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World Tribal Day: देश में शिशु मृत्यु दर 28, पहाड़िया जनजाति में यह तीन गुनी

पिछले एक दशक से जनजाति तेजी से कई प्रकार के संक्रमण से ग्रसित हो रही है. इनकी जमीनों पर धीरे-धीरे कब्जा होता जा रहा है. इनका आर्थिक शोषण बढ़ गया है, इनकी हालत अत्यंत दयनीय बनी हुई है. विश्व आदिवासी दिवस पर प्रभात खबर ने संताल परगना की पहाड़िया जनजाति की स्थिति की पड़ताल की. प्रस्तुत है खास आर्टिकल-

संजीत मंडल, देवघर. संताल परगना में कभी 26 जनजातियां रहा करती थीं. आज की स्थिति यह है कि इनमें संथाल और पहाड़िया को छोड़ दें, तो तकरीबन 24 जनजातियां लुप्तप्राय: होती जा रही हैं. कुछ जनजातियों की संख्या तो अब उंगलियों पर गिनी जा सकती हैं. आजादी के 76 सालों में भी ये पहाड़िया जनजाति सहित कई अन्य जनजातियां पहाड़ों से नीचे नहीं उतर पायी हैं, जबकि आदिवासियों, खासकर आदिम जनजातियों के उत्थान के लिए केंद्र और राज्य सरकार की कई योजनाएं चल रही हैं. करोड़ों रुपये खर्च किये जा रहे हैं. उनकी सुख-सुविधा को लेकर कई कार्यक्रम भी चलाये जा रहे हैं, लेकिन सरकार की योजनाएं इन्हें नहीं लुभा पा रही हैं. आजादी के इतने सालों बाद भी ये पहाड़ों, जंगलों में ही रहना पसंद करते हैं. शहर की चकाचौंध इनके जीवन पर आज तक प्रभाव नहीं डाल पायी है.

76 सालों में पहाड़ों से नीचे नहीं उतर पायी पहाड़िया जनजाति

संताल परगना में संथाल के बाद पहाड़िया जनजाति ही प्रमुख हैं. आदिम जनजाति पहाड़िया कुल तीन उपजातियों में बंटी हुई हैं, जिनमें माल पहाड़िया, सांवरिया या सौरिया पहाड़िया और कुमार भाग पहाड़िया प्रमुख हैं. पहाड़िया की आबादी संताल परगना में लगभग एक लाख 61 हजार 315 है. जबकि संथालों की आबादी 17 लाख 46 हजार 049 है. यह विडंबना कहें या शासन-प्रशासन की विफलता कि आजादी 76 सालों में भी ये पहाड़िया जनजाति पहाड़ों से नीचे नहीं उतर पायी हैं. सरकार की योजनाओं का कोई खासा असर इन पर नहीं पड़ा है. राशन, धोती-साड़ी और कुछेक पेंशन की योजनाओं के लाभ को छोड़ दें, तो इन तक अन्य कल्याणकारी योजनाएं नहीं पहुंची हैं. पिछली सरकार ने पहाड़ों पर रहने वाले आदिम जनजातियों के लिए पेयजलापूर्ति योजना पर काम शुरू किया. पहाड़ों पर बिजली पहुंचाने का भी काम कमोवेश हुआ, लेकिन आज भी ये बीमार पड़े, तो पहाड़ों और जंगलों से खाट पर टांग कर ही अस्पताल लाये जाते हैं.

सबसे अधिक पाकुड़ और सबसे कम पहाड़िया जामताड़ा में

झारखंड आदिवासी कल्याण शोध संस्थान, रांची से मिले आंकड़े के अनुसार, 2011 की सेंसस बताते हैं कि संताल परगना में सौरिया पहाड़िया की आबादी 46 हजार 222 है. जबकि माल पहाड़िया की आबादी 01 लाख 15 हजार 93 है. यानी संताल परगना में पहाड़िया जनजाति की आबादी 1,61, 315 है. सबसे अधिक 49120 पहाड़िया जनजाति पाकुड़ जिले में हैं. यहां माल पहाड़िया की आबादी 38120, सामान्य पहाड़िया की आबादी 125 और सौरिया पहाड़िया की आबादी 10875 है. जबकि साहिबगंज जिले में इनकी आबादी 42, 632 है. इनमें 21409 माल पहाड़िया, 219 सामान्य पहाड़िया और 21004 सौरिया पहाड़िया शामिल हैं. वहीं दुमका में पहाड़िया की आबादी 39657 है. देवघर जिले में 12453, गोड्डा में 12327 और जामताड़ा जिले में सबसे कम 5126 पहाड़िया जनजाति निवास करते हैं. वहीं 1872 के सेंसस के अनुसार इस क्षेत्र में 86 हजार 335 पहाड़िया जनजाति के लोग निवास कर रहे थे, जिसमें 68 हजार 335 सौरिया और 18 हजार माल पहाड़िया थे.

