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शेयर बाजार और आशंकाओं के काले बादल

बाजार की हालत खूबसूरत नहीं बदसूरत हैं यानि मंदी जैसे हालात हैं. सिर्फ भारत ही नहीं विश्व का बाजार भी सुस्त हैं. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह, रुस- यूक्रेन की बीच चल रही जंग, जो एक साल से ज्यादा बीत गया है.

पिछले एक साल से ज्यादा वक्त से भारतीय शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव ही देखने को मिल रहा है. शेयर, म्यूचुअल फंड, ईटीएफ में निवेशकों का मुनाफा न के बराबर ही है . अभी तमाम तरह के आशंकाओं के घने- काले बादल दिख रहें है. आखिर, कब हमारा निफ़्टी और संसेक्स फिर एक नहीं ऊंचाई छूएगा. तरह -तरह के सवाल और मन में घबराहट घर किए हुए है. क्योंकि शेयर बाजार, वो जगह मानी जाती रही है. जहां पैसा डूबता जल्दी है. हालंकि, हकीकत इससे परे है, डूबते वे है, जो बिना रिसर्च किए दांव लगाते है, इसके अलावा भी बहुत सारी चीजें होती है. लेकिन, सच्चाई ये भी है कि, जिसने सही शेयर पर दाव लगाया और सब्र का दामन थामे रखा. उसे यही बाजार छप्पड़ -फाड़ के दौलत भी देता है.

बहरहाल, अभी के जो हालात है, वह सही नहीं है, निवेशक पैसा नहीं बना रहें है, ट्रेडर्स पैसा पीट रहें हैं. लेकिन, वो ट्रेडर्स ही पैसा कमा रहें हैं, जो तजुर्बेदार हो और जिन्हें अपने हानि और मुनाफे का पता है. नहीं तो ट्रेडिंग सब के बूते की भी बात नहीं हैं. फिलहाल, बाजार की हालत खूबसूरत नहीं बदसूरत हैं यानि मंदी जैसे हालात हैं. सिर्फ भारत ही नहीं विश्व का बाजार भी सुस्त हैं. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह, रुस- यूक्रेन की बीच चल रही जंग, जो एक साल से ज्यादा बीत गया है.

इसके अलावा भी दुनिया में कही न कहीं जंग की आजमाईश की आहट सुनाई पड़ते रहती है, चाहे चीन-भारत हो, चीन-ताइवान हो या फिर नार्थ कोरिया -साउथ कोरिया की दुश्मनी हो. इसके चलते बाजार की धार थम सी गई है. इस मुश्किल के अलावा अमेरिका के बैंक का डूबना भी इस हालात की वजह बनीं. इधर, भारतीय शेयर बाजार में अडानी प्रकरण के चलते भी साख पर बट्टा लग गया. एक आम निवेशक इसमें ठगा महसूस कर रहा है. इससे डर-आशंका और घबराहट बरकरार है. क्योंकि निवेशकों की कमाई यहां एक झटके में डूब गई. ये शेयर्स कब फिर उठेंगे ये अभी सवाल बनकर ही खड़े हैं.

सवाल है की क्या ऐसे ही हालात बने रहेंगे, तो मेरी नजर में ऐसा मुमकिन नहीं हैं. इसे हम कोरोना काल के उदाहरण से समझते हैं. उस वक़्त लगभग हमारा सूचकांक संसेक्स और निफ़्टी 40 परसेंट से ज्यादा गिर गया था, इसके अगले दो साल में इसने एक नई ऊंचाई को छुआ और निवेशकों के पैसे को दुगना किया. वही, थोड़ा और पीछे जाय तो 2008 में लेमन ब्रदर्स का संकट भी आया था. उस वक़्त भी बाजार की हालत बेहद खराब थी. लेकिन अगले दो साल में बाजार में फिर बहार दिखी और निवेशक मालामाल बनें.

इस वक़्त धैर्य के इम्तिहान की घड़ी है. धीरज ही संकट से उबारेगा, लिहाजा हड़बड़ाहट नहीं दिखानी चाहिए, क्योंकि शेयर बाजार हमेशा ऊपर नहीं चढ़ता एक वक़्त के लिए थमता ही है. आज दुनिया में भारत पांचवी सबसे बड़ी इकॉनमी है. लिहाजा, जो ग्रोथ और संभावनाएं हैं. वह अच्छी है. लिहाजा, अगर हम ये सोचे की बाजार की हालात आगे भी ऐसी ही रहेंगी, तो ऐसा नहीं दिखता हैं. हमें इंतजार और सब्र का इम्तेहान तो देना ही होगा.

शिवपूजन सिंह – ( बाजार विशेषज्ञ और सदस्य म्यूच्यूअल फंड एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया )

( इस लेख में लेखक के निजी विचार है, कोई भी शेयरों को खरीदने और बेचने के लिए अपने वित्तीय सलाहकार से सलाह ले )

Disclaimer: शेयर बाजार से संबंधित किसी भी खरीद-बिक्री के लिए प्रभात खबर कोई सुझाव नहीं देता. हम बाजार से जुड़े विश्लेषण मार्केट एक्सपर्ट्स और ब्रोकिंग कंपनियों के हवाले से प्रकाशित करते हैं. लेकिन प्रमाणित विशेषज्ञों से परामर्श के बाद ही बाजार से जुड़े निर्णय करें.

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