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मनोज बाजपेयी की ख्वाहिश लोग इस तरह से रखे याद  

manoj bajpayee फिल्म भैया जी को जान जोखिम में डालने वाला अनुभव कहते हैं.उनके इस अनुभव और फिल्म से जुड़े दूसरे दिलचस्प पहलुओं पर हुई बातचीत

मनोज बाजपेयी हिंदी सिनेमा के बेहतरीन एक्टर्स में शुमार हैं. उन्होंने रुपहले पर्दे से लेकर ओटीटी के तीसरे परदे तक में अपनी धाक जमाई है. इनदिनों वह अपनी फिल्म bhaiya ji को लेकर सुर्ख़ियों में है.मनोज बाजपेयी की यह १०० वीं फिल्म है. इसके साथ ही यह पहला मौका होगा , जब रुपहले परदे पर वह जबरदस्त एक्शन करते नजर आ रहे हैं. वह इसे जान को जोखिम में डालने वाला अनुभव करार देते हुए कहते हैं कि अब वो ऐसा एक्शन कभी भी किसी फिल्म के लिए नहीं करेंगे. उनकी अब तक की जर्नी,इस फिल्म से जुड़ी चुनौतियों पर उर्मिला कोरी से हुई खास बातचीत  के प्रमुख अंश

भैया जी आपकी १०० वीं फ़िल्म है और एक्शन भी क्या पहले से तय था कि ख़ुद को अलग अंदाज में १०० वीं फ़िल्म में पेश करेंगे? 

भैया जी को १०० वीं फिल्म सोचकर नहीं बनायी . सौवीं फिल्म है ये मुझे फिल्म के निर्देशक अपूर्व सिंह कार्की ने बताया कि सर अगर हमसे पहले आपकी फ़िल्म साइलेंस २ आ जाती है तो ये सौवें फिल्म होगी.  मैंने कहा पता नहीं यार. साइलेंस ओटीटी पर आ रही है.उनका अपना शेड्यूल होता है. इसी बीच मालूम हुआ कि साइलेंस २ पहले रिलीज  कर रहे हैं,तो भैया जी १०० फ़िल्म बन गई . एक्शन की बात जहां तक है अपूर्व सिंह कार्की ऐसा निर्देशक है , जो हमेशा से चाहता था कि  ऐसी मेनस्ट्रीम फिल्म बनाए, जिसमें हमारे कल्चर , हमारे मिट्टी की कहानी हो और वो उसे तमिल और तेलुगु मेनस्ट्रीम जैसा ट्रीटमेंट देना चाहता था . हम भैयाजी के साथ वह अपना सपना जी रहे हैं , जो उन्होंने बचपन में देखा था  कहानी बिहार की है ,लेकिन एक्शन साउथ वाला है .

भैया जी की कहानी आपकी है ,उसके बारे में कुछ बताइए?

एक न्यूज़ आर्टिकल था , जब मैं थिएटर करता था.उस वक़्त पढ़ा था. वह कहानी मेरे दिमाग में रह गयी थी. लिखा नहीं था, मगर जेहन में था कि इस कहानी पर फिल्म बननी चाहिए . मैं उसे पूरी तरह से कमर्शियल नहीं बनाना चाहता था. फिल्म एक बन्दा की शूटिंग के वक़्त बातों -बातों में अपूर्व को मैंने वह कहानी सुनाई  तो उसने मुझसे रिक्वेस्ट की कि मैं उसे दे दूं क्योंकि वो एक बंदा  के बाद मेनस्ट्रीम फिल्म बनाना चाहता था. मैंने बोला बना लो. उसने फिर कहा कि आप इसमें रोल करो. मैंने कहा कि ये सब मेरे बस का नहीं है , तो वह जिद पर अड़  गया.सर मेरे लिए ये नया होगा क्योंकि ऐसा एक्शन करते हुए मैंने बहुत सारे हीरोज को देखा है. आप जब करेंगे तो एक नोवेल्टी आएगी. उसका इतना भरोसा था कि मैं ना नहीं कर पाया. 

