Bollywood: राज कपूर और नरगिस के फिल्मी करियर पर आधारित एक किताब में दावा किया गया है कि बॉलीवुड ने पाकिस्तान में उर्दू को लोकप्रिय बनाया. भारत की आजादी के बाद के शुरुआती सालों में, शुद्ध उर्दू बोलना एक फैशन स्टेटमेंट माना जाता था. जैसे-जैसे बॉलीवुड का प्रभाव लोगों के ऊपर आने लगा और लोगों का हिंदी सिनेमा की ओर रूझान बढ़ा उसी रूप में पाकिस्तान में उर्दू की लोकप्रियता भी बढ़ती गयी. हरजाप सिंह औजला ने अपनी किताब ‘ रोमांसिंग द 50s: नरगिस, आरके स्टूडियो, रेडियो, एंड ए विस्टफुल इंडियन’ में राज कपूर और दिलीप कुमार की फिल्मों को पाकिस्तान में उर्दू को लोकप्रिय बनाने का श्रेय दिया है.
इसका कारण बताते हुए वह कहते हैं कि जद्दाब बाई (नरगिस की मां) उर्दू की एक बेहद कुशल वक्ता थीं. इसलिए, बचपन से ही उन्होंने नरगिस को अधिकारपूर्वक उर्दू बोलने की ट्रेनिंग दे दी थी. तब राज कपूर बॉलीवुड के सदाबहार अभिनेता थे. उनकी दीवानगी लोगों के ऊपर थी. उनके द्वारा बोले गये शब्द या डायलॉग को लोग अपनी बोलचाल की भाषा में इस्तेमाल करने में खुद को दूसरों से अलग पाते थे. नरगिस का राज कपूर पर प्रभाव उनकी बनाई फिल्मों में उर्दू के माध्यम से भी था.
जब मोरारजी देसाई ने नरगिस की नहीं मानी मांग
औजला ने लिखा है, “पाकिस्तान जैसे देश में, जहां 50 प्रतिशत से अधिक लोग पंजाबी बोलते हैं, वहां पर उर्दू को हिंदुस्तानी फिल्मों ने खासकर नरगिस-राज कपूर, दिलीप कुमार-मधुबाला और मीना कुमारी की फिल्मों ने काफी लोकप्रिय बनाया. तब केवल मीना कुमारी ही नरगिस की उर्दू पर पकड़ की बराबरी कर सकती थीं. नरगिस और उनका शानदार हेयरस्टाइल भी लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र रहा. किताब में इस बात का जिक्र है कि नरगिस अपने हेयरस्टाइल के मामले में समझौता नहीं करती थीं. “भारी बारिश और तूफानी मौसम वाले दृश्यों की शूटिंग के बाद, जहां वह भीग जाती थीं और उनका हेयरस्टाइल बिगड़ जाता था, वह अपने हेयरस्टाइल विशेषज्ञ के पास जाकर अपने असली लुक को वापस लाना पसंद करती थीं.” लेखक ने राजकपूर और नरगिस के बीच संबंधों में खटास और ब्रेकअप के बारे में लिखते हैं कि “नरगिस दिल से राज कपूर से शादी करना चाहती थीं.
एक बार तो उन्होंने मुंबई प्रांत के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोरारजी देसाई से मिलकर राज कपूर से शादी करने और एक साथ दो महिलाओं से विवाहित रहने का रास्ता निकालने की हिम्मत भी जुटाई थी. हालांकि, दूसरी ओर से उन्हें तब डांट सुननी पड़ी थी. मन के मुताबिक जवाब न मिलने के बाद उन्होंने राज कपूर के साथ अपने पेशेवर रिश्ते को भी तोड़ने का साहस जुटाया. यह एक साहसिक निर्णय था, जिसने उन दोनों को समान रूप से आहत किया और इसके परिणामस्वरूप उनका स्वास्थ्य भी खराब हो गया.
तब उर्दू न जानने पर फिल्म मिलने में होती थी कठिनाई
पाकिस्तान में उर्दू को लोकप्रिय बनने में बाॅलीवुड का रोल इसलिये भी अहम रहा कि तब कई ऐसे हीरो-हिरोईन रहे हैं, जिन्हें उर्दू न जानने के कारण उस फिल्म से हाथ धोना पड़ा है. एक किस्सा जीनत अमान और राजकुमार के उस फिल्म की है जिसमें से जीनत को डायरेक्टर ने बाहर कर दिया था. ऐसी चर्चा रही कि 1970 में रिलीज हुई फिल्म ‘हीर रांझा’ के डायरेक्टर चेतन आनंद ने जीनत को अपनी फिल्म में सिर्फ इसलिये नहीं लिया कि उन्हें उर्दू नहीं आती थी.
जबकि उनकी खूबसूरती देख फिल्म निर्माता उन्हें साइन करना चाहते थे. लेकिन ऑडिशन के दौरान जीनत उर्दू नहीं बोल पाई थी. हीर रांझा फिल्म के लिए जीनत के ऑडिशन देने की चर्चा जोरों पर रही और कहा जाता है कि जीनत संग राजकुमार फिल्म में काम करना भी चाहते थे लेकिन वह चेतन के फैसले पर कुछ बोल नहीं पाए. बताया जाता है कि ये कहानी तब की है जब जीनत फिल्मों में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रही थीं.
उर्दू हिंदुस्तान की भाषा
दूसरी ओर कई लोग ऐसे भी है, जो यह मानते हैं कि उर्दू भारत की ही भाषा है. साल 2023 में एक कार्यक्रम में कवि और हिंदी फिल्मों के गीतकार और पटकथा लेखक जावेद अख्तर और उनकी पत्नी शबाना आजमी ने एक उर्दू एल्बम ‘शायराना – सरताज’ के लांच के अवसर पर उर्दू भाषा के महत्व के बारे में बात करते हुए कहा कि उर्दू हिंदुस्तान की भाषा है. ‘उर्दू किसी और जगह से नहीं आई है. ये हमारी हिंदुस्तान की भाषा है.ये पाकिस्तान या इजिप्ट की भाषा नहीं है.
पाकिस्तान का भी पहले कोई वजूद नहीं था. वो भी हिंदुस्तान से ही निकला है’ जावेद अख्तर के मुताबिक, उर्दू के विकास में पंजाब का बहुत बड़ा रोल है. निश्चित रूप से लेखक का यह कहना कि जिस देश में सबसे ज्यादा पंजाबी बोली जाती हो, वहां पर उर्दू को लोकप्रिय बनाने में पंजाबियों और बॉलीवुड का अहम रोल रहा है.
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