इस तरह से देखा जाये तो 1872 से 2011 के बीच तकरीबन 140 सालों में इस जनजाति की संख्या दोगुनी भी नहीं हो सकी. जबकि इतने ही साल में दूसरी जातियों की आबादी 20 गुणा तक बढ़ी. संताल परगना में आदिम जनजाति पहाड़िया की लगातार घट रही आबादी के पीछे मुख्य कारण भोजन, वस्त्र, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा, पेयजल जैसी आधारभूत सुविधाओं की कमी तो है ही, इनमें डायरिया, मलेरिया, ब्रेन मलेरिया, कालाजार, टीबी, कुष्ठ और फाइलेरिया की वजह से इस समुदाय में मृत्यु दर अधिक है.

आइएमआर के आंकड़े के अनुसार, पिछले साल यानी 2022 में देश में शिशु मृत्यु दर करीब 28 (प्रति 1000) थी. वहीं, एक आंकड़े के अनुसार संताल परगना के ग्रामीण इलाकों में पहाड़िया जनजाति की शिशु मृत्यु दर एक हजार में 82 के करीब है. दूसरी ओर इन आदिवासियों में मातृत्व मृत्यु दर प्रति एक लाख में 371 है. इसके पीछे कई कारण हैं. ये जनजातियां पहाड़ों पर निवास करती हैं. इस कारण स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिल पाती है. अपनी बीमारियों का इलाज ये खुद जड़ी-बुटी से करते हैं, इस कारण स्थिति बिगड़ जाती है. पहाड़िया की औसत आयु 55 से अधिक नहीं होती है. स्वास्थ्य, चिकित्सा एवं परिवार कल्याण विभाग द्वारा कई कार्यक्रम चलाये गये बावजूद इसके इस समुदाय को कोई खास लाभ नहीं हुआ है. पहाड़िया महिलाओं की स्वास्थ्य व चिकित्सा की स्थिति तो और भी चिंताजनक है. प्रसव पूर्व तथा प्रसव के दौरान उचित स्वास्थ्य व्यवस्था की कमी से गर्भ में ही शिशुओं की मौत भी जनसंख्या घटने का बड़े कारणों में से एक है.

  • अब भी डायरिया, मलेरिया, ब्रेन मलेरिया, कालाजार, टीबी, कुष्ठ और फाइलेरिया से मर रहे पहाड़िया जनजाति के लोग

  • इनकी औसत उम्र है मात्र 55 साल

  • न आर्थिक स्थिति सुधरी, न राजनीति में उभरे

  • संताल परगना में पहाड़िया जनजाति की आबादी 1,61,315

  • पहाड़िया जनजातियों की आदिवासियत खुशहाल रहे, इसमें सबका साथ जरूरी

क्यों घट रही पहाड़िया की आबादी

1. नहीं सुधरी स्थिति

इस प्रमंडल में आज भी पहाड़िया जनजाति की स्थिति वैसी ही जैसा आजादी के पहले थी. थोड़ा फर्क ये आया है कि इनके गांवों तक बिजली पहुंची है, पीडीएस के राशन इन तक पहुंच रहे हैं. शेष इनकी आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व शैक्षणिक अव्यवस्था के शिकार है. पूर्व की सरकार ने पहाड़िया बटालियन की स्थापना कर इस समुदाय को नौकरी देने की कोशिश की. वर्तमान में कई युवक-युवतियां सरकारी नौकरियों का लाभ प्राप्त कर अपनी आर्थिक स्थिति सुधार पाने में कामयाब हुए हैं. लेकिन इनकी संख्या काफी कम है. शहर के आसपास के कुछ गिने-चुने पहाड़िया गांवों को छोड़, लगभग 90 फीसदी गांवों की स्थितियां जस-की-तस बनी हुई है.

