बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के सुगंधित मर्चा/ मेरचा धान को ज्योग्रॉफिकल इंडीकेशन (जीआइ) टैग हासिल हुआ है. धान की इस स्वदेशी किस्म का उत्पादन बिहार के केवल पश्चिमी चंपारण इलाके में ही होती है. यह जानकारी जीआइ जर्नल में प्रकाशित की गयी है. जीआइ टैग के लिए आवेदन करने वाले मर्चा धान उत्पादक प्रगतिशील समूह को अब केवल औपचारिक तौर पर जीआइ टैग का प्रमाण पत्र मिलना बाकी रह गया है. प्रमाण पत्र अगस्त में मिलेगा. जीआइ टैग दिलाने में पश्चिमी चंपारण के कलेक्टर कार्यालय और डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा का योगदान रहा.
धान की इस विशेष किस्म का आकार काली मिर्च से मिलता-जुलता होता है. यह धान बेहद सुगंधित और स्वादिष्ट होता है. इससे बनने वाला सुगंधित चूड़े की देश में ख्याति है. इसके उत्पादक क्षेत्र पश्चिमी चंपारण जिले के मैनाटांड़, गौनाहा, नरकटियागंज, रामनगर, चनपटिया ब्लॉक है. इसकी औसत उपज 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. धान का पौधा लंबा होता है. इसकी उपज 145-150 दिन में तैयार हो जाती है. इस तरह पश्चिमी चंपारण के 18 ब्लॉक में से छह ब्लॉक में इसकी खेती की जाती है. इसकी खेती कहीं और भी की जा सकती है, लेकिन उसके स्वाद की गुणवत्ता और सुगंध दूसरे क्षेत्र में हासिल नहीं होगी. कृषि मंत्री कुमार सर्वजीत ने कहा कि मर्चा धान उगाने वाले किसानों को शुभकामना है. हमारे उत्पाद को बड़े स्तर पर पहचान मिलेगी. यह बिहार की खेती के लिए गौरव का विषय है.
इससे पहले बिहार के छह कृषि एवं उद्यानिकी के छह उत्पादों को जीआइ टैग मिल चुका है. इनमें जर्दालू आम, भागलपुर का कतरनी चावल, मुजफ्फरपुर की शाही लीची, मगध क्षेत्र का मगही पान और मिथिला का मखाना को मिला है. इसके अलावा हस्तशिल्प में मंजूषा कला, सुजनी कढ़ाई का काम, एप्लिक खटवा वर्क, सिक्की घास के उत्पाद, भागलपुरी सिल्क, मधुबनी पेंटिंग और सिलाव के खाजा को भी जीआइ टैग हासिल हो चुका है.
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जीआइ टैग मिलने से संबंधित उत्पाद की पहचान वैश्विक फलक पर पहचानी जाती है. निर्यात को बढ़ावा मिलता है. इससे किसानोंं की आर्थिक स्थिति में सुधार होता है. उत्पाद का बेहतर मूल्य मिलता है. जीआइ टैग मिलने से उत्पाद को सुरक्षा और उसके संरक्षण की दिशा में सरकार किसानों को सहयोग करती है. एग्रो टूरिज्म भी बढ़ता है.