SEBI New Guidelines: भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) की ओर से शोध विश्लेषकों (आरए) के लिए जारी किए गए नए दिशानिर्देशों ने इक्विटी शोध कंपनियों के संचालन और अनुपालन जरूरतों को जटिल बना दिया है. इस वजह से कई छोटी और स्वतंत्र शोध फर्मों को अपना कारोबार बंद करने की घोषणा करनी पड़ी है.
सेबी के नए दिशानिर्देशों का प्रभाव
8 जनवरी, 2023 को सेबी ने शोध विश्लेषकों के लिए एक नया दिशानिर्देश जारी किया. इसके तहत कंपनियों को कड़े अनुपालन उपायों का पालन करना अनिवार्य हो गया है.
- ग्राहक संपर्कों का रिकॉर्ड रखना
- अनुपालन ऑडिट करना
- केवाईसी (अपने ग्राहक को जानो) प्रक्रिया का पालन करना
ये सख्त नियम छोटी शोध फर्मों के लिए परिचालन लागत को बढ़ा रहे हैं. इसका नतीजा यह निकला कि सेंटिनल रिसर्च, स्टालवार्ट एडवाइजर्स और मिस्टिक वेल्थ जैसी फर्मों ने ऑपरेशन बंद करने की योजना की घोषणा की है.
छोटी शोध फर्मों की चुनौतियां
सेबी ने इन नियमों को प्रतिभूति बाजार में पारदर्शिता और नैतिकता को बढ़ावा देने के लिए लागू किया है, लेकिन ये छोटी और स्वतंत्र शोध फर्मों के लिए बड़ी चुनौतियां लेकर आए हैं. छोटी फर्मों के पास इन नियमों का पालन करने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं. रिकॉर्ड-कीपिंग और बार-बार ऑडिट करने की अनिवार्यता ने प्रशासनिक दबाव बढ़ा दिया है. नए नियम व्यक्तियों के लिए बाजार में प्रवेश को आसान बनाते हैं, लेकिन स्थापित फर्मों के लिए अनुपालन बोझ बढ़ा देते हैं.
ईमानदार सलाहकार बाजार से हो रहे हैं बाहर: संदीप पारेख
वित्तीय क्षेत्र के विशेषज्ञों ने सेबी के इन नियमों पर सवाल उठाए हैं. फिनसेक लॉ एडवाइजर्स के संस्थापक संदीप पारेख ने कहा, “सेबी अपने नियमों को बहुत सख्त बना रहा है, जिससे सक्षम और ईमानदार सलाहकार बाजार से बाहर हो रहे हैं. अगर यह जारी रहा, तो बाजार में केवल अयोग्य या बेईमान सलाहकार ही बचेंगे.” सेंटिनल रिसर्च के संस्थापक नीरज मराठे ने भी सोशल मीडिया पर अपनी निराशा व्यक्त की. उन्होंने पिछले साल ही अपनी सेवाएं रोक दी थीं, यह उम्मीद करते हुए कि अंतिम दिशानिर्देश अधिक व्यावहारिक होंगे. नियमों के जारी होने के बाद उन्होंने कहा, “ये दिशानिर्देश मेरी उम्मीदों से कहीं अधिक कठोर हैं. इस कारण मैं अपना शोध सेवा पोर्टल बंद कर रहा हूं.”
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शेयर बाजार पर दीर्घकालिक प्रभाव
सेबी के इन दिशानिर्देशों का उद्देश्य बाजार में पारदर्शिता लाना है, लेकिन इसके चलते स्वतंत्र शोध फर्मों की संख्या में कमी आ सकती है. विशेषज्ञों का मानना है कि इससे निवेशकों के लिए स्वतंत्र और निष्पक्ष अनुसंधान की उपलब्धता सीमित हो सकती है.
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