2. शहरीकरण का नहीं है प्रभाव, अधिकांश आदिवासी रहते हैं गांवों में

संताल परगना के आदिवासियों को गांव अधिक पसंद है. इनकी जिंदगी में शहरीकरण का ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा है. यही कारण है कि संताल परगना में तकरीबन 19.35 लाख आदिवासियों की आबादी गांवों में ही रहती है, जबकि महज 24000 की आबादी शहरी एरिया में निवास करती है. तमाम दिक्कतों के बाद भी आदिवासी अपनी सभ्यता और संस्कृति के अनुसार प्रकृति के बीच ही रहना पसंद करते हैं. भले ही सरकार उन तक पहुंचें या नहीं पहुंचें, शासन-प्रशासन उन तक कल्याणकारी योजनाओं का लाभ पहुंचायें या नहीं पहुंचायें.

राजनीति में हाशिये पर रहे हैं पहाड़िया

संताल परगना में पहाड़िया जनजाति के कई नेता उभरे लेकिन राजनीति के क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ पाये. बल्कि कह सकते हैं कि अधिकांश दलों ने इन पहाड़िया नेताओं को ब्रेक ही नहीं दिया. कुछ चुनाव में भाजपा, राजद व कुछ छोटे दलों ने ब्रेक दिया भी तो ये नेता कुछ खास नहीं कर पाये. आज सभी नेता हाशिये पर हैं. संताल परगना में विधान सभा की कुल 18 में से सात और लोक सभा की तीन में से दो सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. पहाड़िया आदिम जनजाति के लिए अलग से कोई सीट नहीं है. अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित विधान सभा की सात आरक्षित में से छह सीटों पर पहाड़िया नेता चुनाव लड़ते रहे हैं. ये वो सीटें हैं, जिन पर पिछले ढाई-तीन दशकों से झामुमो का प्रभाव रहा है, लेकिन उसने कभी किसी पहाड़िया को टिकट नहीं दिया.

प्रमुख पहाड़िया संगठन और उनके नेता

  • बुनियादी जुगवासी किसान सभा, रामगढ़, 1954-55 अर्जुन गृही

  • आदिम जनजाति सेवा संघ, दुमका, 1954-55 लाल हेंब्रम और ताहिर हुसैन

  • पहाडि़या समाज उत्थान समिति, दुमका,1967 कालीचरण देहरी, महेश्वर मालतो / 1971 शिवलाल मांझी व अन्य

  • पहाडि़या ग्राम सभा, काठीकुंड, दुमका 1979.

  • अखिल भारतीय पहाड़िया आदिम जनजाति उत्थान समिति, दुमका, 1991 : शिवलाल मांझी और रामदुलाल देहरी

  • पहाड़िया मुक्ति सेना, 1992 गयालाल देहरी

  • अरण्यांचल पीपुल्स पार्टी, दुमका, 1994 रामदुलाल देहरी व मोतीलाल देहरी

  • प्रमंडलीय पहाडि़या विकास समिति, दुमका, 1995, आयुक्त संताल परगना

  • झारखंड आदिम जनजाति शिक्षित संघ, दुमका शिवचरण मालतो व अन्य

यहां के 33 प्रतिशत पहाड़िया ही साक्षर

संताल परगना में जो पहाड़िया के बीच साक्षरता दर के आंकड़े हैं, उसके अनुसार मात्र 33 प्रतिशत ही पहाड़िया साक्षर हैं. इससे प्रतीत होता है कि दुमका, साहेबगंज, गोड्डा, पाकुड़ सहित संताल के अन्य जिले में पहाड़िया जनजाति क्षेत्र में शिक्षा घर-घर तक नहीं पहुंची है. सबके लिए शिक्षा, सबको शिक्षा, स्कूल चलें चलायें अभियान, साक्षरता मिशन, सर्व शिक्षा अभियान सहित शिक्षा विभाग की अन्य सभी योजनाएं किस कदर आदिवासी पहाड़िया जनजाति तक पहुुंच रही है. गोड्डा के सुंदरपहाड़ी इलाके के पहाड़ों पर रहने वाली पहाड़िया जनजाति में शायद ही कोई मैट्रिक पास मिले. दुमका में इनकी स्थिति थोड़ी ठीक ठाक है. क्योंकि यहां के कुछ पहाड़िया गिने चुने ही हैं, जो अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दे रहे हैं, क्योंकि उनका पारिवारिक बैक ग्राउंड ठीक है. इनमें कालीचरण देहरी प्रमुख हैं ,जो बिहार विधानसभा में अवर सचिव के पद पर रहे हैं. लेकिन साहिबगंज, देवघर,जामताड़ा और पाकुड़ में ये लोग आज भी उपेक्षित हैं.

