इस बार एकेडमी अवार्ड के बेस्ट इंटरनेशनल फीचर फिल्म कैटेगरी में ये पांच फिल्में अंतिम सूची में हैं- बेल्जियम के लूकास धोंट की ‘क्लोज’, पोलैंड के जेर्जी स्कोलीमोवस्की की ‘ईओ’, आयरलैंड के कोम बेयरिड की ‘द क्वाएट गर्ल’, जर्मनी के एडवर्ड बर्गर की ‘ऑल क्वाएट आन द वेस्टर्न फ्रंट’ और अर्जेंटीना के सेंटियागो मित्रे की ‘अर्जेंटीना 1985’. ऑस्कर पुरस्कार अमेरिका के लास एंजिल्स शहर के भव्य डोल्बी थियेटर में 12 मार्च 2023 की शाम प्रदान किये जायेंगे. सुखद आश्चर्य है कि हमेशा की तरह इस बार भी कान फिल्म समारोह में प्रदर्शित कई फिल्मों को नॉमिनेशन मिले हैं. कई देशों से ऑस्कर के लिए भेजी गयीं अधिकृत फिल्में भी कान में दिखायी गयी हैं. इससे प्रमाणित होता है कि विश्व के व्यावसायिक और कला फिल्म उद्योग में कान समारोह का दबदबा बरकरार है.
बेस्ट इंटरनेशनल फीचर फिल्म श्रेणी में नामांकित फिल्मों में सबसे दिलचस्प है ‘ईओ‘, जिसके नायक इंसान नहीं चार गधे हैं, जो मनुष्य की पाशविक क्रूरता का डटकर मुकाबला करते हैं और अंततः जीतते हैं. ये गधे अपनी तरह से इंसानों की दुनिया में विचरण करते हुए जिंदगी का अर्थ खोजते हैं. इस फिल्म को कान में जूरी प्राइज मिल चुका है. निर्देशक स्कोलीमोवस्की ने अपने सभी पुरस्कार इन गधों को समर्पित किया है. ‘क्लोज‘ बारह-तेरह साल के दो किशोरों की सघन दोस्ती, अलगाव और स्मृतियों की कहानी है, जो बच्चों की अपनी दुनिया में हमें दूर तक ले जाती है. बच्चों के मनोविज्ञान पर बहुत गहराई से विचार किया गया है. इस फिल्म को भी कान का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण पुरस्कार ‘ग्रैंड प्रिक्स’ मिल चुका है.
‘द क्वाएट गर्ल’ क्लेयर कीगन की सुप्रसिद्ध रचना ‘फोस्टर’ पर आधारित है, जिसमें चुप रहनेवाली नौ साल की लड़की केट अपने तरीके से दुनिया को अनुभव करती है. उसकी मां जब दूसरी बार गर्भवती होती है, तो 1981 की गर्मियों में उसे दूर के एक रिश्तेदार के पास भेज दिया जाता है. वहां उसे पहली बार घर जैसी चीज की सुखद अनुभूति होती है. यह फिल्म एक बिखरे परिवार में कलह और लापरवाही के बीच एक बच्ची के आंतरिक संघर्ष की कहानी है. यह फिल्म आयरलैंड में सफलता के कीर्तिमान स्थापित कर चुकी है. ‘ऑल क्वाएट आन द वेस्टर्न फ्रंट’ प्रथम विश्व युद्ध में एक जर्मन सैनिक की आत्म स्वीकृतियां है. यह फिल्म इसी नाम से 1929 में प्रकाशित एरिक मारिया रेमार्क के विश्वप्रसिद्ध उपन्यास पर आधारित है, जिसे हिटलर के समय में प्रतिबंधित कर दिया गया था. फिल्म युद्ध की निरर्थकता को इंगित करती है.
‘अर्जेंटीना 1985’ इतिहास की उन सच्ची घटनाओं पर आधारित है, जब 1976-1983 के बीच आखिरी सैनिक तानाशाही ने नागरिकों का बर्बर नरसंहार किया था. सैनिक तानाशाही के खात्मे के दो साल बाद 1985 में एक साधारण और अकुशल युवा वकील जूलियो सेजार स्ट्रासेरा और उसकी अनुभवहीन लीगल टीम ने सैनिक तानाशाहों को सजा दिलवायी थी. इस फिल्म को वेनिस फिल्म समारोह में फिप्रेस्की का पुरस्कार और विदेशी भाषा की बेस्ट फिल्म का गोल्डन ग्लोब पुरस्कार मिल चुका है. ये पांचों फिल्में अपनी सशक्त पटकथा, जीवन के अनछुए प्रसंगों और अद्भुत सिनेमाई सौंदर्यबोध के कारण पहले से ही पुरस्कृत, प्रशंसित और सुपरहिट हो चुकी हैं.
अजित राय (लेखक-समीक्षक)