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पर्दे पर भी सैनिक बनना बहुत जिम्मेदारी का काम है, पिप्पा फिल्म से जुड़ी दिलचस्प बातें ईशान खट्टर ने की शेयर

पिप्पा आज अमेज़न प्राइम स्ट्रीम हो रही है. इस फिल्म में ईशान खट्टर 1971 के वॉर हीरोज में से एक रहे ब्रिगेडियर बलराम सिंह मेहता के किरदार को परदे पर निभा रहे हैं. अपने किरदार को लेकर एक्टर ने कहा, एक अभिनेता के तौर आपको ऐसे किरदार निभाने के मौके बहुत कम मौके मिलते हैं.

1971 के भारत पाक युद्ध पर आधारित फिल्म पिप्पा अमेज़न प्राइम पर 10 नवम्बर से स्ट्रीम होने जा रही है. इस फिल्म में ईशान खट्टर 1971 के वॉर हीरोज में से एक रहे ब्रिगेडियर बलराम सिंह मेहता के किरदार को पर्दे पर निभा रहे हैं. ईशान कहते हैं कि वास्तविक जीवन के नायक की भूमिका निभाना सौभाग्य की बात है. एक अभिनेता के तौर पर आपको ऐसे किरदार निभाने के मौके बहुत कम मौके मिलते हैं, इसलिए मैंने इस किरदार को निभाने में जिम्मेदारी को महसूस किया. सबसे अच्छी बात यह थी कि ब्रिगेडियर बलराम सिंह मेहता कहानी की अहम धुरी है, जो उस वक़्त कमांडर थे. हमारा मार्गदर्शन करने और उस युद्ध के दौरान भारत द्वारा निभाई गई भूमिका के बारे में बताने के लिए सेट पर वह हर समय हमारे साथ मौजूद थे. उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश…

असल ज़िन्दगी के नायक यानी सैनिक के जज्बे को परदे पर लाना कितना चुनौतीपूर्ण था?

वाकई सैनिक हमारे जीवन के असली नायक हैं और जब बात एक सैनिक की आती है तो नायक के मायने बदल जाते हैं. जब आप वर्दी पहनते हैं, तो यह एक बहुत ही अलग एहसास होता है, यह आपको जिम्मेदारी का एहसास कराता है और इसका एक बहुत मजबूत उद्देश्य होता है. हमने इसे बहुत गंभीरता से लिया. इस फिल्म में हमारे किरदार के लिए सेना के जवानों के साथ हमें प्रशिक्षित किया गया तो इस दौरान उनके प्रति और अधिक सम्मान और गर्व पैदा हुआ. जब आप चीजों को दूर से देखते हैं तो आपकी दृष्टि अलग होती है लेकिन जब आप करीब आते हैं तो आपको पता चलता है कि इसमें और भी बहुत गहराई है. प्रत्येक सैनिक में बहुत अधिक मानवीय पक्ष होता है और वे जो हर दिन करते हैं उसे करने के लिए बहुत अधिक धैर्य, दृढ़ संकल्प और साहस की आवश्यकता होती है और यह उनके जीवन और जीवनशैली का हिस्सा है. उसे समझना और उसे आत्मसात करना हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण था.

यह फिल्म 70 के दशक की है निजी तौर पर आपका क्या होमवर्क था ?

पिप्पा फिल्म की बात करूं तो यह एक युद्ध के साथ-साथ एक परिवार की भी कहानी है. यह ७० के दशक की कहानी है. मैंने उस दौर को अनुभव नहीं किया है क्योंकि उस वक़्त मेरा जन्म भी नहीं हुआ था. इस फिल्म के लिए मैंने उस दौर के बारे में बहुत अध्ययन किया, वे क्या कपड़े पहनते थे, उनकी जीवनशैली कैसी थी, सबके बारे में जाना लेकिन जब मैंने किरदार निभाना शुरू किया तो यह बिल्कुल अलग था. कैमरे के सामने एक अलग अनुभव होता है.एक टैंक में खड़े होना और एक फोर्स को कमांड करना अपने आप में बहुत चुनौतीपूर्ण था.एक सैनिक के जीवन को समझना एक बड़ी चुनौती थी और उसके बाद सेना का जीवन जीना एक और चुनौती थी लेकिन जब भी मैं फंसता था, तो बलराम सर हमारा मार्गदर्शन करते थे और बारीकियों को समझाते थे. निर्देशक राजा मेनन ने भी काफी शोध इस फिल्म के लिए किया था, तो चीज़ें आसान होती चली गयी.

