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National Science Day 2024: विज्ञान के ज्ञान में बढ़ रही हैं लड़कियों की उपलब्धियां, महिलाओं ने लिया चुनौतियों से लोहा

National Science Day 2024: राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर हम बात कर रहे हैं उन महिलाओं की जिन्होंने बीते वक्त में विज्ञान की दुनिया में अपनी नई पहचान और पहुंच बनाई है.

-रचना प्रियदर्शिनी-

National Science Day 2024: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी जैसे विषय को हमेशा से पुरुषों के वर्चस्व वाला विषय माना जाता रहा है. शायद यही कारण है कि आजादी से सात दशक बाद भी हमारे देश विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग एवं गणित (STEM) के क्षेत्र में महिलाओं की संख्या समानुपातिक नहीं है. दरअसल, काबिल होने के बावजूद भी पुरुषों के मुकाबले अपनी सामाजिक एवं पारिवारिक जिम्मेदारियों की वजह से महिलाओं के लिए विज्ञान की दुनिया में मुकाम हासिल करना कभी भी आसान नहीं रहा है. बावजूद इसके आनंदीबाई जोशी, जानकी अम्मल, कमला शोनोई, कमल रणदिवे, कमला सोहनी, आसिमा चटर्जी, कल्पना चावला, डॉ अदिति पंत, डॉ रितु करिधल जैसी महिलाओं ने अपनी काबिलियत के बूते तमाम चुनौतियों को पीछे छोड़कर विज्ञान का दामन थामा और अपने योगदानों से ऐसी लकीर खींच दी, जिसके लिए दुनिया हमेशा उनकी ऋणी है. इसी कड़ी में पेश है वर्तमान भारत के सरकारी स्कूलों में पढ़नेवाली बच्चियों की वैज्ञानिक उपलब्धियों की कहानी.

महिलाओं ने लहराया परचम

विज्ञान के क्षेत्र में बीते दो दशक पहले तक महिलाओं के लिए स्थिति वर्तमान समय के मुकाबले कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण थी, लेकिन, बीसवीं सदी उत्तरार्ध तक आते-आते कई महिलाओं ने इन चुनौतियों से लोहा लेना शुरू किया. नतीजा, कई ऐसे चेहरे सामने आये, जिनकी वैज्ञानिक उपलब्धियों ने इतिहास रच दिया. वर्तमान में भी कई ऐसी बच्चियां हैं, जो सुदूर इलाकों में रहते हुए और तमाम तरह की मुश्किलें तथा अभावों को झेलते हुए भी अपनी बौद्धिक क्षमता, मेहनत एवं काबिलियत के बूते विज्ञान के क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान बना रही हैं. महादेव हाइअर सेकेंड्री स्कूल, खुसरूपुर प्रखंड, जिला-पटना (बिहार) के 12वीं कक्षा की छात्रा निर्जला कुमारी 10 से 16 दिसंबर के बीच जापान में आयोजित SKURA साइंस एक्सचेंज प्रोग्राम के लिए चयनित होनेवाली अपने स्कूल की पहली और अब तक की एकमात्र बच्ची हैं. उन्होंने दसवीं कक्षा की स्टेट टॉपर (राज्य भर में चौथा स्थान) रही हैं. निर्जला बताती हैं- ‘’SKURA साइंस एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत बिहार राज्य से कुल पांच बच्चों (देश भर से कुल 60) का चयन हुआ था. इन सभी विद्यार्थियों को मैट्रिक परीक्षा में उनके द्वारा प्राप्त अंक और विज्ञान प्रतियोगिताओं में उनके प्रदर्शन व उपलब्धियों के आधार पर चयनित किया गया था. सभी चयनित छात्रों को एक महीने के लिए जापान ले जाकर सकुरा साइंस क्लब की गतिविधियों से परिचय करवाया गया था.

