तृप्ति, संपादिका – इ-जर्नल टाइम्स मैगजीन
लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. कुछ दिन पहले जब इसकी उल्टी गिनती शुरू हो रही थी तो ऑनलाइन पत्रिका -ई-जर्नल टाइम्स की तरफ से 1000 एनआरआई सदस्यों के एक समूह के बीच एक सामान्य सर्वेक्षण का प्रयास किया गया, जिनमे उनसे पूछा गया था कि “आपके अनुसार भारत के अंतरराष्ट्रीय संबंधों का कौन सा पहलू चुनाव के बाद आने वाली सरकार के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए?”
लोकसभा चुनाव : किन लोगों ने रखी अपनी बात
यह सवाल किसी राजनीतिक व्यक्ति-विशेष के प्रति लोगों का रुझान जानने के लिए नहीं किया था, बल्कि उन भारतीयों के विचार और भावनाओं को जानने के प्रयास के लिए था, जो भारत में नौकरी, पढाई, व्यवसाय या अन्य कारणों से वर्तमान में नहीं हैं. ये लोग वे हैं, जो भारत के रंग को जानते हैं और छुपी हुई कमियों के साथ उसकी क्षमता को भी पहचानते हैं, साथ ही वे दुनिया में एक आर्थिक और तकनीकी रूप से मजबूत देश की छवि रखने वाले अमेरिका में भी समय व्यतीत कर रहे हैं.
दो विपरीत सांस्कृतिक देश के स्वादों का अनुभव
उनके पास दो विपरीत सांस्कृतिक लेकिन लोकतान्त्रिक देश के स्वादों का अनुभव है, इस बात को समझते हुए एक ऐसा सवाल उनके सामने रखा जाना जरूरी था, जो निष्पक्षता से उत्तर देने की अपील करता हो और सीधे अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत की साख और तरक्की से जुड़े मुद्दों की वकालत करता हो.
इस प्रश्न के जवाब के रूप में उन्हें 5 विकल्प दिए गए थे. वे विकल्प थे-
- पड़ोसी देशों के साथ रिश्ते मजबूत करना
- वैश्विक गठबंधनों और साझेदारियों का विस्तार करना
- आर्थिक कूटनीति और व्यापार संबंधों को बढ़ावा देना
- अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में सक्रिय भागीदारी और
- राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा सहयोग बढ़ाना
भावी भारतीय सरकार से इस मुद्दे पर ध्यान देने की मांग
अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में ये सभी ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दे हैं, जो भावी भारतीय सरकार से ध्यान देने की मांग करते हैं. इस सर्वेक्षण में राजनयिक, आर्थिक और सुरक्षा-संबंधी उद्देश्यों को शामिल करते हुए विकल्प प्रस्तुत किए गए. इन विकल्पों में से, दो स्पष्ट अग्रदूत उभर कर सामने आये, और वे थे : “आर्थिक कूटनीति और व्यापार संबंधों को बढ़ावा देना”, और “राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा सहयोग को बढ़ाना.”
आर्थिक विकास को बढ़ावा देने की मांग
इन दोनों विकल्पों के लिए मिले भारी समर्थन भारतीय प्रवासियों की नजर में चुनाव के मुद्दे पर उनके सर्वोपरि महत्व को रेखांकित करता है. ऐसे समय में जब वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताएं और भू-राजनीतिक तनाव बड़े पैमाने पर हैं, एनआरआई आने वाली भारतीय सरकार के लिए आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने वाली पहल को प्राथमिकता देने के लिए एक मजबूत जनादेश का संकेत दे रहे हैं.
बहुमुखी विकास मॉडल देश के बाहर भी पाया जा सकता है
आर्थिक कूटनीति और व्यापार संबंधों को बढ़ावा देना उनकी भावनाओं के साथ गहराई से मेल खाता है. ये लोग भारत की वैश्विक स्थिति में आर्थिक समृद्धि की महत्वपूर्ण भूमिका को पहचानते हैं. इस बात से बिल्कुल मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि व्यापारिक संबंधों को मजबूत करने और आर्थिक साझेदारी को बढ़ावा देने से बहुमुखी विकास मॉडल को न केवल देश के भीतर, बल्कि बाहर भी पाया जा सकता है. यह केवल रोजगार सृजन के मुद्दे के लिए नहीं है, बल्कि भारत को आतंरिक रूप से मज़बूत बनाने के लिए भी मायने रखता है.