विधानसभा चुनावों में पहाड़िया की भागीदारी

प्रत्याशी– विस क्षेत्र– वर्ष– पार्टी– स्थान प्राप्त– मत (%)

सिमोन मालतो –बरहेट– 2005– भाजपा– दूसरा– 31.02

सिमोन मालतो– बरहेट– 2009– भाजपा– तीसरा– 14.28

महेश मालतो– बोरियो– 2005– एनसीपी– चौथा– 04.00

महेश मालतो– बोरियो– 2009– आरएसपी– दसवां– 01.18

रामा पहाड़िया– बोरियो– 2009– निर्दलीय– चौथा– 03.43

मनोज सिंह– जामा– 2005– राजद– तीसरा– 04.49

मनोज सिंह– जामा– 2009– भाजपा– दूसरा– 29.18

अर्जुन पुजहर– जामा– 2009– सपा– दसवां– 01.49

राजमीवन देहरी– शिकारीपाड़ा– 2005– निर्दलीय– छठा– 02.80

जितेंद्र मालतो– लिट्टीपाड़ा– 2005– निर्दलीय– चौथा– 04.56

शिवचरण मालतो– लिट्टीपाड़ा– 2005– निर्दलीय– पांचवां– 04.00

कालीदास मालतो– लिट्टीपाड़ा– 2005– बसपा– आठवां– 01.74

गांडेय पहाड़िया– लिट्टीपाड़ा– 2009– निर्दलीय– दसवां– 01.43

संताल में जनजातियां

जिला– कुल– रूरल– अर्बन

देवघर– 180962– 176140– 4822

गोड्डा– 279208– 276785– 2423

साहिबगंज– 308343– 301930– 6413

पाकुड़– 379054– 376390– 2664

जामताड़ा– 240489– 236962– 1773

दुमका– 571077– 565629– 5448

बिरहोरों की स्थिति भी दयनीय

संताल परगना में सबसे चिंताजनक आबादी बिरहोरों की है. यह झारखंड की एक अल्पसंख्यक आदिम जनजाति है. इसकी आबादी 2011 के सेंसस के अनुसार मात्र 63 है. इसमें सबसे अधिक बिरहोर देवघर जिले में रहते हैं. अमड़ापाड़ा (पाकुड़) से गुज़रने वाली बांसलोई नदी की पूर्वी दिशा में स्थित दुमका जिले के गोपीकांदर, काठीकुंड, रामगढ़, शिकारीपाड़ा, दुमका, जामा मसलिया, सरैयाहाट तथा जामताड़ा और देवघर के कुछ प्रखंडों में माल पहाड़िया जाति के लोग निवास करते हैं, जबकि राजमहल की उत्तरी दिशा में सांवरिया अथवा सौरिया पहाड़िया और पाकुड़ जिले के पाढरकोला व आसपास के इलाकों में कुमार भाग पहाड़िया जाति निवास करती है.

संताल परगना में पहाड़िया जनजाति की जनसंख्या

जिला– जनसंख्या

दुमका– 39657

साहिबगंज– 42632

देवघर– 12453

जामताड़ा– 5126

गोड्डा– 12327

पाकुड़– 49120

कुल– 1, 61,315

संताल में संथाल जनजाति की आबादी

दुमका– 6,27,338

पाकुड़– 3,17, 992

साहिबगंज– 2,27,575

गोड्डा– 2,24,068

जामताड़ा– 2,13,320

देवघर– 1,33,756

कुल– 17,46,049

कहां-कितने प्रकार की जनजातियां

देवघर– 26

गोड्डा– 25

साहिबगंज– 28

पाकुड़– 27

दुमका– 26

जामताड़ा– 26

जनजातियां जो लुप्त हो रही हैं

असुर, बाथुडी, बेदिया, बीरहोर, चीक बराइक, गोंड, हो, करमाली, खरिया, खरवार, खोंद, किसन-नगेसिया, कोड़ा, लोहरा, मुंडा, उरांव, पहाड़िया, सौरया पहाड़िया, सांवर, कवर, बेंगा, गोरैत, बेंगा, बिरजिया.

भारत सरकार की सूची में विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह: असुर, बिरहोर, बिरजिया, हिल-खरिया, कोरवा, माल पहाड़िया, पहाड़िया, सैरिया पहाड़िया, सांवर.

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