क्या लगा नहीं कि पहली एक्शन फिल्म में सिक्स पैक या एट पैक बनाउँ ? 

हंसते हुए) फिर तो मैं मना कर देता था . इतना समय नहीं था .वैसे इस फ़िल्म का ट्रीटमेंट साउथ वाला है ,तो वहां के एक्शन स्टार सिक्स पैक या एट पैक में नहीं देखते हैं .

इस फिल्म का सबसे  मुश्किल कौन सा एक्शन सीन रहा है ?

बहुत सारे हैं.  इस पर तो किताब लिखी जा सकती है. इस फिल्म के लिए मैं ना सिर्फ बहुत बुरी तरह से चोटिल हुआ हूं, बल्कि अपनी जान भी जोखिम में डाली है.इंटरवल से पहले एक  पूरा एक्शन सीक्वेंस है. जो बारिश में शूट हुआ है. बारिश में एक्शन शूट करना सबसे मुश्किल होता है. लोग स्लिप होकर कहीं भी गिर सकते. सेट पर पहुंचने के साथ ही आपको पानी से  नहला दिया जाता है, पूरी तरह से भींग जाने के बाद ना पैर हिलता है ना हाथ. ऐसे में एक्शन करना बहुत टफ काम होता है. इसके अलावा एक सीन है ,जिसमें एक बोगी से जम्प करके दूसरे बोगी पर जाना है .वो सीन करते हुए मुझे बोगी में चढ़ा दिया गया और कहा गया कि इसे ऐसे करना है. मैंने कहा यार इसका तो पूरा रिहर्सल करना चाहिए था. जवाब आया नहीं सर उतना पैसा कहाँ है कि ट्रेन  यार्ड को एक दिन सिर्फ रिहर्सल के लिए रखें.  वो तो अल्लू अर्जुन जैसे बड़े स्टार्स को मिलता है. फिल्म के निर्माण से भी जुड़ा हूं ,तो यह बात पता है कि बजट में फिल्म बनाना कितना अहम होता है. आपको एक ही दिन में रिहर्सल करना है और सीन भी. आप यकीन नहीं करेंगी  कि मैंने बजरंगबली का नाम लिया और कूद गया. पहला टेक ख़राब.  मैं बीच में ही लटक गया. दूसरा  टेक भी ख़राब.  मैंने  स्टंट मास्टर जी को बोला कि हो जाएगा क्योंकि  एक्शन डायरेक्टर चेहरा मेरी लगातार नाकामयाबी के बाद उतर रहा था. मैंने बोला मास्टर जी एक बार फिर मुझे देखना है कैसे करना है.उन्होंने फाइटर को बोला दिखा दो.  उसने दिखाया और मैंने देखा और कर दिया कि मैंने कैसे किया.वो मुझे भी नहीं पता है.

क्या कभी लगा नहीं कि बॉडी डबल से ये सभी स्टंट करवा लूं  ?

विजयन मास्टर इस फिल्म के एक्शन डायरेक्टर हैं. उन्होंने लगभग सभी सुपरस्टार्स के साथ काम किया है. उन्होंने १०० से ज़्यादा फिल्में की है. उन्होंने हिंदी  फिल्में भी बहुत सी की है. वह बहुत नामी – गिरामी हैं. वो नॉन कॉम्प्रोमाइजिंग एक्शन मास्टर  के रूप में जाने जाते हैं. वो किसी की सुनते ही नहीं है . इस फिल्म में उन्होंने तय कर लिया  था कि मुझे मनोज बाजपेयी से ही सारे स्टंट करना है.  उन्होंने कहा कि सर आप करोगे तो ही लोगों के लिए नोवेल्टी होगी क्योंकि आप पहली बार ऐसा एक्शन कर रहे हो.  ५० प्रतिशत से ज़्यादा एक्टर एक्शन में बॉडी डबल का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन मैं  चाहता हूँ कि दर्शक जब फिल्म  देखने आये तो वह फिल्म देखकर चकित हो जाए कि मनोज बाजपेयी ने ही किया है. उन्होंने मुझसे करवाया.उन्होंने बहुत पुश किया. मेरी हालत ख़राब कर दी. मैं हर दिन भगवान का नाम लेकर जाता था कि आज सारे एक्शन सीन अच्छे से करवा देना. वैसे हुआ बढ़िया है.खुद पर गर्व भी होता है. 

