Saroj Khan, Vivek Agnihotri : ‘गोल’ से लेकर ‘ताशकंद फाइल्स’ जैसी फिल्में निर्देशित कर चुके निर्देशक विवेक अग्निहोत्री दिवंगत कोरियोग्राफर सरोज खान से जुड़ी अपनी यादों को साझा कर रहे हैं. वो उन्हें त्याग और तपस्या का दूसरा नाम करार देते हैं. पेश हैं उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के अंश…
रिहर्सल पर फोकस करती थी
सरोज खान जी हमारे बीच नहीं है. ये मेरे लिए पर्सनली बहुत दुख की बात है. उनसे मेरी बहुत अच्छी बॉन्डिंग थी. ये सिलसिला मेरी निर्देशित फिल्म गोल के गाने ‘बिल्लो रानी’ से शुरू हुआ था. वो वक़्त ‘कजरारे’ बहुत फेमस हुआ था. सभी कह रहे थे कि कोई नया कोरियोग्राफर लेते हैं. बैकग्राउंड में 50 विदेशी डांसर्स को लेते हैं थोड़ा अंग्रेज़ी बीट उठाते हैं.
लेकिन मैंने साफ तौर पर कह दिया कि अगर मैं ये गाना करूंगा तो सिर्फ और सिर्फ सरोज खान के साथ ही करूंगा क्योंकि ‘बिल्लो रानी कहो तो अभी जान दे दूं’ इस गाने के साथ सिर्फ और सिर्फ सरोज खान ही न्याय कर सकती हैं. मैं सरोज खान जी के पास गया. उन्होंने गाना सुना और कहा कि इसके लिए 15 दिन की कम से कम रिहर्सल चाहिए. उन्होंने कहा कि सेट पर जो आजकल छोटे छोटे वेस्टर्न डांस वाले मूव्स होते हैं वो मैं नहीं करने वाली लंबे लंबे डांस मूव्स करूंगी.
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जॉन बिपाशा को बच्चों की तरह डांटती थी
वो बहुत ही स्ट्रिक्ट डांसर थी और बहुत सारा रिहर्सल करने में यकीन करती थी. उन्होंने साफ कह दिया था बिपाशा बसु,जॉन अब्राहम और अरशद वारसी को की आपको रिहर्सल डांस का करना ही है चाहे कितनी भी हेक्टिक शूटिंग शेड्यूल क्यों ना हो आपकी. वो अपने दिल की बात हमेशा कह देती थी. जैसे एक टीचर होता है. वो किसी स्टार्स से डरती नहीं थी. वो जॉन,बिपाशा और अरशद को बच्चों की तरह डांटती थीउनकी अपनी एक स्ट्रांग पर्सनालिटी थी. सिर्फ स्टार्स को ही नहीं अगर वो गाने की कोरियोग्राफी कर रही हैं और सेट पर किसी ने हंस दिया या कुछ डिस्टर्बेंस पैदा कर दी फिर चाहे वह कोई भी हो. फ़िल्म का डायरेक्टर ही क्यों ना वो उसे भी डांट देती थी.
उनकी कोरियोग्राफी में बहुत डिटेलिंग होती थी
उनके साथ मेमोरी को याद करने के साथ साथ एक बात ये भी कहना चाहूंगा कि मैंने लगभग सभी कोरियोग्राफर्स के साथ काम किया है लेकिन सिर्फ मैंने सरोज जी की कोरियोग्राफी में ये देखा था कि वो गाने के एक एक शब्द को पकड़कर उसमें क्या अदा होगी क्या मुद्रा होगी. वो खुद करके दिखाती थी. आंखों का क्या भाव होगा. गर्दन कैसे मटकेगी. छोटी उंगली कहां होगी. ऐसी डिटेलिंग मैंने कभी किसी कोरियोग्राफर को करते नहीं देखा है. मुझे लगता है कि लंबे वक्त तक कोई आएगा भी नहीं. जो उनकी जैसी डिटेलिंग कर सके इस कॉपी पेस्ट के ज़माने में.
अपने काम से हमेशा जिंदा रहेंगी
मैं जब भी उनसे मिलने जाता था. उनके पैर छूने जाता तो वो हाथ पकड़ लेती थी और हाथ मोड़ देती थी और कहती कि खबरदार जो पैर छुए. मैं कहता कि आप एक गुरु हैं. एक यूनिवर्सिटी की वाइस चांसलर हैं. आपके पैर छूने से कुछ ज्ञान हमको भी मिल जाएगा तो कहती कि अच्छा छू. दो बार छू ले. बहुत हंसती हंसाती थी. भगवान उनकी आत्मा को शांति दे. वो त्याग और तपस्या का दूसरा नाम थी. जैसा मैं हमेशा कहता हूं कलाकार कभी मरते नहीं. वो अपने काम से हमेशा ज़िंदा रहते हैं. सरोज खान अपने काम से हमेशा जिंदा रहेंगी.
Posted By: Divya Keshri