नई दिल्ली : ऑयल बॉन्ड को लेकर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पूरे गुस्से में हैं और वे इसे लेकर पूर्ववर्ती संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार पर हमलावर बनी हुई हैं. शुक्रवार को भी जब वे केंद्रीय बजट 2023 की चर्चा का जवाब राज्यसभा में दे रही थीं, तब उन्होंने ऑयल बॉन्ड को लेकर यूपीए सरकार की खिंचाई की और कांग्रेस पर आरोप लगाए. राज्यसभा में उन्होंने कांग्रेस नीत वाली यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान जारी किए गए ऑयल बॉन्ड को ‘ट्रिकी’ करार देते हुए कहा कि वर्तमान सरकार पूर्ववर्ती यूपीए सरकार द्वारा डाले गए बोझ का भुगतान कर रही है.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि ऑयल बॉन्ड चालाकी है, क्योंकि यदि आप बोझ को कम करने के लिए सब्सिडी देना चाहते थे, तो यूपीए सरकार उत्पाद शुल्क में कटौती कर सकती थी, जैसा हमने किया. लेकिन, पूर्ववर्ती यूपीए सरकार ने ऐसा नहीं किया. उन्होंने तेल विपणन कंपनियों को स्थानांतरित कर दिया, जो राजस्व व्यय का गठन करता है, लेकिन संपत्ति नहीं बनाता. उन्होंने कहा कि पूर्ववर्ती यूपीए सरकार ने बोझ को ऑयल बॉन्ड के नाम पर स्थानांतरित कर दिया, जिसे अब हम चुका हैं. गलती उनकी है और प्रायश्चित हम कर रहे हैं.
उन्होंने कहा कि जब तेल के आयात मूल्य में वृद्धि हुई, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो बार (नवंबर 2021 और जून 2022) में पेट्रोलियम पदार्थों पर उत्पाद शुल्क को घटाया, ताकि जनता पर कीमत के बोझ को कम किया जा सके. उन्होंने कहा कि जब हमने ईंधन पर शुल्क में कटौती की, तो कई ऐसे राज्य थे, जिन्होंने अपने यहां उसे लागू नहीं किया. मैं उनका नाम नहीं लेना चाहती. उन्होंने कहा कि कांग्रेस शासित हिमाचल प्रदेश की सरकार से पूछना चाहिए कि उन्होंने विधानसभा चुनाव जीतने के बाद डीजल पर वैट में 3 रुपये की बढ़ोतरी क्यों की?
ऑयल बॉन्ड एक प्रकार का वित्तीय साधन होता है, जिसके तहत सरकार तेल विपणन कंपनियों को नकद सब्सिडी देती है. यह एक प्रतिज्ञापत्र होता है, जिसे दिखाकर तेल कंपनियां बाजार से पैसे उठा सकती हैं. आम तौर पर इस प्रतिज्ञापत्र का इस्तेमाल पेट्रोल-डीजल की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है. आम तौर पर सरकारें तेल का दाम घटाने के लिए ऑयल बॉन्ड्स का इस्तेमाल करती हैं. मूल रूप से सरकारें ऑयल बॉन्ड्स का इस्तेमाल बजट में सीधे सब्सिडी देने से बचने के लिए करती हैं. इनका इस्तेमाल कर सरकारों को पेट्रोल-डीजल के दाम कम करने में सहायता मिलती है और वह तात्कालिक तोर पर सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ने से भी बचा लेती है. सही मायने में देखें, तो असल में खर्च का बोझ कम नहीं होता, बल्कि यह कुछ समय तक आगे के लिए टल जाता है.
देश में पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों को कम करने के मामले पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण हमेशा पूर्ववर्ती यूपीए सरकार पर आरोप लगाती हैं कि उसकी वजह से सरकार पर करोड़ों रुपये की देनदारी है, जिसकी वजह से उनकी सरकार तेल के दाम घटाने को लेकर उचित कदम नहीं उठा पा रही है. दरअसल, वर्ष 2012 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने करीब 1.44 लाख करोड़ रुपये का ऑयल बॉन्ड जारी की थी. इनमें से कुल 3500 करोड़ रुपये मूल्य के दो बॉन्ड की समाप्ति की तारीख 2015 में आई और उस साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार को इस रकम का भुगतान करना पड़ा.
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इसके बाद मोदी सरकार को वित्त वर्ष 2021-22 में 10 हजार करोड़ रुपये, 2023-24 में 31,150 करोड़ रुपये, 2024-25 में 52,860 करोड़ रुपये और 2025-26 में 36,913 करोड़ रुपये का भुगतान करना है. इतना ही नहीं, सरकार पिछले सात साल से हर साल करीब 10 हजार करोड़ रुपये का भुगतान करती चली आ रही है.
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