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National Science Day 2024: निर्जला कुमारी इससे पूर्व भारतीय विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी मंत्रालय द्वारा आयोजित INSPIRE (Innovation in Science Pursuit for Inspired Research) प्रोग्राम के लिए भी चयनित हो चुकी हैं और इसके तहत उन्होंने ऑटोमेटिक चलनी बना कर राज्य भर में 10वां स्थान हासिल किया था. जापानी शिक्षा व्यवस्था से रुबरु होने के बाद इस संबंध में अपने अनुभवों साझा करते हुए निर्जला कहती हैं- ‘’जापानी शिक्षा पद्धति की एक बात मुझे सबसे अच्छी लगी कि वहां हर बच्चे को उसकी रुचि एवं क्षमता के अनुसार पढ़ाया जाता है. रिजल्ट, ग्रेडिंग, स्कोरिंग आदि की बच्चों को कोई टेंशन नहीं होती है. वहां बच्चों को हर चीज प्रैक्टिकल तरीके से सीखने पर जोर दिया जाता है, जबकि हमारे यहां स्कूल में ढंग के प्रैक्टिकल रूम भी नहीं हैं. हमारे स्कूल में फिजिक्स तथा कैमिस्ट्री के लैब तो वर्षों से धूल फांक रहे हैं. सिर्फ बायो लैब ही ढंग का है और वो भी हमारी बायो टीचर निशी कुमारी जी के व्यक्तिगत प्रयासों के कारण. वह हम बच्चों को हमेशा आगे पढ़ने और इस तरह की प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए मोटिवेट करती रहती हैं. इसके अलावा घर में बीएससी ग्रेजुएट मां और पिता का भी भरपूर समर्थन मिलता है. निर्जला का छोटा भाई प्रभु नारायण पंडित भी विगत वर्ष इसरो ओरिएंटेशन प्रोग्राम के लिए चयनित हो चुका है. इसके अलावा, उसकी दो बड़ी बहनें भी वर्तमान में बीटेक कर रही हैं.

National Science Day 2024: बड़ी उड़ान

भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा इंस्पायर मानक अवॉर्ड योजना के तहत सरस्वती विद्या मंदिर, चिरकुंडा की सातवीं कक्षा की छात्रा दिव्या त्रिवेदी का चयन हुआ है. विद्यालय प्राचार्य अशोक कुमार वर्मा द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार इस प्रोग्राम के लिए विद्यालय से कुल पांच बच्चों ने हिस्सा लिया था, जिनमें से दिव्या त्रिवेदी का चयन एरोप्लेन क्रैश प्रोटेक्शन पर मॉडल प्रस्तुत करने के लिए किया गया. उन्हें यह विचार कहां से और कैसे आया, इस बारे में बात करते हुए दिव्या कहती हैं- ‘’कुछ महीने पहले मैं अपने परिवार के साथ हवाई यात्रा कर रही थी. इसी दौरान ख्याल आया कि अगर एरोप्लेन क्रैश हो जाये, तो क्या होगा? यही सोच कर मैंने इस कार्यक्रम के तहत मौका मिलने पर एरोप्लेन क्रैश प्रोटेक्शन मॉडल बनाया. बता दें कि इंस्पायर कार्यक्रम में चयनित होनेवाले बच्चों को 10 हजार रुपये नकद पुरस्कार दिया जाता है. दिव्या एक संयुक्त परिवार में रहती है. उसके पिता रेलवे कर्मचारी तथा मां हाउस वाइफ हैं. दिव्या को विज्ञान विषय में रुचि है, लेकिन वह बड़ी होकर एक साइंटिफिक आर्टिस्ट बनना चाहती है.

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पैरेंट्स और मामा से मिली रिसर्च क्षेत्र में आने की प्रेरणा

बचपन से ही विज्ञान विषय में गहरी रुचि रखनेवाली रोहिणी सिंह ने जवाहर नवोदय विद्यालय से अपनी 12वीं तक की शिक्षा पूरी करने के बाद पुणे से केमिकल इंजीनियरिंग में अपनी बीई तथा एमटेक की पढ़ाई पूरी की. उसके बाद IIT (ISM), धनबाद से पीएचडी तक का सफर तय किया. वर्तमान में वह RNGP-IT में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर पढ़ा रही हैं. साथ ही, NPTEL (National Program on Technology Enhanced Learning) कार्यक्रम के लिए अनुवादक का कार्य भी कर रही हैं.

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National Science Day 2024: जानिए रोहिणी की कहानी

मूल रूप से पटना के आलमगंज मुहल्ले की रहनेवाली रोहिणी के माता-पिता भी उच्च शिक्षा प्राप्त हैं. पिता बीआइटी, मेसरा से बीटेक (सिविल इंजीनियरिंग) से शिक्षा प्राप्त हैं. मां ने तो इतिहास विषय में पीएचडी की है. मामा ने भी ISM से माइनिंग इजीनियर की पढ़ाई की है. रोहिणी ने अपने परिजनों से प्रेरित होकर ही रिसर्च के क्षेत्र में आने का निर्णय लिया. रोहिणी बताती हैं कि ”जब मैं एमटेक में थी, तभी मैंने अपने दो पेपर जर्नल में पब्लिश करवाया था. इसके लिए मैंने पूरा का पूरा एक रिएक्टर खुद वेल्डर के पास दिन भर बैठ कर डिजाइन करवाया था. मेरे इस प्रयास को हर किसी ने काफी सराहा, जिससे मैं काफी मोटिवेट हुई. बता दें कि अब तक रोहिणी कई सारे शोध पत्रों और पुस्तक पाठों के लिए अपना योगदान दे चुकी हैं. इनमें से सात अंतर्राष्ट्रीय स्तर के शोध पत्र, एक राष्ट्रीय स्तर का शोध पत्र तथा नौ पुस्तक पाठ (अंतराष्ट्रीय स्तर की किताबों में) प्रकाशित हो चुके हैं. इनके अलावा, दो अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भी उनके पेपर्स का रिव्यू हो चुका है. आगे रोहणी अपने रिसर्च वर्क की संख्या को बढ़ाने का विचार रखती हैं. रोहिणी की छोटी बहन डॉ. रश्मि सिंह ने MDS कर रखा है और वर्तमान में भोपाल में कार्यरत है. छोटा भाई भी बीटेक करके हैदराबाद की एक कंपनी में कार्यरत है.

