नई दिल्ली : भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 8 नवंबर, 2016 के बाद प्रचलन में आए 2000 रुपये के नोटों को वापस करने का फैसला किया है. आरबीआई ने भारत के बैंकों से 2000 रुपये के नोटों को जमा करने के निर्देश दिए हैं. आरबीआई ने बैंकों को सलाह दी है कि वे 2000 रुपये मूल्य के नोटों को जारी करने पर तत्काल रोक लगा दें. हालांकि, केंद्रीय बैंक ने यह भी कहा कि ये 2000 रुपये के नोट 30 सितंबर तक वैध रहेंगे और 23 मई से लेकर 30 सितंबर के बीच इन 2000 रुपये के नोटों को बैंक में जमा कराया जा सकता है. हालांकि, आरबीआई ने 2000 रुपये के नोट को वापस करने का फैसला कर तो लिया है, लेकिन उसके इस कदम से देश में एक बार फिर नोटबंदी और उससे अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर बहस जोरदार तरीके से शुरू हो गई है. आइए, जानते हैं कि इस बारे में विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
अर्थव्यवस्था में केवल 10.8 फीसदी ही दिख रहा 2000 रुपये का नोट
बताते चलें कि 8 नवंबर, 2016 को जब देश में नोटबंदी का ऐलान किया गया था, तो उसके बाद भारतीय बाजार और देश के बैंकों में नकदी की समस्या पैदा हो गई थी. बैंकों की शाखाओं और एटीएम पर लोगों की लंबी कतारें दिखाई दे रही थीं. इस दौरान कई लोगों की मौत भी हो गई थी. नोटबंदी की वजह से उपजे नकदी संकट को समाप्त करने के लिए 2000 रुपये के नोट को आरबीआई की ओर से जारी किया गया था. एक रिपोर्ट के अनुसार, 31 मार्च 2018 तक भारतीय बाजार में करीब 6.73 लाख करोड़ रुपये मूल्य के 2000 रुपये के नोट प्रचलन में थे, जो 2023 में घटकर 3.62 लाख करोड़ रुपये हो गए हैं. यह प्रचलन में 2000 रुपये के कुल नोटों का केवल 10.8 फीसदी बताया जा रहा है.
2000 रुपये के नोट वापसी के निकलेंगे दूरगामी परिणाम
आर्थिक विशेषज्ञ डॉ वीपी सिंह की मानें, तो आरबीआई की ओर से 2000 रुपये के नोट की वापसी के दूरगामी परिणाम देखने को मिलेंगे. उन्होंने जारी एक बयान में कहा है कि भारत के बाजार में 2000 रुपये के नोट भले ही कम दिखाई दे रहे हैं, लेकिन यह जमाखोरों, रिश्वतखोरों, आतंकवादी संगठनों और असमाजिक तत्वों की पहली पसंद था. उन्होंने कहा कि भारत के बाजार में 2000 के नकली नोट भी प्रचलित हैं, जिनकी पहचान करना पाना काफी कठिन है. आरबीआई के इस कदम से आतंकवादियों को वित्तीय पोषण करने वाले संगठनों, रिश्वतखोरों, जमाखोरों और असामाजिक तत्वों की कमर टूटेगी. इसके साथ ही, भारतीय अर्थव्यवस्था में आरबीआई के इस कदम के दूरगामी परिणाम भी देखने को मिलेंगे.
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अर्थव्यवस्था या मौद्रिक नीति पर प्रभाव नहीं
इसके साथ ही, पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने शनिवार को कहा कि 2,000 रुपये का नोट वापस लिए जाना ‘बहुत बड़ी घटना’ नहीं है और इससे अर्थव्यवस्था या मौद्रिक नीति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. उन्होंने कहा कि 2,000 रुपये के नोट को 2016 में नोटबंदी के समय ‘आकस्मिक कारणों’ से मुद्रा की अस्थायी कमी को दूर करने के लिए लगाया गया था. गर्ग ने कहा कि पिछले 5-6 वर्षों में डिजिटल भुगतान में भारी वृद्धि के बाद, 2,000 रुपये का नोट (जो वास्तव में अन्य मूल्यवर्ग के नोटों के स्थान पर लाया गया था) वापस लेने से कुल मुद्रा प्रवाह प्रभावित नहीं होगा और इसलिए मौद्रिक नीति पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.
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