Charlie Chaplin : इंसान के जीवन में हंसी न हो तो इंसान और जानवर में भला क्या फर्क रह जायेगा, पर कुछ इंसान ऐसे भी होते हैं, जो खुद भले ही कितने भी दुखी हों, दूसरों को हंसाने के लिए कुछ-न-कुछ करते रहते हैं. चार्ली चैप्लिन अपने अभिनय में इस कदर डूब जाते थे कि उनके बिना कुछ बोले रोता हुआ व्यक्ति भी उनका अभिनय देख कर हंसने लगता था. उनकी खुद की जिंदगी संघर्षों से भरी रही, लेकिन उनके अभिनय लोगों का दर्द हर लेती थी. चार्ली चैप्लिन का अभिनय आज भी लोगों के दिलों पर राज करता है. जानें कैसे मात्र 13 वर्ष की उम्र में एक गरीब नौजवान रंगमंच के जरिये सबको हंसाने निकल पड़ा. चार्ली ने हास्य अभिनय की एक नयी विधा शुरू की. वे जितना रोते थे, दर्शक उतना ही हंसते थे. चार्ली के चेहरे के बदलते भावों ने उन्हें मूक फिल्मों के दौर का सबसे बड़ा अभिनेता बना दिया.
साउथ लंदन में हुआ था जन्म
16 अप्रैल, 1889 को दक्षिणी लंदन की कैनिंगटन नामक एक बस्ती में एक छोटे से घर में जब चार्ल्स स्पैंसर चैप्लिन नामक बच्चे का जन्म हुआ था. कॉमेडी के जरिये पूरी दुनिया को लोट पोट कर देनेवाले चैप्लिन का बचपन बहुत मुश्किलों में गुजरा. चार्ली के माता-पिता जगह-जगह घूम-घूमकर गा-बजाकर अपनी कला का प्रदर्शन कर किसी तरह अपने परिवार का गुजर-बसर किया करते थे. चार्ली की उम्र जब मात्र सात वर्ष थी, तब उनकी मां बेहद बीमार रहने लगी थीं. उन्हें मनोचिकित्सा केंद्र में भर्ती करवाना पड़ा. मां से बेहद प्यार करनेवाले चार्ली को इस अलगाव ने तोड़ कर रख दिया. पिता की भी दो साल बाद मौत हो गयी. तमाम दुखों को पीछे छोड़ते हुए वह स्टेज शो करने लगे. स्टेज शो में उन्हें मसखरे की भूमिका मिलती, लेकिन इससे मिले पैसे वह अपनी मां को मनोचिकित्सा केंद्र से बाहर निकालने के लिए जमा करते रहे. वर्ष 1908 में एक कॉमेडी कंपनी के शो में एक छोटे से रोल ने लंदन में और पूरे ब्रिटेन में उन्हें मशहूर कर दिया.
1914 से चल गया चार्ली का जादू
रंगमंच पर शो करने के दौरान कई अमेरिकी फिल्म निर्माताओं की चार्ली पर नजर पड़ी. हालांकि, शुरू में उनके अभिनय को अमेरिकी जनता ने हाथोंहाथ नहीं लिया. फिर वर्ष 1914 में एक अमेरिकी फिल्म निर्माता को उम्रदराज कॉमेडियन की जरूरत पड़ी. उन्होंने चार्ली से संपर्क किया. उस समय 25 वर्ष के चार्ली चैप्लिन ने उनका प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया, लेकिन थक हार कर चैप्लिन ने बाद में माबेल नॉरमार्ड की फिल्म ‘माबेल्स स्ट्रेंज प्रीडिकामेंट’ में काम करने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. बस यहीं से उनका जादू चल निकला. इसके बाद चैप्लिन कॉमेडी के बादशाह बन गये. वर्ष 1916 आते-आते वह सबसे बड़े अंतरराष्ट्रीय कॉमेडियन बन गये. वह दर्शकों का इतने चहेते बन गये कि लोग उनकी एक झलक पाने को बेताब होने लगे. पहले और दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जब पूरी दुनिया दर्द झेल रही रही थी, तब 26 भाषाओं में चैप्लिन की फिल्में लोगों को कुछ देर गम भुलाने में मदद कर रही थी.
मूक अभिनय के बादशाह थे चार्ली
यूं तो चार्ली की सभी फिल्मों में उनकी अदाकारी सराहनीय रही, लेकिन चार्ली द्वारा बनायी गयी फिल्मों ‘ए वूमन ऑफ पेरिस, द गोल्ड रश, द सर्कस, सिटी लाइट्स, द ग्रेट डिटेक्टर, मॉन्सर बर्ड, लाइम लाइट, द किड इत्यादि फिल्में बहुत सराही गयीं. वर्ष 1928 तक मूक फिल्मों का दौर खत्म हो गया था तथा बोलती फिल्मों की शुरुआत हो चुकी थी, लेकिन चार्ली ने इस बात की परवाह नहीं की. उन्होंने वर्ष 1940 तक अपनी सभी फिल्मों में उन्होंने मूक अभिनय ही किया, क्योंकि चार्ली का कहना था कि जब उनका चेहरा ही सब कुछ बोलने में सक्षम है, तो वह संवाद बोलने के लिए अपनी आवाज का सहारा क्यों ले. वर्ष 1967 में यूनिवर्सल के बैनर तले बनी फिल्म ए काउंटेस फ्रॉम हांगकांग चार्ली की अंतिम फिल्म थी. उन्होंने कई फिल्मों की कहानी लिखी, उनमें अभिनय भी किया, उन फिल्मों को डायरेक्ट भी किया. वॉयलिन, पियानो और चेलो बजानेवाले चैप्लिन ने कई फिल्मों में संगीत भी खुद दिया. चार्ली ने अपनी आत्मकथा में बताया कि कैसे मां ने चार्ली को एक महान अभिनेता बना दिया.
दुनिया को हंसने का मंत्र दे गये
चार्ली ने छोटी और बड़ी अवधि की कुल 81 फिल्में की और हास्य भरे अभिनय से दुनियावालों का मनोरंजन किया तथा जीवन में मुश्किलों का भी हंसते-हंसते सामना करने का मूलमंत्र प्रदान किया. अपने अभिनय के जरिये चार्ली चैप्लिन ने राजनीति में फैली बुराइयों को भी निशाना बनाया. चार्ली 40 वर्ष तक अमेरिका में रहे, लेकिन उन्होंने कभी अमेरिका की नागरिकता हासिल नहीं की. फिल्मों में काम करने में सिलसिले में वह अमेरिका में आकर बसे थे. वर्ष 1952 में यूरोप की यात्रा के बाद वे स्विट्जरलैंड में ही बस गये. उसके बाद वर्ष 1972 में ही वह ऑस्कर पुरस्कार लेने के लिए अमेरिका गये थे. 25 दिसंबर, 1977 को स्विट्जरलैंड में चार्ली का देहावसान हो गया.
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