ब्रिगेडियर बलराम मेहता से पहली मुलाकात कैसी थी?

जब मैंने पहली बार बलराम सर से बात की तो हम जूम कॉल के जरिए उनसे मिला था. बाद में मैंने आग्रह किया कि मैं फिल्म की शूटिंग से पहले उनसे निजी तौर पर मिलना चाहता हूं और उनका आशीर्वाद लेना चाहता हूं. वे इतने दयालु थे कि मुझे अनुमति दे दी. मैंने पहली मुलाकात में ही उनसे ढेर सारे सवाल पूछ लिए थोड़े समय बाद मुझे लगा कि थोड़ा ज़्यादा हो गया. मैंने सॉरी कहते हुए कहा कि अरे मैंने तो आप पर सवालों की बमबारी कर दी. उन्होंने जवाब दिया कि बॉय तुम्हें यह जानकर खुशी होगी कि मैं बमबारी करने का आदि हूं. मेरे लिए यह अभिव्यक्ति का एक रूप था जबकि उनके लिए यह वास्तविकता थी. उनका अनुभव कमाल का है.

वॉर फिल्में सिनेमा में नई नहीं हैं , ऐसे में पिप्पा की खासियत आप क्या कहेंगे ?

मुझे लगता है कि यह बहुत ही महत्वपूर्ण घटना थी. आज के युवाओं को इसके बारे में जानना चाहिए. यह हमारे लिए इतिहास का गौरवपूर्ण क्षण था और इस घटना के बारे में बात करना और इसके बारे में चर्चा करना महत्वपूर्ण है. जहां तक युद्ध की बात है, तो मैं शांतिवादी इंसान हूं. मैं उन लोगों में से हूं, जो यह मानते हैं कि हर मसले का जवाब युद्ध नहीं है लेकिन 1971 का यह युद्ध बहुत खास था. हमने बांग्लादेश के लिए वह लड़ाई लड़ी थी. उनकी मदद की. हम जीत भी गए लेकिन अगले ही पल हम उस धरती को छोड़कर वापस आ गए. मेरे लिए मैं इसे एक गौरवपूर्ण और महान क्षण मानता हूं, मुझे नहीं लगता कि ऐसा कभी भी किसी देश ने किसी के लिए किया होगा.

आपके एक्टिंग करियर को देखें तो आप काफी कम प्रोजेक्ट्स करते हैं?

मैं हमेशा मिलने वाले अवसरों में से सर्वश्रेष्ठ चुनने का प्रयास करता हूं. मैंने हमेशा ऐसी फिल्में करने की कोशिश की है, जहां मुझे अवसर मिले, जहां मैं शामिल हो सकूं, उत्तेजित हो सकूं और दिलचस्पी ले सकूं और बोर न होऊं. मुझे किसी फिल्म में पूरी तरह से शामिल होना और किरदार को समझना और अपना पूरा समय देना पसंद है और एक प्रोजेक्ट पूरी तरह से ख़त्म हो जाने के बाद ही मैं दूसरे से जुड़ता हूं. उदाहरण के लिए अगर मैं किसी फिल्म के लिए अपने बाल बढ़ा रहा हूं, तो मैं उन्हें कटवाना या किसी अन्य भूमिका के लिए अपनी शारीरिक बनावट बदलना पसंद नहीं करूंगा. यही एक कारण है कि मैं एक साथ दो फिल्में नहीं करता हूं. मैं अपने द्वारा निभाए गए किरदारों को समय देना चाहता हूं क्योंकि यह एक भावनात्मक अनुभव है और मुझे फिल्म के लिए समय देना पसंद है. जिस वजह से कई बार मैं एक के बाद तुरंत दूसरे प्रोजेक्ट से नहीं जुड़ पाता हूं.

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