विश्व मंच पर भारत का ताकतवर होना बहुत जरूरी
लोगों का मानना है कि विश्व मंच पर भारत का ताकतवर होना बहुत जरूरी है, जिसके पीछे भी कई सारे जरूरी कारण छिपे हैं और वैश्विक राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक स्थिरता की वकालत करते हैं.
अमेरिका में रह रहे अप्रवासी भारतीय “अमेरिका के व्यापार और विकास मॉडल” को देख रहे हैं, और साथ ही भारत की आर्थिक सफलता में गहराई से निवेशित भी हैं, इसलिए इस सर्वेक्षण में वे ऐसी नीतियों की वकालत कर रहे हैं, जो व्यापार और निवेश प्रवाह को सुविधाजनक बनाये, उद्यमशीलता को बढ़ावा दे और भारत की आर्थिक क्षमता का पूरा उपयोग हो. दरअसल, “आर्थिक गतिविधियों का प्रवाह” यह एक माध्यम के रूप में वैश्विक शक्ति स्थिति भी है, जो भारत और सभी भारतीयों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है.
अर्थव्यवस्था में सरकार की भूमिका भारत और USA के बीच बहुत ही भिन्न
लोगों का यह मानना है कि अर्थव्यवस्था में सरकार की भूमिका भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच बहुत ही भिन्न है. संयुक्त राज्य अमेरिका में आम तौर पर सीमित सरकारी हस्तक्षेप के साथ अधिक बाजार-उन्मुख दृष्टिकोण है, जबकि भारत की अर्थव्यवस्था में अब तक ऐतिहासिक रूप से आर्थिक योजना, विनियमन और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में सरकार की अधिक प्रमुख भूमिका की विशेषता रही है. अमेरिका एक अत्यधिक औद्योगिक और तकनीकी रूप से उन्नत अर्थव्यवस्था है, जो कई बहुराष्ट्रीय निगमों, अग्रणी अनुसंधान संस्थानों और अत्याधुनिक नवाचार केंद्रों का घर है. भारत तेजी से औद्योगीकरण और तकनीकी प्रगति के दौर से गुजर रहा है, लेकिन इसे अभी भी बुनियादी ढांचे, कौशल विकास और प्रौद्योगिकी तक पहुंच में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. इसके साथ ही अमेरिका की अर्थव्यवस्था विविध और उन्नत है, जिसमें सेवाओं, विनिर्माण, प्रौद्योगिकी और नवाचार पर जोर दिया जाता है. दूसरी ओर, भारत की अर्थव्यवस्था एक महत्वपूर्ण अनौपचारिक क्षेत्र और एक बड़ी ग्रामीण आबादी के साथ कृषि, विनिर्माण और सेवाओं के मिश्रण की विशेषता है.
मौजूदा सरकार के प्रयास से वे खुश हैं या नहीं
हालाँकि इस सन्दर्भ में लोगों की मिली-जुली प्रतिक्रियाएं हैं कि मौजूदा सरकार के प्रयास से वे खुश हैं या नहीं. कई सारे बिंदु हैं जिनमे सहमति और असहमति का वातावरण है लेकिन फिर भी वे यह स्वीकार भी कर रहे हैं कि भारतीय सरकार लगातार इस दिशा में प्रयास कर रही है लेकिन प्रयासों की गति और तेज होनी चाहिए.
अगर देखा जाये तो भारत वैश्विक स्तर पर अपने आर्थिक संबंधों को बढ़ाने के लिए कई प्रमुख व्यापार समझौतों में सक्रिय रूप से लगा हुआ है. भारत ने क्षेत्रीय और द्विपक्षीय वार्ताओं में सक्रिय रूप से शामिल होकर व्यापार के लिए एक सक्रिय दृष्टिकोण अपनाया है. देश अपने निर्यात बाजारों में विविधता लाना चाहता है और घरेलू विनिर्माण के लिए आवश्यक कच्चे माल और पूंजीगत वस्तुओं तक पहुंच सुनिश्चित करना चाहता है.
भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच व्यापार संबंध आशाजनक
अगर आप “इंटरनेशनल ट्रेड आर्गेनाइजेशन” की हालिया प्रकाशित रिपोर्ट पर गौर करें तो भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच व्यापार संबंध आशाजनक है, 2022 में दोनों देशों के बीच वस्तुओं और सेवाओं में व्यापार की मात्रा 191 बिलियन डॉलर से अधिक हो जाएगी. मुद्रास्फीति के दबाव और आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान जैसी चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, भारत की अर्थव्यवस्था सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनी हुई है. भारत सरकार की एफडीआई पहल सूचना प्रौद्योगिकी सेवाओं, सॉफ्टवेयर, व्यावसायिक सेवाओं, फार्मास्यूटिकल्स और औद्योगिक उपकरण सहित कई क्षेत्रों पर केंद्रित है. भारत में एफडीआई के सबसे बड़े एकल स्रोत के रूप में, संयुक्त राज्य अमेरिका इस द्विपक्षीय साझेदारी में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है.
भारत कई अमेरिकी निर्यातकों के लिए एक आकर्षक गंतव्य
हालाँकि, टैरिफ, स्थानीयकरण आवश्यकताओं, स्वदेशी मानक अधिदेश, लेबलिंग प्रथाओं, मूल्य नियंत्रण और आयात प्रतिबंधों जैसी बाजार पहुंच बाधाओं के कारण अमेरिकी उद्यमों को भारत में बाजार पहुंच चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, विशेष रूप से सरकारी खरीद में. इन चुनौतियों के बावजूद, भारत कई अमेरिकी निर्यातकों के लिए एक आकर्षक गंतव्य बना हुआ है, खासकर सूचना प्रौद्योगिकी, दूरसंचार, फार्मास्यूटिकल्स, कपड़ा और इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों में. इस गतिशील बाजार में सफल होने के लिए, भारत में काम करने वाली अमेरिकी कंपनियों को दीर्घकालिक योजना क्षितिज और क्षेत्रीय परिस्थितियों के अनुसार रणनीतियों को अनुकूलित करने के लचीलेपन को बनाए रखना होगा.
इस रिपोर्ट में यह कहा गया है कि भारत-अमेरिका में परिचालन करने वाले व्यवसायों के लिए अवसरों कि कमी नहीं है लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं हैं. एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक भारत का नियामक वातावरण अपनी नौकरशाही, असंगत नीति कार्यान्वयन, कानूनी चुनौतियों और विवादों, बुनियादी ढांचे की बाधाओं, श्रम कानूनों और विनियमों और अनुपालन और रिपोर्टिंग आवश्यकताओं के कारण विदेशी निवेशकों के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती है.
जटिलताओं को विदेशी निवेशकों के लिए दूर करना, और एक आसान व पारदर्शी प्रक्रिया के द्वारा व्यापारिक माहौल का निर्माण करना एक महत्वपूर्ण रणनीति है जो भू-राजनीतीक परिवेश में चक्रव्यूह तोड़ने के समान है. एक दूसरी समस्या जो तकनीकी व्यापार समझौते में है , वह है डेटा व अन्य तकनीकी सुरक्षा की, जिसके लिए अप्रवासी जनता नई सरकार में एक बेहद कुशल राजनितिक चेहरे को ढूंढ रही है . जिस तरीके से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उथल पुथल चल रही है , ऐसे में व्यापार-व्यवसाय की सफलता के लिए भारत को ऐसी सरकार चाहिए जो वैश्विक आर्थिक सांस्कृतिकता की कूटनीति को मांजे, और अवसरों को हाथ से न जाने दे.
यह तो हम सभी देख ही रहे हैं की कैसे एक मजबूत अर्थव्यवस्था वाला देश अंतरराष्ट्रीय मंचों और वार्ताओं में अधिक लाभ लेता है. इसी तरह भारत की आर्थिक सफलता उसके सांस्कृतिक प्रभाव, कूटनीतिक स्थिति और वैश्विक प्रतिष्ठा को बढ़ा सकती है, और अंततः विश्व मंच पर उसकी नरम शक्ति को प्रदर्शित कर सकती है. आर्थिक ताकत किसी देश की नरम शक्ति, या जबरदस्ती के बजाय आकर्षण और अनुनय के माध्यम से दूसरों को प्रभावित करने की क्षमता को बढ़ाती है.
