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Lok Sabha Election: जनता दल से जब तस्लीमउद्दीन का अंतिम क्षण में कट गया था टिकट

Lok Sabha Election तस्लीमउद्दीन क्रांति मोर्चा के बैनर तले कई वर्षों तक सीमांचल के हक-हकूक के लिए सड़कों पर सघर्ष करते रहे. 1995 में वे जोकीहाट विधानसभा से समाजवादी पार्टी की टिकट पर विधायक निर्वाचित हुए.

पूर्णिया से अरूण कुमार

Lok Sabha Election वह 1991 का दौर था जब देश में मंडल और मंदिर का माहौल गर्म था. राम जन्मभूमि, बाबरी मस्जिद और मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने के विरोध में यह चुनाव लड़ा जा रहा था. 1989 के लोकसभा चुनाव में पूर्णिया सीट से मो. तस्लीमउद्दीन जनतादल के टिकट से जीते थे. लेकिन 1989 में हुए आम चुनाव के 16 महीने बाद ही नौवीं लोकसभा भंग कर दी गयी थी और 10 वीं लोकसभा के लिए 1991 में मध्यावधि चुनाव का सामना करना पड़ा. मो. तस्लीमउद्दीन पूर्णिया से किशनगंज शिफ्ट कर गये और वहां से जनता दल के भरोसे नामांकन दाखिल कर दिया.

पूर्णिया सीट माकपा के खाते में चली गयी थी

पुराने समाजवादी प्रो. आलोक कुमार बताते हैं कि 1991 के लोकसभा चुनाव में पूर्णिया सीट माकपा के खाते में चली गयी थी. इसलिए तस्लीम साहब को किशनगंज जाना पड़ा. तय यह हुआ था कि पूर्णिया सीट गठबंधन के तहत माकपा विधायक अजीत सरकार लड़ेंगे और किशनगंज सीट से जनतादल की टिकट पर तस्लीम साहेब लड़ेंगे. इसी योजना के तहत तस्लीम साहब ने वहां पर्चा भी भर दिया और अपने प्रचार-प्रसार में लग गये. तब नामांकन के दौरान मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के प्रत्याशी को सिम्बॅाल जमा करना अनिवार्य नहीं होता था. प्रक्रिया के तहत नामांकन दाखिल करने के अंतिम दिन तक पार्टी का सिम्बॅाल जमा कर सकते थे. इस आसरे में कि पार्टी का सिम्बॅाल अंतिम दिन तक आ ही जायेगा, तस्लीम साहब ने पर्चा पहले ही भर दिया था.

अंतिम क्षण में हेलीकाप्टर से पहुंचे थे पूर्णिया

कहते हैं कि राजनीति में कब किसका पत्ता कट जाये और कब किसका जुड़ जाये, किसी को पता नहीं होता है. हुआ भी कुछ ऐसा ही. इधर, तस्लीम साहेब पार्टी के सिम्बॅाल आने के इंतजार में रहे उधर नामांकन दाखिल करने के अंतिम दिन और अंतिम क्षण में हेलीकाप्टर से सैयद शहाबुद्दीन सिम्बॅाल लेकर किशनगंज पहुंच गये. पूर्व आईएफएस सैयद शहाबुद्दीन उस वक्त बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के बड़े नेता के रूप में उभरे थे. जैसे ही जानकारी राजनीतिक गलियारों में पहुंची, वैसे ही खलबली मच गयी. आखिरकार तस्लीमउद्दीन को जनतादल में होते हुए छाता छाप पर निर्दलीय चुनाव लड़ना पड़ा. हालांकि इस चुनाव में सैयद शहाबुद्दीन जीत गये और तस्लीम साहेब को लंबे दिनों तक संघर्ष करना पड़ा.

लालू-तस्लीम की दोस्ती कैसे दोस्ती दुश्मनी में बदल गयी

उस समय बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद थे. इस घटना के बाद से लालू-तस्लीम के बीच चली आ रही पुरानी दोस्ती दुश्मनी में बदल गयी. तस्लीमउद्दीन क्रांति मोर्चा के बैनर तले कई वर्षों तक सीमांचल के हक-हकूक के लिए सड़कों पर सघर्ष करते रहे. 1995 में वे जोकीहाट विधानसभा से समाजवादी पार्टी की टिकट पर विधायक निर्वाचित हुए. इसके कुछ ही महीने बाद वे लालू प्रसाद के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतादल में शामिल हो गये. 1996 में वे केंद्रीय गृह राज्य मंत्री भी बने.

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