हिंदी सिनेमा के कालजयी गायकों में शुमार गायक कुमार शानू ने हाल ही में इंडस्ट्री में अपने चार दशक पूरे कर लिए हैं. वह इस जर्नी को बहुत खास मानते हैं कि दर्शकों ने उन्हें इतना प्यार और सम्मान दिया कि दशकों तक वह इस इंडस्ट्री का हिस्सा बने हुए हैं. उनकी इस जर्नी उससे जुड़े उतार – चढ़ाव पर उर्मिला कोरी की हुई बातचीत.
इन चार दशकों में आपका संघर्ष क्या रहा है ?
मुझे याद है पहली बार जब मैंने माइक्रोफ़ोन हाथ में पकड़ा तो मैंने कोरस कलाकारों को यह कहते हुए सुना – देखो कलकत्ता से एक और गायक आ गया है. उस ताने को सुनने के बाद भी मैंने अपना गाना गाया. बंगाली होने की वजह से सभी को लगता था कि मैं हिंदी भाषा में नहीं गा पाऊंगा. कमाल की बात है कि बातचीत करते हुए मेरा बांग्ला उच्चारण हमेशा आता है, लेकिन गाते हुए एक भी शब्द में आपको इस एहसास नहीं होगा. यह बात कल्याण जी आनंद जी भाई को भी काफी अलग लगी थी. वैसे मुझे बंगाली समझकर लोगों को लगे ना कि ये सही से नहीं गा पाएगा इसलिए उन्होने मेरा नाम केदारनाथ भट्टाचार्य से कुमार शानू कर दिया था. मैं बताना चाहूंगा कि मैंने अपने करियर के शुरुआत से ही सिर्फ हिंदी ही नहीं बल्कि उर्दू पर भी काम किया. जब मैं होटलों में गाता था, उस वक़्त ही मैंने उर्दू का एक टीचर रखा हुआ था.
इस जर्नी में क्या कोई रिग्रेट भी है?
बहुत सारे हैं,लेकिन कुछ ही मेरे दिल के करीब हैं. मैं हमेशा से अपना खुद का चार्टर्ड प्लेन चाहता था और मैंने इसे पाने के लिए इस पर बहुत काम भी किया, लेकिन फिर चीज़ें वैसी नहीं हो पायी. इस अफ़सोस के साथ – साथ ये भी अफ़सोस है कि मैं हमेशा से शंकर-जयकिशन, एसडी बर्मन जैसे प्रतिभाशाली संगीतकारों के साथ काम करना चाहता था, लेकिन तब मैं इंडस्ट्री में ही नहीं आ पाया था.
जिंदगी उतार – चढ़ाव से भरी होती है क्या आपकी जिंदगी में शो मस्ट गो ऑन वाला मामला भी हुआ है?
मुझे लगता है कि यह हमारे काम के प्रति हमारी सर्वोच्च प्रतिबद्धता है. मुझे याद है कि जब मेरे पिता की मृत्यु हुई थी. उसी दिन मैंने पश्चिम बंगाल में एक लाइव शो किया था. इतने टिकट बिक चुके थे. मैं अचानक से शो कैंसिल नहीं कर सकता था. मैं बताना चाहूंगा कि मेरे पिता ने मुझसे वादा लिया था कि मैं अपने बाल उनकी मौत के बाद नहीं कटवाऊंगा, क्योंकि मैं एक आर्टिस्ट हूं. अपने पेशे के प्रति मेरी सबसे बड़ी प्रतिबद्धता है. ऐसा ही तब हुआ जब मैंने अपनी मां को खो दिया. हमारे जीवन में जो कुछ भी घटित होता है उसे भूलकर हमें परफॉर्म करना होता है. यह एक कलाकार का काम है.
अक्सर कहा जाता है कि सिंगर्स खट्टा या ठंडा नहीं खाते हैं?
मैं सब कुछ ख़ाता हूं, हां सुपारी वाला पान नहीं ख़ाता हूं, क्योंकि उससे जीभ मोटी होती है. उससे फिर बोलने में परेशानी होगी.
इंडस्ट्री में चार दशक बिताने के बाद म्यूजिक लेबलस की मौजूदा पॉलिटिक्स क्या परेशान नहीं करती है?
मैं बिल्कुल भी परेशान नहीं हूं. हां कैंप्स हैं और वे उस कैंप्स से बाहर के गायकों को नहीं लेते हैं. लेकिन मुझे मेरा पेमेंट मिल रहा है, लोग मुझे सम्मान से बुलाते हैं और मैं अपना काम करता हूं. हर दूसरे दिन मैं गाने रिकॉर्ड कर रहा हूं. और मैं केवल अपनी तरह के गाने चुनता हूं जिनमें अच्छी धुन और अच्छे बोल हों. भले ही मुझे बड़े बैनर की फिल्मों में नहीं सुना जाता हो लेकिन मैं अब भी गा रहा हूं. अभी हाल ही में वेब सीरीज गन्स एंड गुलाब में मेरी आवाज थी.
आप खुद किस तरह के गानों को सुनते है?
संगीत मैं ज़्यादा नहीं सुनता हू्ं. ख़ासकर अपने गाने मैं बिल्कुल भी नहीं सुनता हूं. मुझे अंग्रेजी और साउथ फिल्में देखना पसंद है. मैंने देखा है कि आपको साउथ की फिल्मों से बहुत कुछ सीखने को मिलता है. और वहां की फिल्में काफी तेज और आकर्षक होती हैं.
अक्सर कहा जाता है कि साउथ का संगीत ज़्यादा बेहतर है?
मेरे हिसाब से हिंदी फिल्म संगीत सबसे अच्छा है. हिंदी फिल्म म्यूजिक में कमाल का काम हुआ है. हां अभी थोड़ा हिंदी फिल्मों में म्यूजिक पर अच्छा काम नहीं हो रहा है.
क्या कभी आपने अपनी ऑटोबायोग्राफी लिखने के बारे में सोचा है?
फिलहाल मैं आपको बता सकता हूं कि लोगों ने आत्मकथा के लिए मुझसे संपर्क किया है लेकिन मैं ही इसके लिए समय नहीं दे पा रहा हूं. मैं अभी भी इसके बारे में सोच रहा हूं. देखते हैं कि भविष्य में क्या होगा.
आप अपनी विरासत को अगली पीढ़ी तक कैसे पहुंचते हुए देखते हैं?
मेरे बच्चों को यह अपने दम पर करना होगा, मैं उनका हाथ पकड़कर उसे पूरा नहीं कर सकता. यहां पापा कुछ नहीं कर सकते हैं, बच्चों को खुद मेहनत करनी पड़ेगी.
अब संगीत में क्या अचीव करने का सपना है?
मेरा अब कोई सपना नहीं है, मैं बस अपने जीवन के आखिरी समय तक गाना जारी रखना चाहता हूं.’ क्योंकि जब आप वह काम नहीं करते जिसके आप आदि हैं, तो लोग आपको भूल जाते हैं, तो मैं हमेशा गाना चाहता हूं.