E-rupee vs Criptocurrences : भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने डिजिटल करेंसी सीबीडीसी (सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी) यानी ई-रुपी को लॉन्च करने के बाद इसके पायलट प्रोजेक्ट पर तेजी से काम करना शुरू कर दिया है. आरबीआई की ओर से देश के करीब 12 शहरों में पायलट प्रोजेक्ट पर काम शुरू भी कर दिया है. इस पायलट प्रोजेक्ट के तहत अब तक करीब 50,000 ग्राहकों और 5,000 दुकानदारों को जोड़ा गया है. संभावना है कि साल के अंत तक इसका पूरे देश में विस्तार हो जाएगा. लेकिन, इस बीच सवाल यह भी पैदा होता है कि डिजिटल वर्ल्ड में आरबीआई की ई-रुपी विदेशी क्रिप्टोकरेंसी को टक्कर दे पाएगी? खुदरा लेन-देन में उसका भविष्य क्या है? ये सवाल इसलिए भी मौजूं हैं, क्योंकि भारत के अधिकतर लोग अब भी भौतिक रुपये के लेन-देन से खुद को उबार नहीं पाए हैं. आइए, जानते हैं भारत की स्वदेशी ई-रुपी का क्या है भविष्य और विदेशी डिजिटल मुद्रा क्रिप्टोकरेंसी को टक्कर देने में कितना सक्षम है? क्या यह डेटा सुरक्षा के मामले में पुख्ता है?
सीबीडीसी एक डिजिटल मुद्रा है, जो एक संप्रभु राष्ट्र के केंद्रीय बैंक द्वारा जारी की जाती है. एक रिपोर्ट के अनुसार, यह उसी केंद्रीय बैंक द्वारा जारी भौतिक मुद्रा के विरुद्ध मुक्त रूप से परिवर्तनीय है. भौतिक मुद्रा के समान सीबीडीसी के जरिए लेनदेन करने के लिए किसी के पास बैंक खाता नहीं होना जरूरी नहीं है. हालांकि, सीबीडीसी और भौतिक मुद्रा के बीच एक प्रमुख विशिष्ट कारक यह है कि सीबीडीसी का जीवन लंबा होगा. इसे किसी भी भौतिक रूप में क्षतिग्रस्त या खोया नहीं जा सकता है. यह एक डिजिटल लेजर पर प्रबंधित किया जाएगा, जो ब्लॉकचेन-सक्षम हो भी सकता है और नहीं भी. दुनिया भर के कई अन्य केंद्रीय बैंक सीबीडीसी को व्यवहार में लाने की संभावनाएं तलाश रहे हैं.
सीबीडीसी मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं. इसमें खुदरा (सीबीडीसी-आर) और थोक (सीबीडीसी-डब्ल्यू) शामिल है. सीबीडीसी के होलसेल फॉर्म का इस्तेमाल इंटरबैंक सेटलमेंट और अन्य थोक लेनदेन के लिए किया जा सकेगा, जबकि सीबीडीसी-आर का इस्तेमाल नकदी के इलेक्ट्रॉनिक रूप के रूप में खुदरा लेनदेन के लिए किया जाएगा. सीबीडीसी-डब्ल्यू से लेन-देन की लागत कम होने और अंतर-बैंक बाजारों को और अधिक कुशल बनाने की उम्मीद है. आरबीआई की ओर से 1 नवंबर 2022 से सीबीडीसी-डब्ल्यू के लिए पायलट प्रोग्राम शुरू किया गया. इसके एक महीने बाद दिसंबर 2022 से सीबीडीसी-आर के लिए दूसरे पायलट प्रोग्राम की शुरुआत की गई.
आरबीआई के अनुसार, ई-रुपी भारत की भौतिक मुद्रा रुपये का एक डिजिटल रूप है, जो पहले से ही उपयोग में है. केंद्रीय बैंक ने 7 अक्टूबर 2022 को सीबीडीसी के संबंध में अपना अवधारणा नोट जारी किया था. दस्तावेज में केंद्रीय बैंक ने ई-रुपी को पेश करने के पीछे अपनी प्रेरणा, डिजाइन और तकनीकी विचार शामिल करने के साथ ही भारत के मौद्रिक लेनदेन में इस तरह के बदलाव लाने के नीतिगत पहलुओं का जिक्र किया है.
एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में सीबीडीसी की शुरुआत कई महत्वपूर्ण सवाल खड़े करती है. एक ऐसे देश में जो क्रिप्टोकरेंसी के चलन पर प्रतिबंध लगाना चाहता है, केंद्रीय बैंक के कदम से क्या समझा जाए? वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कभी क्रिप्टोकरेंसी में व्यवहार करते समय जनता को सावधानी बरतने की हिदायत थी. बाद में उन्होंने खुद कहा कि सीबीडीसी को वर्ष 2023 तक भारत में पूरी तरह से विस्तार कर दिया जाएगा. इससे यह जानना महत्वपूर्ण हो जाता है कि सीबीडीसी क्रिप्टोकरेंसी और यूपीआई लेनदेन से अलग कैसे है और यह डिजिटल वर्ल्ड में क्रिप्टोकरेंसी को टक्कर कैसे देगी?
