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Bokaro की नैना सरीन की बॉलीवुड जर्नी नहीं रही है आसान, लुक ही नहीं सोशल मीडिया में कम फॉलोअर्स की वजह से भी हुईं हैं कई बार रिजेक्ट

bokaro की नैना सरीन ने एफटीआईआई से एक्टिंग की ट्रेनिंग ली है,उन्हें पहला मौका क्विकर की ऐडफिल्म में मिला था, जिसके लिए उन्हें 60 बार ऑडिशन से गुजरना पड़ा था और भी बहुत कुछ उन्होंने इस इंटरव्यू में किया है साझा

bokaro की नैना सरीन इनदिनों नेटफ्लिक्स की वेब सीरीज त्रिभुवन मिश्रा सीए टॉपर में अशोकलता की अहम भूमिका में नजर आ रही हैं.बोकारो में पली बढ़ी नैना मुंबई में साल 2017 से संघर्षरत हैं. अब तक वह कई ऐड फिल्मों, वेब सीरीज और फिल्मों का हिस्सा रही हैं, लेकिन इस सीरीज ने उन्हें आमलोगों से जोड़ दिया है क्योंकि सी ए टॉपर की रिलीज के बाद से उन्हें उनके अपने शहर बोकारो से सबसे ज्यादा कॉल आये हैं. बोकारो से बॉलीवुड की उनकी जर्नी संघर्ष के साथ – साथ जिद और जूनून की भी कहानी है.उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश

बोकारो से ही ऑडिशन वीडियो भेजा था 

सी ए टॉपर त्रिभुवन मिश्रा में अशोक लता के किरदार लिए ऑडिशन कॉल आया, तो हम बोकारो में ही थे. मम्मी को बताया कि ऑडिशन करना है और मेरे बाल छोटे-छोटे हैं. फिर हम लोग बाजार से नकली चोटी लेकर आये. मैंने मम्मी का गाउन और ज्वेलरी पहनी. फिर सिंदूर लगाया, तो उसमें अपने आप थोड़ी उम्र बढ़ गयी. मैंने दो राउंड का ऑडिशन बोकारो से ही वीडियो बनाकर भेजा था. जिसके बाद मुझे चुन लिया गया. इस किरदार से जुड़ी तैयारियां फिर हुई। मैं मुंबई में अकेले रहती हूं. कभी खाना बना लिया. कभी बाहर से मंगा लिया, तो कभी भूखे ही सो गये, लेकिन अशोक लता का किरदार एक हाउसवाइफ का है. उसके व्यक्तित्व में जिम्मेदारी झलकनी चाहिए. यही वजह है कि मैंने सेट पर बहुत टाइम बिताया. बच्चों के साथ बहुत टाइम बिताया, ताकि स्क्रीन पर वह बॉन्डिंग अपने आप नजर आ जाये. वैसे मैं इस सीरीज के मेकअप टीम को भी धन्यवाद देना चाहूंगी कि उन्होंने अशोक लता के किरदार जैसा लुक दिया है. दर्शक अपने आप उसको एक घरेलू आम महिला मान लेते हैं, जो एक मां भी है. 

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Tribhuvan mishra ca topper. Naina sareen as ashoklata in tribhuvan mishra ca topper. Cr. Courtesy of netflix © 2024

अशोक लता से बिल्कुल अलग हूं

अशोक लता और मुझमें बहुत कम समानता है. खाना बनाना आता है, लेकिन केक बेकिंग नहीं आती है. सीरीज में केक के  सीन बहुत ही सुंदर से शूट हुए हैं. अच्छी बात यह है कि जितनी बार भी केक काटा है सीन में, हम सब ने मिलकर उसको खाया है.अशोक लता अपने पति पर शक नहीं करती है,तो मुझे थोड़ा अजीब भी लगता था. मैं अपने निर्देशक से इस बारे में बात भी किया तो उन्होंने मुझे बताया कि पत्नी जब पति पर पूरी तरह से भरोसा करती है, तो वह पूरा भरोसा करती है. वैसे इस सीरीज के आखिर में जो अशोक लता करती है,वो सभी को बता देती है कि कभी भी किसी महिला को कमतर मत समझो.