मानवीय मुद्दों के तकनीकी पहलुओं को समझने का है जुनून

पुणे सिटी के एक चैरिटेबल ट्रस्ट के द्वारा संचालित स्कूल से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद रुतुजा चौगले ने वहां के एक सरकारी कॉलेज से ही बीएससी इन एग्रीकल्चर की पढाई की. उसके बाद वर्ष 2019 में मृदा-विज्ञान एवं कृषि रसायन में एमएससी की डिग्री ली. इसीके साथ-साथ भी दूरस्थ शिक्षा के जरिए भी पब्लिक सर्विस में स्नातकोत्तर पूरा किया. उसके बाद रुतुजा ने तय किया कि वह बाकियों की तरह रिसर्च या अकादमी में जाने के बजाय पत्रकारिता में अपना करिअर बनाएंगी. रुतुजा कहती हैं- “मैंने विज्ञान विषय से अपनी पढ़ाई जरूर की है, लेकिन उनकी रुचि हमेशा से ही मानवीय मुद्दों के तकनीकी पहलुओं को उजागर करने रही है, खास तौर से जब बात महिलाओं अथवा लैंगिक विषयों की हो. रुतुजा कहती हैं- “मैं हमेशा तकनीकी विषयों के मानवीय पक्ष को उजागर करने का प्रयास करती हूं, क्यूंकि मुझे तकनीक एवं मानवीय पहलू- दोनों की समझ है.” उल्लेखनीय है कि कुछ समय पूर्व रुतुजा ने कोल्हापुर जिले की ग्रामीण महिलाओं के जीवन मे सकारात्मक बदलाव लाने की दिशा में कृत्रिम जलाशयों के योगदान पर आधारित एक स्टोरी की थी, जिसमें तकनीकी दृष्टिकोण से इस तथ्य की व्याख्या की गई है कि किस तरह कृत्रिम जलाशयों का निर्माण महिलाओं की तीन पीढ़ियों के जीवन में सकारात्मक बदलाव का साक्षी बन सकता है. रुतुजा के इस आलेख को कई मंचों पर काफी सराहा गया है.

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अभिभावकों और शिक्षकों दोनों की काउंसेलिंग है जरूरी

National Science Day 2024: SCERT, बिहार की संयुक्त निदेशक डॉ. रश्मि प्रभा का मानना है कि वर्तमान शिक्षा पद्धति का पूरा फोकस गतिविधि आधारित शिक्षा (Project Based Learning) पर है. NEP-2020 के आने के बाद से इस दिशा में काफी बदलाव आया है. साइंस फॉर सोसाइटी, बिहार के प्रेसिडेंट डॉ. अरुण कुमार का मानना है कि पिछले पांच-सात वर्षों में विज्ञान के क्षेत्र में लड़कियों की भागीदारी में तुलनात्मक रूप से उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. हालांकि दुखद पहलू यह है कि ज्यादातर सरकारी स्कूलों का रवैया इस दिशा में अब भी काफी उदासीन है. विज्ञान के क्षेत्र में लड़कियों की भागीदारी बढ़ाने के लिए अभिभावकों तथा शिक्षकों- दोनों की ही काउंसेलिंग होनी चाहिए. खास कर ग्रामीण इलाकों में, क्योंकि वहां के बच्चों में नैसर्गिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण होता है, जो उनकी जरूरतों, अभावों, आकांक्षाओं आदि से उपजता है. यही वजह है कि ग्रामीण बच्चे तुलनात्मक रूप से अधिक प्रतिभाशाली होते हैं. फिर भी हमारी कोशिश होती है कि हम शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों की समान भागीदारी हो. साइंस फॉर सोसाइटी, झारखंड के जनरल सेक्रेट्री डीएनएस आनंद की राय भी समान है. वह बताते हैं कि हमारी संस्था झारखंड के कुल 24 जिलों कार्यरत है. मेरा अनुभव है कि आदिवासी समाज में लड़कों की तुलना में लड़कियां पढ़ाई तथा करियर- दोनों ही क्षेत्रों में तुलनात्मक रूप से बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं.

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