इसके साथ ही, दूसरा जो सबसे महत्वपूर्ण विकल्प चुना गया, वह था – “राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा सहयोग बढ़ाने का आह्वान” जो कि बढ़ती अस्थिर दुनिया में भारत के हितों की सुरक्षा के बारे में अप्रवासी भारतीयों की चिंताओं को दर्शाता है. आतंकवाद, सीमा विवाद और साइबर युद्ध सहित कई मोर्चों से उत्पन्न होने वाले सुरक्षा खतरों के साथ, एनआरआई भारत की रक्षा क्षमताओं को बढ़ाने और समान विचारधारा वाले देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी बनाने की अनिवार्यता पर विचारशील हैं. राष्ट्रीय सुरक्षा को प्राथमिकता देकर, आने वाली सरकार अपने अप्रवासी भारतीयों के बीच विश्वास पैदा कर सकती है और उन्हें अपने नागरिकों और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए भारत की प्रतिबद्धता के बारे में आश्वस्त कर सकती है. हालाँकि यहाँ पर पुनः कहना होगा कि अपने अनिवासी भारतीय (एनआरआई) समुदाय को सहायता प्रदान करने के भारत सरकार के प्रयास सराहनीय हैं. दूतावास और वाणिज्य दूतावास सेवाओं से लेकर कानूनी सहायता और शिकायत निवारण तक, सरकार ने विदेशों में रहने वाले भारतीयों की चिंताओं को दूर करने के लिए कई कदम उठाए हैं.
लेकिन इस सर्वेक्षण का महत्व विदेशों में रह रहे भारतीयों की प्राथमिकताओं से कहीं अधिक है; यह वैश्विक क्षेत्र में भारत की उभरती भूमिका को दर्शाता है. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और उभरती आर्थिक शक्ति के रूप में, भारत अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है. आगामी लोकसभा चुनाव में भारतीय मतदाताओं द्वारा चुना गया विकल्प न केवल देश के घरेलू प्रक्षेप पथ को आकार देगा, बल्कि वैश्विक मंच पर भी इसकी गूंज सुनाई देगी.
भू-राजनीतिक पुनर्गठन और बदलते गठबंधनों की पृष्ठभूमि में, भारत के रणनीतिक निर्णयों का क्षेत्रीय स्थिरता और वैश्विक शासन पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा. अप्रवासी भारतीयों ने जिस विकल्प को महत्वपूर्ण समझा है , उसके अंतर्गत आने वाली सरकार एक ऐसा रास्ता तय कर सकती है जो एक जिम्मेदार वैश्विक नेता के रूप में उभरने की भारत की आकांक्षाओं के अनुरूप हो.
भारतीय चाहे देश के अंदर हों या विदेश में, वे नीति निर्माताओं को एक स्पष्ट संदेश देना चाहते हैं कि भारत को प्रगति और समृद्धि के पथ पर आगे बढ़ाने के लिए साहसिक, निर्णायक कार्रवाई का समय आ गया है. आर्थिक कूटनीति की क्षमता का उपयोग करके और राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करके, भारत आत्मविश्वास के साथ अंतरराष्ट्रीय राजनीति की जटिलताओं को पार कर सकता है और विश्व मंच पर अपनी सही जगह का दावा कर सकता है. महात्मा गांधी के शब्दों में, “भविष्य इस पर निर्भर करता है कि आप आज क्या करते हैं.”
भारतीय इस बात को भी मज़बूती से स्वीकार कर रहे हैं कि चुनाव का दृष्टिकोण और नतीजा इस बात पर भी निर्भर करेगा कि देश का मीडिया किस रूप में जनता को विकास से सम्बंधित सही रिपोर्टिग दिखा रहा है!
इसलिए चुनाव से पहले सम्बंधित छोटे- छोटे और बड़े हर मुद्दे जनता के सामने आने चाहिए और तरीके से अनुसंधान के साथ आने चाहिए, शोर के रूप में नहीं, प्रचारक के रूप में नहीं ! (लेखिका मूल रूप से पटना की रहने वाली हैं. वर्तमान में अमेरिका के ओहियो में रहती हैं. यह उनके निजी विचार हैं)