मानव कौल  बेहतरीन को एक्टर हैं 

इस सीरीज में मेरी पसंदीदा एक्ट्रेस तिलोत्तमा शोम हैं.मैं बताना चाहूंगी कि इस सीरीज में मेरा पहला सीन उनके साथ पार्लर वाला ही था और आखिरी सीन वो गन वाला था उन्ही के साथ था.मुझे उनके साथ काम करके बहुत मजा आया.वैसे इस सीरीज के मेरे को एक्टर मानव भी बहुत कमाल के एक्टर हैं, शुरुआत में इतनी दोस्ती नहीं थी, लेकिन जैसे जैसे  समय जाता गया.. हमारी अच्छी दोस्ती हो गयी. उनका शॉट हो जाता था,तो भी  वो क्यूस देते थे.कई बार मैं कुछ सीन में अटकती थी,तो मैं उनसे पूछती थी, तो वह मुझे समझाते कि नैना ये सीन ही फनी है , तो तू फनी मत कर.तू नेचुरल ही कर.मैं तो चाहूंगी कि मैं फिर से इस टीम के साथ काम करूं , लेकिन इस सीरीज का सेकेंड सीजन आएगा या नहीं।इस बारे में कुछ भी कहना जल्दीबाजी होगी। 


आईटी सेक्टर में हाई  सैलरी को छोड़कर एक्टर बनने का किया फैसला

  मेरे घर में हमेशा से ही आर्ट का माहौल रहा है. असली आर्टिस्ट तो मेरी मां हैं, जो बहुत ही अच्छी स्टिचिंग करती है. मेरे पापा भी बहुत अच्छा डांस करते हैं, लेकिन बोकारो में इतना अच्छा एक्सपोजर नहीं था. मुझे हमेशा से ही एक्टिंग और फिल्मों का शौक रहा है, लेकिन अचानक से उठकर मुंबई नहीं आ सकती थी. कोई परिचित नहीं था और हिम्मत भी नहीं थी. बोकारो के संत जेवियर कॉलेज से पढ़ाई करने के बाद मैं नौकरी के लिए बेंगलुरु चली गयी. मैं आइटी सेक्टर में जॉब करती थी. वहां पर न्यूजपेपर में जब भी मैं कोई ऐड देखती थी वॉयस ओवर या शार्ट फिल्म के ऑडिशन का, तो मैं चली जाती थी. नौकरी के साथ-साथ 2012 में फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एफटीआईआई) के बारे में पता चला जो पुणे में है. उसी साल मैंने उसका एग्जाम लिखा, नौकरी करते-करते. मेरी नौकरी बहुत ही अच्छी थी. बहुत बढ़िया पैसे कमाती थी, लेकिन मैं एफटीआईआई का एंट्रेंस एग्जाम ही क्लियर नहीं कर पायी. यह बात मेरे दिल पर लग गयी. उसके बाद मैंने एक साल तक तैयारी की. मुझे वर्ल्ड सिनेमा नहीं पता था. कैमरा शूटिंग इन सबके बारे में कुछ भी मालूम नहीं था, तो सबको पढ़ा. शाम को ऑफिस से आकर यही करती थी. वर्ष 2013 में फिर एग्जाम दिया और इस बार में ऑल इंडिया रैंकिंग में तीसरे नंबर पर थी. मैं बताना चाहूंगी कि मेरे बैच में सिर्फ दो ही लड़कियां थीं. फिल्म इंस्टीट्यूट में ही मुझे ये भरोसा हुआ कि मुझे यही करना है. 