निवेदन नहीं नरसंहार होगा फ़िल्म के संवाद शुद्ध हिन्दी वाले हैं ,जिससे यह चर्चा हो रही है कि यह फिल्म शहरों के दर्शकों को क्या कनेक्ट कर पाएगी?

यह फिल्म छोटे शहर के लोगों की कहानी है.हम गौर करें तो यूपी ,बिहार,राजस्थान उनकी अपनी मिट्टी की भले ही भाषा अलग – अलग हो ,लेकिन हिंदी जो है वो बहुत ही शुद्ध होती है ,क्योंकि ज़्यादातर हिंदी माध्यम में पढ़ाई करते है. वह हिंदी बोलते हुए अपने अंदाज में बोलते हैं.अपने लहजे में बोलते हैं,लेकिन वह शुद्ध हिन्दी ही होती है .जहां तक बात शहर के दर्शकों की है. फिल्म अच्छी होगी ,तो शहर के दर्शक भी देखने को मजबूर हो जाएंगे. आज के  युवा को नरसंहार शब्द को नहीं जानते हैं. इसी बहाने हमने उन्हें नया शब्द सीखा दिया. सबसे महत्वपूर्ण बात हिन्दी  फिल्म में हिंदी नहीं,तो क्या फ्रेंच का इस्तेमाल करेंगे.

फिल्म में आपको देशी सुपरस्टार का टैग दिया गया है, ये टैग आपके लिए कितने मायने रखते हैं ?

फिल्म के निर्देशक अपूर्व सिंह कार्की  तेलुगु और तमिल फिल्मों का दीवाना रहा है, तो जिस तरह से वो लोग इन टैग का इस्तेमाल करते हैं . वो उसको लेकर अपनी  में आया है.  मैंने कभी भी देशी सुपरस्टार टैग के बारे में नहीं सोचा था या फिर ओटीटी किंग. ये उनका तरीका है दर्शकों को  बताने का कि वो किस तरह की फिल्म देखने आ रहे हैं.बस बात इतनी सिंपल है.

फिल्म की कहानी बिहार पर आधारित है , क्या भोजपुरी भाषा में फिल्में करने की इच्छा होती है ?

मैं सच बताऊँ तो मैं लगातार भोजपुरी फिल्मों की कहानियां पढ़ता रहता हूं . लगातार लोगों से मिलता रहा हूँ.भोजपुरी भाषा में मेरी पहली फिल्म होगी, तो इस बात को  बहुत सजग हूँ कि कोई ढंग की फिल्म आये. सही बजट भी हो क्योंकि हमको उसका मार्केट ढूंढना  पड़ेगा. बनाना पड़ेगा तो उसमें मेहनत भी बहुत ज़्यादा है. सारी मेहनत की शुरुआत आपकी कहानी से ही हो सकती है. जैसे ही उस  दिशा में कुछ अच्छा ऑफर आएगा. उस पर भी काम किया जाएगा.  

आपका प्रोडक्शन हाउस भी है क्या भोजपुरी फिल्में बनाने के लिए ओपन हैं ?

हां, लेकिन जब तक कुछ खास कहने को ना हो. भोजपुरी  को कोई चीज दें तो वो सॉलिड होना चाहिए  .जो पारिवारिक और सामाजिक हो. कहानी नयी होगी. सामयिक हो. मैं जब से गांव से निकला हूं, उस वक़्त से अब तक बिहार में बहुत कुछ बदला है. समस्याएं नयी तरह की हो. रिश्ते भी बदले हैं.  सोशल मीडिया की दखलंदाजी से परिवार टूटे हैं या बनें हैं.ये सब देखना होगा

 सिनेमा के मौजूदा हालात को किस तरह से देखते हैं खासकर थिएटर में रिलीज़ होने वाली फिल्मों पर ? 

