हबीब तनवीर हिंदी रंगमंच की ऐसी शख्सीयत थे जिनकी जगह कोई नहीं ले सकता है. उन्होंने आगरा बाजार (1954) और चरणदास चोर (1975) जैसे कालजयी नाटक को लिखा. उनकी जयंती पर जानें उनसे जुड़ी कुछ खास बातें.
उर्दू शायर नजीर अकबरावादी के फलसफे और जिंदगी पर आधारित नाटक ‘आगरा बाजार’ हो या फिर शूद्रक के संस्कृत नाटक ‘मृच्छकटिकम’ पर आधारित ‘मिट्टी की गाड़ी’, हबीब तनवीर अपने नाटकों के जरिये अवाम को हमेशा गंगा-जमुनी तहजीब से जोड़े रहे. लोक परंपराओं में तनवीर का गहरा यकीन था. वे सही मायनों में एक लोकधर्मी आधुनिक नाटककार थे. उन्होंने जिस महारथ से आधुनिक रंगमंच में लोक का इस्तेमाल किया, वह विरलों के ही बस की बात है.
उन्होंने रंगमंच में उस वक्त प्रचलित विभिन्न धाराओं के बरअक्स एक अलग ही तरह की रंगभाषा ईजाद की. एक नया रंग मुहावरा गढ़ा. लोक भाषा और दीगर मानक भाषाओं के बीच आवाजाही के रिश्ते से बनी हबीब तनवीर की रंग भाषा, आगे चलकर नये सौन्दर्यशास्त्र का आधार बनी.
नाटक में जिस लोकधर्मी ख्याल का हम तसव्वुर करते हैं, वह हबीब तनवीर के कमोबेश सभी नाटकों में मौजूद है. हालांकि ये उनका जोखिम भरा कदम था, लेकिन वे इसमें न सिर्फ कामयाब हुए, बल्कि भारतीय रंगमंच में एक नयी शैली चल निकली, ‘हबीब तनवीर शैली’. इस शैली का उनके बाद आये कई ड्रामानिगारों ने अनुसरण किया, लेकिन ये ड्रामानिगार अपने नाटकों में वह चमत्कार पैदा नहीं कर पाये, जो हबीब तनवीर ने थोड़े से समय में ही कर दिखाया था.
आगरा बाजार (1954)
शतरंज के मोहरे (1954)
लाला शोहरत राय (1954)
मिट्टी की गाड़ी (1958)
गांव का नाम ससुराल मोर नाम दामाद (1973)
चरणदास चोर (1975)
पोंगा पंडित
द ब्रोकन ब्रिज (1995)
जहरीली हवा (2002)
राज रक्त (2006)
फिल्में
फुटपाथ (1953)
राही (1953)
चरणदास चोर (1975)[3]
गांधी (1982)
ये वो मंजिल तो नहीं (1987)
हीरो हीरालाल (1988)
प्रहार (1991)
द बर्निंग सीजन (1993)
द राइजिंग: मंगल पांडे (2005)
ब्लैक & व्हाइट (2008)
सम्मान और पुरस्कार
संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (1969)
पद्मश्री (1983)
संगीत नाटक एकादमी फेलोशिप (1996)
पद्म भूषण (2002)
कालिदास सम्मान (1990)
1972 से 1978 तक राज्यसभा सदस्य
नाटक ‘चरणदास चोर’ एडिनवर्ग इंटरनेशनल ड्रामा फेस्टीवल (1982) में पुरस्कृत होने वाला पहला भारतीय नाटक था.