अटलांटिक काउंसिल जियोइकोनॉमिक्स सेंटर की एक स्टडी में पाया गया है कि दुनिया के करीब 105 देश सीबीडीसी शुरू करने की संभावना पर विचार कर रहे हैं, जो मुख्य रूप से इंटरबैंक लेनदेन के लिए उपयोग किया जाएगा. 2020 तक अनुमानित 35 देशों में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि के रूप में देखी गई. जी20 देशों में से करीब 19 देश सीबीडीसी जारी करने की संभावना तलाशने में जुट हुए हैं और उनमें से अधिकांश ने प्रारंभिक अनुसंधान चरण से काफी प्रगति भी की है.
अंग्रेजी की आउटलुक पत्रिका की वेबसाइट पर 1 नवंबर 2022 को प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने पहले क्रिप्टो पारिस्थितिकी तंत्र को ‘स्पष्ट खतरे’ के रूप में वर्णित किया था. उन्होंने आगे कहा कि कोई भी ऐसी चीज जिससे मूल्य प्राप्त होता है और जो बिना किसी अंतर्निहित संपत्ति के केवल अनुमानित है, वह सिर्फ अटकलें थीं. केंद्र ने भी कुछ इसी तरह की राय जाहिर की थी. बाद में उसने क्रिप्टोकरेंसी और आभासी डिजिटल संपत्ति पर भारी टैक्स भी लगाया. वर्ष 2022 के बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आभासी डिजिटल संपत्ति जैसे कि क्रिप्टोकरेंसी के हस्तांतरण से होने वाली किसी भी आय पर 30 फीसदी की दर से टैक्स लगाने का ऐलान किया था. इसके साथ ही, सरकार ने वर्चुअल डिजिटल संपत्ति के हस्तांतरण के संबंध में किए गए किसी भी भुगतान पर 1 प्रतिशत का स्रोत पर कर कटौती (टीडीएस) भी लगाया. अब यदि क्रिप्टो के खिलाफ सरकार के इतने मजबूत विचार हैं, तो यह साफ है कि वह इसे सीबीडीसी से बहुत अलग के रूप में देखती है, जिसे आरबीआई मलीजामा पहनाने में जुटा है.
भारत की तुलना में दुनिया के कई देश लंबे समय से सीबीडीसी पर शोध कर रहे हैं. स्वीडन के केंद्रीय बैंक ने 5 साल तक अपने खुद के सीबीडीसी के पायलट और आर्किटेक्चर की तलाश की, लेकिन उसने लंबे समय तक ई-क्रोना जारी करने पर अंतिम फैसला नहीं किया. यूएस फेडरल रिजर्व ने सीबीडीसी पर एक आधिकारिक निविदा के साथ आने के बारे में सार्वजनिक विचार मांगा, जो निजी स्थिर मुद्राओं के खिलाफ प्रतिस्पर्धा करेगा. डिजिटल यूरो अभी भी जांच के अधीन है. जापान की ओर से वर्ष 2026 तक फैसला करने की संभावना है. हालांकि, सीबीडीसी को लेकर सिंगापुर ने अपने पेशेवरों और विपक्षों का विचार जानने के बाद उसे अपने यहां शुरू कर दिया.
दुनिया भर में सीबीडीसी की जांच में डेटा सुरक्षा और वित्तीय स्थिरता से संबंधित बड़ी संख्या में चिंताएं सामने आई हैं. अमेरिका के फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने 2022 में कहा था कि वित्तीय स्थिरता के आसपास साइबर जोखिम उनकी प्राथमिक चिंता थी. ब्रिटेन के हाउस ऑफ लॉर्ड्स की एक रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि सीबीडीसी के विकास से बचने के लिए गोपनीयता जोखिम और साइबर सुरक्षा प्राथमिक कारण रहे. एक रिपोर्ट के अनुसार, ये आशंकाएं निराधार नहीं हैं. सीबीडीसी के पास संवेदनशील उपयोगकर्ता और भुगतान डेटा को बड़े पैमाने पर जमा करने की क्षमता है. इस डेटा का गलत हाथों द्वारा उपयोग करने पर नागरिकों के निजी लेनदेन की जासूसी करने, संगठनों के साथ-साथ व्यक्तियों के बारे में सुरक्षा-संवेदनशील विवरण सुरक्षित करने और पैसे की चोरी के लिए आसानी से किया जा सकता है.
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टैलेंटस्प्रिंट में ब्लॉकचैन प्रोग्राम के डीन सुनील अग्रवाल ने नंवबर 2022 में आउटलुक पत्रिका से बातचीत करते हुए कहा था कि सीबीडीसी को सार्वजनिक रूप से अपनाने में लंबा रास्ता तय करना चाहिए. इसमें कम से कम 10 साल लगेंगे और संभवत: भारत की मुद्रा आपूर्ति का 1 फीसदी प्रभावित होगा. इसलिए, यदि यह केवल 1 फीसदी को प्रभावित करेगा, तो यह किस प्रकार के लक्ष्यों को प्राप्त करने की योजना बना रहा है, इस पर ध्यान देना जरूश्री है. उन्होंने कहा कि सीबीडीसी को शुरू करने की विभिन्न बारीकियों को समझने के लिए भारत की समयसीमा थोड़ी जल्दी लगती है. नोटबंदी को लेकर भी भारत ने जल्दबाजी में फैसला लिया था, जिसका नतीजा काफी गंभीर निकला.
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