Ratan Tata: रतन टाटा के लंबे समय से सहयोगी रहे शांतनु नायडू ने रतन टाटा को भावपूर्ण विदाई देते हुए उन्हें अपने जीवन की सबसे बड़ी प्रेरणा और रोशनी बताया. नायडू, जो आरएनटी कार्यालय में महाप्रबंधक के पद पर कार्यरत थे, ने टाटा के निधन के बाद तड़के एक पेशेवर नेटवर्किंग साइट पर एक भावुक संदेश साझा किया. उन्होंने लिखा, “इस दोस्ती ने मेरे जीवन में जो स्थान घेरा था, वह अब एक ऐसा खालीपन छोड़ गई है जिसे मैं ताउम्र भरने की कोशिश करूंगा.”
इस संदेश के साथ, शांतनु नायडू को सुबह-सुबह एक अनोखी और भावुक तस्वीर में देखा गया, जिसमें वह अपनी मोटरसाइकिल पर सवार होकर रतन टाटा के पार्थिव शरीर को ले जा रहे ट्रक के आगे चल रहे थे. यह दृश्य लोगों के दिलों को छू गया. इसके अलावा, नायडू ने एक पुरानी तस्वीर साझा की, जिसमें वे और रतन टाटा एक चार्टर्ड विमान में बैठे हुए दिखाई दे रहे थे. उस तस्वीर के साथ नायडू ने लिखा, “प्यार की असली कीमत दुःख में चुकानी पड़ती है. अलविदा, मेरी जीवन की रोशनी.”
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शांतनु नायडू और रतन टाटा के बीच की यह गहरी मित्रता आवारा कुत्तों के प्रति उनकी समान चिंता और प्रेम से पनपी थी. पुणे के निवासी नायडू, जो टाटा समूह की एक कंपनी में काम कर रहे थे, एक दिन एक आवारा कुत्ते की मृत्यु से इतने व्यथित हो गए कि उन्होंने एक ‘रिफ्लेक्टिव कॉलर’ का आविष्कार किया. इस कॉलर का उद्देश्य था कि वाहन चालक रात के समय सड़कों पर घूमने वाले आवारा कुत्तों को आसानी से पहचान सकें और दुर्घटनाओं से बच सकें. नायडू ने इस विचार को रतन टाटा के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए एक पत्र लिखा. टाटा ने न केवल उनके इस प्रयास को सराहा, बल्कि उनके विचार को आगे बढ़ाने के लिए निवेश और स्थायी समर्थन भी प्रदान किया.
इसके बाद, शांतनु नायडू ने अपनी मास्टर डिग्री के लिए अमेरिका की ओर रुख किया. अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद जब वे भारत लौटे, तो उन्हें रतन टाटा के व्यक्तिगत कार्यालय, जिसे टाटा ने अपने चेयरमैन पद से निवृत्ति के बाद स्थापित किया था,.वहां उन्होंने रतन टाटा के विभिन्न मामलों का प्रबंधन किया, लेकिन उनकी भूमिका केवल एक प्रबंधक तक सीमित नहीं थी. नायडू ने कई सामाजिक रूप से प्रासंगिक प्लेटफ़ॉर्म भी स्थापित किए, जिन्हें रतन टाटा का समर्थन और मार्गदर्शन प्राप्त हुआ.
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इनमें से एक प्रमुख पहल थी ‘गुडफेलो’, जो वरिष्ठ नागरिकों के लिए एक सदस्यता-आधारित साहचर्य सेवा है। इसे 2022 में शुरू किया गया था और इसका उद्देश्य बुजुर्गों को भावनात्मक सहारा और सामाजिक समर्थन प्रदान करना था. रतन टाटा, भले ही उनकी स्वास्थ्य स्थिति नाजुक थी, फिर भी उन्होंने ‘गुडफेलो’ की लॉन्चिंग के समय खुद उपस्थिति दर्ज कराई. यह दर्शाता है कि वे अपने प्रिय सहयोगी के हर कदम पर साथ थे. उन्होंने इस स्टार्टअप में भी एक अज्ञात राशि का निवेश किया था, जिससे यह स्पष्ट होता है कि नायडू के विचारों और उनके सामाजिक उद्देश्यों के प्रति टाटा की प्रतिबद्धता कितनी गहरी थी.
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