धनबाद, संजीव झा : आज हर जगह महिलाओं के हक की बात होती है. उनकी सुविधाओं के लिए कई कानून भी बने हैं. कई तरह की योजनाएं भी हैं. उन्हें आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने के लिए भी कई तरह के कार्यक्रम चल रहे हैं. स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) भी गठित हुआ. वहीं दूसरी ओर आज महिलाएं भी हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कदम से कदम मिला कर चल रही हैं. शिक्षा के क्षेत्र में तो लड़कियाें का जलवा है. बावजूद इसके कई ऐसे मामले हैं या मौके आते हैं, जहां आधी आबादी अपने हक के लिए परेशान हो जाती हैं. क्या है झारखंड की आर्थिक राजधानी कोल नगरी धनबाद में आधी आबादी की स्थिति, क्या सच में उनके हक पर किसी का डाका नहीं है या फिर आज भी उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
शहर का सबसे बड़ा सरकारी दफ्तर समाहरणालय. यहां उपायुक्त सह जिला दंडाधिकारी के अलावा कई बड़े अधिकारी बैठते हैं. यहां प्रति दिन अपनी फरियाद लेकर बड़ी संख्या में महिलाएं आती हैं. कोई जमीन विवाद तो कोई पेंशन के लिए. मंगल एवं शुक्रवार को यहां उपायुक्त का जनता दरबार लगता है. इस दिन मुलाकातियों की खासी भीड़ होती है. लेकिन, यहां महिलाओं के लिए अलग से कोई फीडिंग रूम नहीं है. छोटे-छोटे बच्चों को ले कर आनी वाली महिलाएं बच्चों को बरामदा पर ही बैठ कर फीडिंग कराती हैं. आंचल से ढक कर अपनी इज्जत बचाती हैं. यहां पर भू-तल एवं प्रथम तल पर शौचालय तो है. लेकिन, वह पूरी तरह साफ-सुथरा नहीं रहता.
मिश्रित भवन में राज्य सरकार का दो दर्जन से ज्यादा दफ्तर चलता है. इसमें डीआरडीए, वन विभाग, शिक्षा विभाग, ऊर्जा विभाग, पथ निर्माण, ग्राम्य अभियंत्रण संगठन, खेल-कूद, जेएसएलपीएस का ऑफिस शामिल है. यहां बड़ी संख्या में महिला कर्मी भी कार्यरत हैं. तीन मंजिला भवन में शौचालय तो है. लेकिन, यहां कार्यरत कर्मियों एवं बाहर से आने वालों की तादात के हिसाब से काफी कम है. यहां ग्रामीण क्षेत्रों से महिलाएं काफी संख्या में आती हैं. उनके बैठने तथा बच्चों को फीडिंग कराने के लिए कोई स्थान नहीं है. भीड़-भाड़ के बीच ही जैसे-तैसे फीडिंग कराती हैं. खुद फ्रेश होने के लिए बाहर सुलभ शौचायल में जाती हैं. यहां भी शौचालय का रख-रखाव ठीक नहीं है.
पंचायती राज संस्थान के तहत सबसे बड़ा दफ्तर जिला परिषद का है. धनबाद जिला में जिला परिषद की कुल 29 सदस्य हैं. इनमें से महिलाओं की संख्या 22 है. जिला परिषद की अध्यक्ष, उपाध्यक्ष भी महिला ही हैं. लेकिन, यहां महिला सदस्यों को बैठने तथा फ्रेश होने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है. जो भी महिला सदस्य आती हैं. उन्हें जिला परिषद अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के कमरा में जाना पड़ता है. दोनों के चेंबर के अंदर ही शौचालय की व्यवस्था है. जिला परिषद की अध्यक्ष शारदा सिंह कहती हैं कि कई बार महिला सदस्यों के लिए अलग कॉमन रूम व शौचालय बनाने की बात हुई. जिप बोर्ड की बैठक में प्रस्ताव भी लाया गया. लेकिन, पास नहीं हो पाया. अब एक बार फिर से इसके लिए कोशिश करेंगी. यहां पर भी बेबी फीडिंग के लिए कोई व्यवस्था नहीं है.