स्थिति वनरेबल है क्योंकि समाज पेंडेमिक के बाद बहुत ज़्यादा बदला है.  दर्शकों की  घर पर रहने की आदत हो गयी है.वो अगर ऑफिस भी जा रहे हैं तो काम के बाद वह घर की तरफ भाग रहे हैं.  उनके घर में उनको बड़ा मीडियम मिल गया. आजकल तो ऐसा हो गया कि और कुछ नहीं तो लोग इंटरव्यू ही देख रहे हैं.  कितनी सारी जगह जाता हूँ , तो लोग कहते हैं कि सर आपका इंटरव्यू देख रहा था.  कंटेंट कई तरह से लोग कंज्यूम कर रहे हैं ,बहुत भारी काम है. हिंदी सिनेमा ही नहीं वर्ल्ड  सिनेमा इससे जूझ रहा है.  हम तो इस फिल्म को पूरी शिद्दत के साथ लेकर आ रहे हैं.  क्योंकि यह हम लोग की कहानी है.

आपकी ओटीटी के स्टारडम का क्या थिएटर में भी फायदा मिलेगा ? 

ये मेरे तीस साल का अनुभव है. दर्शक सिर्फ फिल्म देखते है। जब दर्शक थिएटर के अंदर जाते हैं तो उसे ना मनोज बाजपेयी दिखेगा, ना अपूर्व ना कोई प्रोड्यूसर. उसका एक ही मकसद होता है कि भाई मैंने इतने पैसे दिए हैं.  मेरा मनोरंजन कितना हो रहा है.

यह सौवीं फिल्म है,पहली बार कैमरे का सामना करते हुए जेहन में क्या था ?

मैंने पहली बार बैंडिट क्वीन के लिए कैमरे का सामना किया था. वो तालाब के पास वाला मेरा पहला सीन था. नर्वस नहीं था. मैं थिएटर से आया था. कैमरे का अनुभव नहीं था ,तो कैमरे के सामने कैसे काम होता है. कैमरे के सामने कैसे सीन करूँगा. उसको सीखने को लेकर बहुत उत्साह था.

करियर का टर्निंग पॉइंट क्या रहा ?

 सत्या टर्निंग पॉइंट था.

राम गोपाल वर्मा से बात होती है ?

कभी -कभी बात होती है. हाल – फिलहाल में तो नहीं हुई।वैसे फिलहाल वो हैदराबाद में ज़्यादा रहते हैं.

आपकी ख्वाहिश किस तरह से याद रखे जाने की है ?

मैं बस इतना चाहता हूं कि लोग याद रखें कि एक लड़का  गांव से आया था और बड़े चमत्कारी ढंग से इतने साल काम कर गया.

तीस साल से आप इंडस्ट्री में बरक़रार हैं, टिके रहने का मूल मन्त्र क्या है ?

आप गौर करेंगी तो मेरे पूरे कैरियर में डाउन ज़्यादा रहे हैं और अप बहुत कम रहे हैं. मैं आज यहाँ पर हूं और भैया जी के साथ अपनी १०० वीं फिल्म कर पाया तो वह इसलिए क्योंकि मैं डाउन होने के बाद कभी रुका नहीं। मैंने हमेशा आगे बढ़ने की कोशिश की क्योंकि गिरकर रोना मुझे पसंद नहीं है और उठकर उड़ना भी मुझे पसंद नहीं है.

आपकी अभिनय यात्रा संघर्षों से भरी रही है लेकिन कई प्रतिष्ठित अवार्ड आपने अपने नाम किये हैं ?