2017 से  मुंबई में संघर्ष कर रही हूं 

पढ़ाई खत्म करने के बाद 2017 में मैं मुंबई आ गयी. पहले तो बहुत ही छोटा-मोटा काम करते थे. जो भी काम आता था, उसे मना नहीं करते थे. मैंने ऐड की है. टीवीएफ की स्क्रैच की है. मुंबई बहुत ही महंगा शहर है. यहां रहना आसान नहीं है, तो अपने सीनियर को उनके किसी प्रोजेक्ट में असिस्ट करते थे, जिससे खर्चा चलता रहे. एफटीआईआई की पूरी कम्युनिटी मुंबई में है, तो छोटा-मोटा ही सही, काम मिल जाता था. दो इंटरनेशनल प्रोजेक्ट होटल मुंबई और वारियर क्वीन ऑफ झांसी भी किये. मैं कभी नहीं कहूंगी कि मेरे पास खाने के लिए पैसे नहीं थे या रहने के लिए घर नहीं था. मेरे परिवार और मेरी आइटी की जॉब की सेविंग की वजह से इस तरह की कोई दिक्कत नहीं आयी, लेकिन हां, मन के मुताबिक काम का संघर्ष रहा. कई काम ऐसे होते हैं, जो आप नहीं करना चाहते हैं, लेकिन आपको मन मारकर करना पड़ता है. एक ऐसी फिल्म का मुझे भी इंतजार करना पड़ा, जो इंडस्ट्री का मेरे प्रति नजरिया बदल दे. वह फिल्म ‘ईब आले ऊ’ बनी. मेरे एफटीआईआई के सीनियर प्रतीक वत्स ने वह फिल्म बनायी थी. वो फिल्म देश-विदेश सब जगह बहुत सराही गयी थी. उसके बाद ‘मेड इन हेवन’का दूसरा सीजन मिला. मैं तीसरे एपिसोड में ब्राइड की भूमिका में हूं. ‘ट्रायल बाय फायर’ में भी मैंने एक छोटा-सा किरदार किया था. हुमा कुरैशी के शो ‘मिथ्या’ में भी छोटा रोल किया था. काम करती थी, लेकिन अशोक लता से पहचान मिल गयी. मुझे बोकारो से भी इस सीरीज के बाद बहुत सारे कॉल आये. 


लुक से लेकर कम फॉलोवर्स तक बनी है रिजेक्शन की वजह 

 मुंबई आपको तगड़े होकर आना पड़ता है. रिजेक्शन तो मिलेगा ही.(हंसते हुए ) नहीं मिल रहा है रिजेक्शन, मतलब आप ही कुछ गलत कर रहे हो. मैं 60 बार ऑडिशन से गुजरी थी, तब मुझे पहली बार क्विकर ओट्स की ऐड फिल्म मिली थी. मेरी शक्ल पारंपरिक अभिनेत्रियों जैसी नहीं है. मेरे बाल भी छोटे हैं, जिस वजह से बहुत रिजेक्शन झेला. कई लोग ये भी  बोलते थे कि ये सर्जरी करवा लो.वो करवा लो. मैं कहती पैसे नहीं है. वैसे मुझे टिपिकल हीरोइन वाले रोल नहीं करने थे. मैं तिलोत्तमा शोम और रसिका दुग्गल जैसा काम करना चाहती थी, लेकिन मुझे दुख तब हुआ जब यूपी-बिहार वाले किरदार भी लोग देने से मना करने लगे. मेरा फेश सबको अलग ही लगता था. बोलती थी कि मैं झारखंड से हूं. बचपन से बिहारी हूं, लेकिन मुझे काम नहीं मिलता था. ‘ईब आले ऊ’ में मुझे बिहारी किरदार करने को मिला, जिसके बाद लोगों का नजरिया बदला. मुझे तो सोशल मीडिया में कम फॉलोअर्स की वजह से भी रिजेक्ट किया गया है. 