धनबाद से खुलने या गुजरने वाली अधिकांश ट्रेनों में महिला बोगी है. जेनरल कोच ही है. लेकिन, सभी ट्रेनों के महिला बोगियों में पुरुष यात्रियों का कब्जा रहता है. अक्सर महिला एवं पुरुष यात्रियों के बीच विवाद होता है. खासकर पैसेंजर ट्रेनों में बहुत विवाद होता है. गया-आसनसोल इएमयू से सफर करने वाली एक कॉलेज छात्रा कहती हैं कि उनलोगों को प्रति दिन ट्रेन के अंदर फजीहत का सामना करना पड़ता है. पुरुष यात्री कहते हैं कि सीट से नहीं उठेंगे. महिला बोगी है तो क्या. रेल पुलिस से शिकायत का भी कोई लाभ नहीं मिलता. कभी-कभी आरपीएफ के तरफ से धनबाद स्टेशन पर महिला बोगी को खाली कराने का अभियान चलता है.
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धनबाद शहर का एकमात्र सरकारी बस स्टैंड बरटांड़ में है. यहां पर महिला यात्रियों के लिए न बैठने की कोई व्यवस्था है और न कोई शौचालय. हल्का होने के लिए महिला यात्रियों को किसी खड़े बस की ओट लेनी पड़ती है. कुछ झाड़ियों में जाने को विवश हैं. बच्चों की फीड करने के लिए महिला यात्रियों को छोटे-छोटे चाय-नाश्ता के दुकानों में जाना पड़ता है.
धनबाद शहर में वरीय पुलिस अधीक्षक, ग्रामीण पुलिस अधीक्षक, शहरी पुलिस अधीक्षक, महिला थाना एक ही परिसर में है. महिला थाना में प्रति दिन दर्जनों महिलाएं आवेदन ले कर आती हैं. एसएसपी, सिटी व ग्रामीण एसपी के दफ्तरों में मुलाकातियों की भीड़ लगी रहती है. लेकिन, इनमें से कहीं भी महिलाओं के लिए फीडिंग सेंटर नहीं है. महिला थाना में फरियादियों के लिए सुविधा नहीं है. शहर के सिर्फ बैंक मोड़ थाना में महिलाओं के लिए फीडिंग सेंटर है.
शहर में महिलाओं के लिए दो कॉलेज है. एसएसएलएनटी सबसे पुराना एवं एकमात्र सरकारी कॉलेज है. यहां इंटर से लेकर पीजी तक की पढ़ाई होती है. जबकि बीएसएस महिला महाविद्यालय स्थायी संबद्धता प्राप्त कॉलेज है. इन कॉलेजों के बाहर हमेशा टपोरियों का अड्डा लगा रहता है. कॉलेज के आस-पास खड़े हो कर लड़कियों पर फब्तियां कसते हैं. छेड़-छाड़ की घटनाएं भी हो जाती है. बीच-बीच में पुलिस की पेट्रोलिंग टीम आती है. लेकिन, इसका लाभ नहीं दिखता.
बाल कल्याण समिति धनबाद के पास हर माह छेड़खानी, यौन शोषण के औसतन सात से आठ मामले पोक्सो एक्ट के तहत आते हैं. मई माह में यहां 12 शिकायतें आयी. जबकि अप्रैल में आठ शिकायतें आयी थी. बाल कल्याण समिति के अधिकारियों के अनुसार यौन उत्पीड़न की शिकार होने वाली इन बच्चियों में अधिकांश की उम्र 14 वर्ष से कम है.
बाल कल्याण समिति धनबाद के तरफ से पिछले एक वर्ष के दौरान ऑपरेशन मुस्कान एवं दूसरे अभियान के तहत 190 बच्चों को मुक्त कराया गया. इनमें से अधिकांश बाल श्रमिक के रूप में काम कर रहे थे. कुछ ऐसे बच्चों से भिक्षा मंगवाया जा रहा था. मुक्त कराये गये बच्चों में से 105 बच्चियां हैं. इनमें से 90 फीसदी बच्चियों को वापस उनके घर पहुंचा दिया गया है.
धनबाद जैसे औद्योगिक शहर में महिलाओं के लिए अलग पिंक परिवहन की कोई व्यवस्था नहीं है. महिलाओं को भी आम यात्रियों के साथ ही बस, ऑटो में सफर करना पड़ता है. ऑटो में ठूंस कर यात्रियों को बैठाया जाता है. महिला, युवतियों को यात्रा करने में बहुत असहज महसूस करती हैं.
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9431706380
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9771432103
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धनबाद के महिला थाना में बने हवालात में कचरा भरा हुआ है. हवालात के गेट में प्लास्टिक का बोतल ढूंस दिया गया है. अन्य अनुपयोगी सामाना रख दिया गया है. महिला थाना में शिकायत के लिए आने वाली महिलाओं के लिए एक शौचालय तो है. लेकिन, उसका दरवाजा टूटा हुआ है. सफाई भी नहीं होती. यहां ब्रेस्ट फीडिंग के लिए भी कोई कमरा नहीं है.