्र मोदी तीसरी बार सरकार बनाने में सफल तो हो जाएंगे, लेकिन सरकार की निर्भरता घटक दलों पर बढ़ जाएगी. ऐसी ही स्थिति में सरकार को चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है.
घटक दलों से घटेगी सरकार की ताकत
रेटिंग एजेंसी फिच की ओर से जारी किए गए एक बयान के अनुसार, भाजपा नीत एनडीए तीसरी बार सरकार बनाएगी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीसरी बार सत्तारूढ़ होंगे, लेकिन भाजपा के कमजोर बहुमत की वजह से घटक दल सरकार के महत्वाकांक्षी सुधारवादी एजेंडे में चुनौतियां खड़ी कर सकते हैं. रेटिंग एजेंसी ने कहा है कि चूंकि, भाजपा पूर्ण बहुमत से चूक गई है और उसे अपने घटक दलों पर अधिक निर्भर रहना होगा. इसलिए विवादास्पद सुधारों को पारित करना अधिक चुनौतीपूर्ण हो सकता है. खासकर जमीन और श्रम के संबंध में सुधार करने में सरकार की ताकत घट जाएगी. इन्हें हाल ही में भाजपा ने भारत की विनिर्माण प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने के लिए प्राथमिकता के रूप में चिह्नित किया है.
आर्थिक नीतियों में बड़े बदलाव की संभावना नहीं
वहीं, घरेलू ब्रोकरेज फर्म एम्के के अनुसार, इस बात की संभावना अधिक है कि नरेंद्र मोदी तीसरे कार्यकाल के लिए प्रधानमंत्री के रूप में वापस आएंगे. हालांकि, उन्हें शासन में बदली हुई परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा. इस तरह की परिस्थिति में आर्थिक नीतियों में बड़े बदलाव की संभावना नहीं है. इसके अलावा, स्विस ब्रोकरेज फर्म यूबीएस के विश्लेषकों ने उम्मीद जताई कि नई सरकार विनिर्माण, नियामकीय प्रक्रियाओं को सरल बनाने, श्रम सुधारों को लागू करने, कौशल विकास और रोजगार के अवसर पैदा करने सहित आपूर्ति-पक्ष के सुधारों को आगे बढ़ाने का काम करेगी. उसने कहा कि भूमि सुधार, बुनियादी ढांचे पर खर्च को बढ़ावा देना, विनिवेश, कृषि विधेयक, समान नागरिक संहिता और पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने जैसे कठोर सुधारों को लागू करना सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण होगा.
दूरगामी सुधारों में हो सकती है देर
उधर, मूडीज रेटिंग्स ने कहा है कि एनडीए को 18वीं लोकसभा में मामूली बहुमत मिलने से दूरगामी आर्थिक और राजकोषीय सुधारों में देरी हो सकती है. इससे राजकोषीय समेकन की दिशा में प्रगति बाधित हो सकती है. मूडीज ने कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि नीतिगत निरंतरता खासकर बुनियादी ढांचे पर खर्च तथा घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने पर बजटीय जोर के संबंध में मजबूत आर्थिक वृद्धि को समर्थन प्रदान करेगी.
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2023-24 से 2025-26 जीडीपी वृद्धि सात फीसदी
मूडीज ने आगे कहा कि भारत की आर्थिक ताकत को लेकर हमारा अनुमान है कि वित्त वर्ष 2023-24 से 2025-26 के बीच वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर करीब सात फीसदी रहेगी. उसका अनुमान है कि वित्त वर्ष 2025-26 तक भारत जी-20 में अन्य सभी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अधिक तेजी से बढ़ेगा, लेकिन निकट अवधि की आर्थिक गति संरचनात्मक कमजोरियों को छिपाती है, जो दीर्घकालिक संभावित वृद्धि के लिए जोखिम उत्पन्न करती है.
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