प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की मेहनत गुजरात में रंग ला रही है. भारतीय जनता पार्टी रिकॉर्ड सीटों पर चुनाव जीतती दिख रही है. दोपहर तक के रूझान देखें तो भाजपा 155 से ज्यादा सीटों पर आगे चल रही है. अगर ऐसा होता है तो यह गुजरात विधानसभा चुनाओं में भाजपा की सबसे बड़ी जीत होगी. गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए भी नरेंद्र मोदी इतने सीटों पर कभी नहीं जीते थे.
इसी साल मोरबी ब्रिज हादसे के बाद कयास लगाये जा रहे थे कि भाजपा को विधानसभा चुनाव में नुकसान हो सकता है. लेकिन ऐसा हुआ नहीं, जीत की ओर बढ़ रही भाजपा ने शपथग्रहण के लिए 12 दिसंबर की तारीख तय कर दी है. मोरबी ब्रिज हादसे के बाद भी वहीं के भाजपा नेता कांतिलाल अमृतिया भी आगे चल रहे हैं. भाजपा की इस बढ़त ने सोशल मीडिया का पारा गर्म कर दिया है. यूजर्स तरह-तरह के कमेंट कर रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह को जीत का श्रेय दिया जा रहा है.
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एक ओर बीजेपी की तारीफ हो रही है कि 27 साल से लगातार सत्ता में रहने के बाद भाजपा ने आम लोगों के बीच विश्वास बनाये रखा है. तो दूसरी तरफ विपक्षी दल इस परिणाम को भाजपा के धार्मिक एजेंडे से जोड़ रहे हैं और कह रहे हैं बीजेपी अपने धार्मिक एजेंडे वाले मकसद में कामयाब हो गयी है. भाजपा जहां रिकॉर्ड जीत की ओर बढ़ रहा है, वहीं, कांग्रेस को सीटों के मामले में एक बार फिर नुकसान होते दिख रहा है.
आंकड़े देखें तो गुजरात में पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा की बहुमत की सरकार जरूर बनी थी, लेकिन पार्टी को केवल 99 सीटों से संतोष करना पड़ा था. पिछली बार कांग्रेस ने गुजरात में 77 सीटें जीती थीं, जो इस साल 16 सीटों पर सिमटती दिख रही है. पिछले 27 साल से सत्ता में काबिज बीजेपी को इस बार काफी मेहनत करनी पड़ी है. चुनावी मोर्चे की कमान खुद पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह संभाल रहे थे. पीएम मोदी ने कई चुनावी रैलियां की और अपने कार्यकर्ताओं को सचेत रहने को कहा.
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नरेंद्र मोदी और अमित शाह के चुनाव प्रचार पर वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक दिलीप गोहिल ने बीबीसी हिंदी से कहा कि जो पार्टी चुनाव जीतना चाहती है, वह ज्यदा प्रचार प्रसार करती ही है. उन्होंने कहा कि जहां तक मोदी और शाह के चुनाव प्रचार की बात है तो एक बात जान लें कि भाजपा ने यहां अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार बदल दिया था, तो यह चुनाव नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ा जा रहा था. ऐसे में उन्हें तो जमकर प्रचार करना ही था. इसके साथ ही भाजपा को अपने कोर समर्थकों को जोड़े रखना था और इसके लिए गुजरात में नरेंद्र मोदी को आज भी एक बड़ा चेहरा माना जाता है, इसलिए उन्होंने ज्यादा चुनावी सभाएं की.
अब कांग्रेस की बात करें तो कांग्रेस के प्रमुख नेता राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा में व्यस्त रहे. यहां तक कि उन्हें गुजरात चुनाव में भी ज्यादा रैलियां और सभाएं करते नहीं देखा गया. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राष्ट्रीय पार्टियों के राष्ट्रीय नेताओं को भी विधानसभा चुनाव में उतनी ही मेहनत करनी चाहिए, जितना पार्टी के क्षेत्रीय नेता करते हैं. कांग्रेस नेता नरेंद्र मोदी के चुनाव प्रचार पर तंज कसने में ही व्यस्त रहे, जबकि बीजेपी ने अपने एजेंडे को सभी लोगों को बताने का काम किया.
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30 अक्टूबर को मोरबी पुल हादसे में 130 लोगों की जान चली गयी थी. इस पुल पर करीब 500 लोग चढ़े हुए थे, जिसकी क्षमता 125 से 150 बतायी जा रही थी. इस हादसे को एक बड़ी प्रशासनिक गलती बतायी गयी और आनन-फानन में जांच कर आठ लोगों को गिरफ्तार भी किया गया. हादसे के बाद लोगों की जान बचाने वाले कांतिलाल अमृतिया को भाजपा ने उम्मीदवार बनाया था और वह 10,000 से अधिक वोट से आगे चल रहे हैं. माना जा रहा है कि मच्छु नदी में कूदकर लोगों की जान बचने वाले अमृतिया को लोगों ने आशीर्वाद दिया है और इसी वजह से उन्हें इतने वोट मिले हैं.
विधानसभा चुनाव के लिए मतदान के ठीक बाद टीवी9 ने मुख्यमंत्री के सवाल पर एक सर्वे कराया था. इस सर्वे की मानें तो करीब 68 फीसदी लोग भूपेंद्र पटेल को ही मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं. जबकि दूसरे नंबर पर परेश धानाणी हैं, जिन्हें करीब 16 फीसदी लोग मुख्यमंत्री का चेहरा मान रहे हैं. इशुदान गढ़वी करीब 15 फीसदी लोगों की पसंद बने हैं. ऐसे में एक बार फिर भूपेंद्र पटेल के मुख्यमंत्री बनने की संभावना सबसे ज्यादा है. हालांकि चुनाव से पहले भाजपा ने स्पष्ट नहीं किया है कि मुख्यमंत्री कौन होगा. भूपेंद्र पटेल ने 2017 में घटलोडिया सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार शशिकांत भूराभाई को 1 लाख 17 हजार वोटों के अंतर से हराया था.