मुझे इस बात पर गर्व होता है कि  मेरे घर में जो भी अवार्ड है. वो बिना किसी सिफारिश या जुगाड़ के है.

कई बार अवार्ड के लिए अलग – अलग प्रलोभन वाले ऑफर्स  की बात सामने आती है क्या आपको भी ऐसे ऑफर्स मिलते हैं ? 

 मिलते रहते हैं. मैं ये सोचता हूं कि मैं उस अवार्ड को देखूंगा कैसे कि ये मेरी काबिलियत की वजह से मुझे नहीं मिला है.आखिर में आप खुद को फेश कर रहे होते हैं,तो मैं साफतौर पर मना कर देता हूँ.

राजनीति में प्रचार करने  के लिए क्या ऑफर आते हैं?

अब मुझे नहीं करते हैं. लोग जानते है कि नहीं करेगा।लोगों को पता है कि राजनीति से जुड़ने की मेरी कोई इच्छा नहीं है.

फैमिली मैन ३ को लेकर क्या स्थिति है ?

फिलहाल शूटिंग चल रही है.अगले साल ही आ आएगा।इससे आगे  कुछ भी बता पाना मुश्किल होगा।इनके कॉन्ट्रैक्ट बहुत सख्त होते हैं.मैं चाहकर भी कुछ नहीं बता पाऊंगा।

आप आर्ट और कमर्शियल फिल्मों के बीच संतुलन बनाकर चलते हैं , दोनों दुनिया को सिनेमा के लिहाज से कैसे परिभाषित करेंगे ?

कलात्मक फिल्मों में जब हम कहानी कह रहे होते हैं ,तो हम कहानी में खामोशी को ज़्यादा ढूंढते हैं।  कहानी और किरदारों को हम ज़्यादा महत्व देते हैं।  उससे निकलने वाली  जो चीज होती है।  ख़ामोशी हो या रिश्ते उसको हम ज़्यादा समय देते हैं.  उसको एक्सप्लोर करते हैं.मेनस्ट्रीम फिल्म में हमारा पूरा का पूरा मकसद मनोरंजन होता है.वो मनोरंजन जिसे उत्तेजना , ख़ुशी , उत्साह , दुःख हम इस तरह से उस कहानी को कहते हैं कि लोगों को ज्यादा मनोरंजक लगे.बस यही मूल मकसद होता है.  ना कि कलात्मक  फिल्मों की तरह पूरे समय कहानी के साथ रहे या कहानी की खामोशी के साथ रहे.जब एंटरटेनमेंट आता है तो पेस बड़ी चीज होती है. मेन स्ट्रीम में फिल्मों की गति में कोई कॉम्प्रोमाइज नहीं होता है और कलात्मक फिल्मों में  अपनी कहानी और किरदार  पर कॉम्प्रोमाइज  नहीं होता है.

उसका असर क्राफ्ट पर होता है क्या ?

असर यही होता है कि क्राफ्ट बदलता है और अभिनेता किसी भी जॉनर को जज नहीं कर सकता है. उसके क्राफ्ट सारे जॉनर के लिए हमेशा रेडी रहने चाहिए.  भगवान की कृपा से हम भी मेनस्ट्रीम सिनेमा को देखकर बड़े हुए हैं. अमिताभ बच्चन , शत्रुघ्न सिन्हा और विनोद खन्ना की फिल्में देखकर हम बड़े  हुए हैं, तो उतनी तैयारी हमेशा रही.मैंने सत्यमेव जयते , बागी २ या राजनीति जैसी फिल्में समय – समय पर की है . भैया जी के बाद जो फिल्म आएगी. वो बिल्कुल अलग होगी. वो कनु बहल की इंडिपेंडेंट फिल्म होगी. उसमें जर्नलिस्ट की भूमिका कर रहा हूं। मेरी दिली इच्छा है कि हर तरह की भूमिका को करूँ क्योंकि ऐसे में आप लगातार खुद पर और अपने क्राफ्ट पर काम करते रहते हैं . 

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