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नैना सरीन अपने माता पिता के साथ

माता पिता ने सपोर्ट किया लेकिन रिश्तेदारों ने खूब दिए हैं ताने

मेरे माता-पिता बहुत ही प्यारे लोग हैं. मैंने जब उनको एफटीआईआई के बारे में बताया कि मैं जा रही हूं, तो मैंने उनको पूछा नहीं बल्कि बताया कि मुझे जाना है. इसके साथ ही मैंने उनको कहा कि  आप दो साल संभाल लेना और उन्होंने वही किया.उन्होंने मुझसे कभी नहीं कहा कि इतनी हाई  सैलरी की नौकरी को छोड़कर क्यों संघर्ष कर रही हो. वैसे रिश्तेदारों के तानों को बहुत झेला है. सभी कहते थे कि इनको कौन हीरोइन बनायेगा, तो कभी शादी नहीं करनी इसलिए भाग रही है. मुझे उनकी बातें सुनकर हंसी आती थी कि जैसे मेरा कोई सपना नहीं हो सकता है. सिवाय शादी के.. 


दोस्त नहीं तो मुंबई आपको डिप्रेशन में डाल देता है

मुंबई आपको हर तरह से स्ट्रगल की फेज में डालता है. मुंबई में सबसे बड़ा डिप्रेशन का कारण है, अपना सर्कल नहीं होना. आपके अपने दोस्त नहीं होते, जिसे आप अपनी परेशानी और दुख साझा कर सको. जिसे देखकर आपको लगे कि यह मेरी खुशी में खुश है या दुखी में दुख हो. यहां सभी को बहुत अच्छी एक्टिंग आती है,तो सच्चे दोस्त मिलना मुश्किल है.मैं इस मामले में लकी हूं कि एफटीआईआई की वजह से मेरे इतने अच्छे दोस्त बने हैं, जो हमेशा मुझे मोटिवेट करते हैं कि होना तो है ही, चाहे अभी हो या दस साल बाद.वह हर दिन मुझे भरोसा देते हैं कि नैना तुझमे  टैलेंट है, तू कर लेगी। सबसे मुश्किल वक्त कोविड का था. दो साल तक सब कुछ थम गया था. पहले हम हर दिन ऑडिशन देने जाते थे, लेकिन कोविड के बाद से चीजें बदल गयी हैं और अभी भी चीजें पूरी तरह से ठीक नहीं हुई हैं. अभी भी हमारे ज्यादातर ऑडिशन फोन पर ही होते हैं. कोविड के वक्त मैं मुंबई में ही थी.दोस्तों ने एक सपोर्ट सिस्टम की तरह एक दूसरे का साथ दिया।

बोकारो को बहुत मिस करती हूं 

मुंबई में रहने के बाद मुझे लगता है कि बोकारो एक रिसॉर्ट है. मेरे पापा सब कुछ गार्डन में उगाते हैं और वहां से तोड़कर हम अपने किचन में लाते हैं. मुंबई में घर बहुत छोटे हैं और हर चीज में बहुत महंगाई है. बोकारो को मैं बहुत मिस करती हूं. मेरे पापा स्टील प्लांट में इंजीनियर थे. शुरू में प्लानिंग थी कि रिटायरमेंट के बाद किसी बड़े शहर में चले जायेंगे, लेकिन कोविड ने समझा दिया कि बोकारो से अच्छा कुछ भी नहीं है, तो मेरी फैमिली बोकारो में ही सेटल हो गयी है. मेरा एक छोटा भाई भी है. जैसा कि मैं पहले बताया कि मेरी मम्मी स्टिचिंग में बहुत अच्छी है, हमने अभी अपनी क्लोथिंग ब्रांड भी शुरू की है. मैंने भी पिछले साल पूरा स्टिचिंग का कोर्स मम्मी से सीखा तो एक्टिंग के साथ -साथ क्लोथिंग बिजनेस को भी समय देती हूं . मुंबई में बोकारो का खाना मुंबई में बहुत मिस करती हूं. दिल से बिहारी हूं. झारखंड भी बिहार का हिस्सा एक वक्त था. दाल-भात और भुजिया मुझे  बहुत पसंद है. वहां का स्वाद ही अलग है.मुंबई में वैसा बन ही नहीं पाता है.

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