डॉ रचना गुप्ता
शिमला
कंगना को हर हाल में जिताने पर भाजपा ने लगाया पूरा दम, विधानसभा हलकों में नहीं कर पाई अच्छा प्रदर्शन
जयराम को कंगना पर केंद्रित करने से विधानसभा में भुगतना पड़ा खामियाजा
हिमाचल में लोकसभा चुनाव में भाजपा की नीति और असेंबली बाय इलेक्शन में कमल को झटका, प्रदेश में नए राजनीतिक समीकरणों को पैदा कर गया है. भाजपा का पूरा फोकस लोकसभा चुनावों पर था और पार्टी ने एक से एक बड़े नेता को लोकसभा चुनाव प्रचार में झोंक दिया था. इसके विपरीत राज्य कांग्रेस का पूरा ध्यान विधानसभा उपचुनावों पर केंद्रित था. इसलिए दोनों दलों की चुनावी प्राथमिकताएं अलग-अलग हो गई थीं, वर्ना लोकसभा चुनावों में भी भाजपा पर प्रभाव पड़ सकता था.
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भाजपा की हिमाचल में 4 संसदीय सीटों पर जीत हो गई है परंतु जीत का कम हुआ मतांतर बता रहा है कि हिमाचल में हालात ठीक नहीं थे. मंडी सीट जहां से भाजपा को कभी चार लाख तक की लीड मिलती थी, वहां से एक्ट्रेस कंगना रनौत को विक्रमादित्य ने कड़ी टक्कर दी है. वोट अंतर करीब ( 75 हजार- दो बजे तक के हिसाब से) तक सिमट गया. वह भी तब जब कंगना के लिए पूर्व सीएम जयराम ठाकुर ने एक भी दिन के लिए मंडी नहीं छोड़ी. वहीं मोदी, गडकरी, और योगी तक ने कंगना के लिए वोट मांगे थे. चूंकि जयराम ठाकुर, मंडी को मजबूती से पकड़े रखने को मजबूर हुए, उससे उपचुनावों में भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा है.
एक कंगना को बचाने के लिए पूरी भाजपा, कार्यकर्ताओं व विधायकों की ताकत लग गई. हिमाचल में धर्मशाला, लाहौल स्पीति, सुजानपुर, बड़सर, गगरेट और कुटलेहर में उपचुनाव थे. चार सीटों पर कांग्रेस और दो पर भाजपा ने जीत दर्ज की. जबकि संसदीय चार सीटों मंडी, हमीरपुर, कांगड़ा और शिमला में भाजपा के उम्मीदवारों कंगना रनौत, अनुराग ठाकुर, राजीव भारद्वाज और सुरेश कश्यप ने जीत दर्ज की.
मंडी में कंगना 74,755 वोटों से, शिमला में सुरेश कश्यप 91,451, हमीरपुर में अनुराग ठाकुर 1,82,357 और कांगड़ा में डा राजीव भारद्वाज ने 2,51,895वोटों से जीत हासिल की. जबकि 2019 में भाजपा ने मंडी में 405459 वोट, कांगड़ा में 477623 वोट, हमीरपुर में 399572 वोट और शिमला में 327514 वोटों के भारी अंतर से जीत दर्ज की थी.
भले ही भाजपा हिमाचल में लोकसभा जीती हो परन्तु पार्टी को आत्म विश्लेषण की जरूरत है. पार्टी को देखना होगा कि कार्यकर्ताओं व वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी करने का कुप्रभाव हो सकता है. वहीं दिल्ली की राज्यों में जरूरत से ज्यादा दखलअंदाजी भी अपना रंगा दिखा कर गई है. नौकरियां, पेंशन व कर्मचारी हितों का मुद्दा भी इन चुनावों में हावी रहा है.
हिमाचल विश्लेषण