मुंबई : भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने आम आदमी पर एक बार भी अपना चाबुक चला दिया है. केंद्रीय बैंक ने बुधवार को मौद्रिक नीति समीक्षा के दौरान नीतिगत ब्याज दर रेपो रेट में करीब 25 आधार अंक (बेसिस प्वाइंट) अथवा 0.25 फीसदी बढ़ोतरी करने का फैसला किया है. पिछले एक साल से भी कम समय में आरबीआई ने करीब छठी बार कर्ज को महंगा करने के लिए रेपो रेट में बढ़ोतरी करने का ऐलान किया है. आरबीआई के इस कदम से रेपो रेट बढ़कर करीब 6.50 फीसदी तक पहुंच गई है.
नीतिगत ब्याज दर यानी रेपो रेट वह ब्याज दर है, जिसपर वाणिज्यिक बैंक अपनी फौरी जरूरतों को पूरा करने के लिए केंद्रीय बैंक से कर्ज लेते हैं. इसमें बढ़ोतरी होने का मतलब यह है कि बैंकों और वित्तीय संस्थानों से लिया जाने वाला कर्ज महंगा होगा. आरबीआई देश के बैंकों और वित्तीय संस्थानों को महंगी ब्याज दर पर कर्ज देगा. इससे मौजूदा कर्ज की मासिक किस्त (ईएमआई) बढ़ेगी. आरबीआई की रेपो रेट में बढ़ोतरी का असर आम आदमी पड़ता है. आरबीआई बैंकों को देने वाले कर्ज को महंगा करता है, तो देश के बैंक उसकी वसूली कर्ज लेने वाले ग्राहकों से करता है.
इसके साथ ही, केंद्रीय बैंक ने चालू वित्त वर्ष 2022-23 के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर के अनुमान को 6.8 फीसदी से बढ़ाकर 7 फीसदी कर दिया है. वहीं, अगले वित्त वर्ष में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि दर 6.4 फीसदी रहने का अनुमान रखा गया है. आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष में खुदरा मुद्रास्फीति 6.5 प्रतिशत और अगले वित्त वर्ष में 5.3 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है.
मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की सोमवार से शुरू हुई तीन दिन की बैठक में लिए गए निर्णय की जानकारी देते हुए आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने डिजिटल माध्यम से प्रसारित बयान में कहा कि मौजूदा आर्थिक स्थिति पर विचार करते हुए एमपीसी ने नीतिगत दर रेपो रेट 0.25 फीसदी बढ़ाकर 6.50 फीसदी करने का निर्णय किया है. उन्होंने कहा कि मौद्रिक नीति समिति के छह सदस्यों में से चार ने रेपो रेट बढ़ाने के पक्ष में मतदान किया.
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हालांकि, रेपो दर में बढ़ोतरी की यह गति पिछली पांच बार की वृद्धि के मुकाबले कम है और बाजार इसकी उम्मीद कर रहा था. आरबीआई मुख्य रूप से मुद्रास्फीति को काबू में लाने के लिए इस साल मई से लेकर अबतक कुल छह बार में रेपो रेट में 2.50 फीसदी की वृद्धि कर चुका है. इससे पहले, मई में रेपो दर 0.40 फीसदी तथा जून, अगस्त और सितंबर में 0.50-0.50 फीसदी तथा दिसंबर में 0.35 फीसदी बढ़ाई गई थी. केंद्रीय बैंक नीतिगत दर पर निर्णय करते समय मुख्य रूप से खुदरा महंगाई पर गौर करता है.
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