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Exclusive: छठ के त्योहार की चमक और परंपरा की दमक को बढ़ाते इन गीतों को बनाना नहीं आसान

मूल रूप से बिहार के सिवान से जुड़े सिंगर और कंपोजर सुशांत अस्थाना का नाम उन कलाकारों में शुमार है, जो परंपरागत गीत को वेस्टर्न म्यूजिक के साथ जोड़कर युवा पीढ़ी को अपनी विरासत से जोड़ रहे हैं. इसमें छठ गीत भी शामिल हैं.

आस्था के महापर्व छठ की शुरुआत हो चुकी है. इस महापर्व में गीतों का विशेष महत्व होता है. यही वजह है कि छठ पूजा पर ना जाने कितने गीत रिलीज होते हैं, लेकिन इस भीड़ में भी कुछ लोग छठ पूजा के गीतों को ना सिर्फ़ पूरी आस्था के साथ बना रहे हैं. बल्कि आनेवाली पीढ़ी के लिए समृद्ध छठ गीतों की विरासत को भी गढ़ रहे हैं लेकिन बाज़ार के चलन से कुछ अलग और नया करना आसान नहीं होता है. कई चुनौतियों इससे जुड़ी रहती हैं. उसी की पड़ताल करता उर्मिला कोरी यह आलेख.

अच्छा और अलग काम बोलते हैं लेकिन प्रमोट नहीं करते हैं- सुशांत अस्थाना

मूल रूप से बिहार के सिवान से जुड़े सिंगर और कंपोजर सुशांत अस्थाना का नाम उन कलाकारों में शुमार है, जो परंपरागत गीत को वेस्टर्न म्यूजिक के साथ जोड़कर युवा पीढ़ी को अपनी विरासत से जोड़ रहे हैं. इसमें छठ गीत भी शामिल हैं. इस साल भी उन्होंने अपने यू ट्यूब चैनल पर छठ गीत जारी किया है. ‘उगअ हे दीनानाथ..’ शीर्षक से यह उनका भोजपुरी छठ गीत है. इस गीत के बारे में सुशांत बताते हैं कि इसमें इस पर्व की लोक आत्मीयता को बरकरार रखते हुए भारतीय संगीत के साथ-साथ पाश्चात्य संगीत को भी जोड़ा गया है. बांसुरी पंडित अजय प्रसन्ना और शहनाई पंडित लोकेश आनंद ने दिया है. रशियन आर्टिस्ट लेरा ने हार्प वाद्ययंत्र बजाया है, जबकि तुर्की की आर्टिस्ट लुईजा ने चेलो बजाया है. सुशांत आगे बताते हैं कि सबसे बड़ी दिक्कत स्पॉन्सरशिप की होती है, लेकिन लोग मदद को आगे आ ही जाते हैं. इस बार इसमें ‘बेजोड़’ वाले नितिन चंद्रा भी शामिल हैं. मुझे स्पॉन्सरशिप को ढूंढ़ने की परेशानी नहीं होती है, लेकिन जब लोग बोलते हैं कि आप लोग अलग और अच्छा काम कर रहे हैं, लेकिन वो हमारे काम को प्रोमोट नहीं करते हैं, तो बुरा लगता है. आप अच्छे काम को बढ़ावा देने के लिए कम से कम उसे सोशल मीडिया पर शेयर तो कर सकते हैं. मगर, मैं रुकने वाला नहीं हूं. अपनी भाषा और परंपरा को बढ़ावा देने के लिए मैं ऐसे ही काम करता रहूंगा, ताकि नयी पीढ़ी को भी अपनी भाषा और परंपरा से जोड़ सकूं.

व्यूज का गोरखधंधा कई बार अच्छे काम को आगे आने नहीं देता है – दीपक ठाकुर

बिग बॉस फ़ेम सिंगर दीपक ठाकुर ने भी हर साल की तरह इस साल अपने यूट्यूब चैनल से छठ गीत जारी किया है. छठ से जुड़े रीति रिवाज को उनके छठ गीत छठ करब अबकी बार में प्रमुखता से दिखाया गया है. अपने इस छठ गीत के बारे में दीपक बताते हैं कि छठ के गानों में सुकून होता है. बचपन से हम ऐसे ही गाने सुनकर बड़े ह्हैं,लेकिन कुछ गानों को छोड़ दें तो छठ के गानों में भी धूम धड़ाका बज रहा है. डीजे पर छठ का गीत बज रहा है. अब इससे ज़्यादा बुरा क्या होगा. ये गाने जैसे ही रिलीज़ होते है ,कुछ मिनटों में कई लाख व्यूज़ पार कर देते हैं. यह बात किसी से छिपी नहीं है कि ये इतने व्यूज़ कैसे पाते हैं. ये गोरखधंधा है लेकिन लोग ऐसे ही गानों को प्रमोट कर रहे हैं. जिससे कई बार अच्छा काम दब जाता है क्योंकि कई बड़े स्टार इन गानों से जुड़े होते है. इतने लाखों का व्यू मिल गया है. यही बात चलती रहती है लेकिन वे लोग भूल जाते हैं. वो कितना भी शोर शराबा करें लेकिन उनका गाना आज आया एक हफ़्ते में भुला दिया जाता है. अच्छे काम को आगे आने में समय लगता है लेकिन आख़िर में बरकरार वही रहने वाला है. बिग बॉस फ़ेम दीपक ठाकुर इसके साथ यह भी शेयर करते हैं कि पारंपरिक तरीक़े से बनाये गये छठ गीत को लोग स्पॉन्सर नहीं करते हैं इसलिए मेरे परिचित में जो भी लोग हैं ,जैसे एडिटर,फोटोग्राफर और भी लोग उनकी मदद से मैं सीमित संसाधन में ही सही एक पारंपरिक छठ गीत हर साल बना ही लेता हूं.

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अंगिका भाषा में छठ गीत बनाने के लिए खुद पैसे दिए – आदर्श आदि

भोजपुरी में अश्लीलता के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे गायकों में आदर्श आदि का का नाम भी अक्सर चर्चा में रहता है . आदर्श बातचीत करते हुए बताते है कि इस बार हमारे चैनल मिसरी से छठ के पांच गाने जारी किए गए हैं ,दो अनप्लग्ड टाइप हैं तीन का पूरा वीडियो शूट हुआ है. जिसमें से दो गाने प्रमुख हैं. एक गीत भोजपुरी में हे छठी मईया ४.०है, जिसे दीपाली सहाय ने गाया है. यह गाना छठ पूजा और परिवार की महता को दर्शाता है जबकि दूसरा गीत अंगिका भाषा में गीत छठ ना छोरयो है. यह गीत बिहार से दूर रह रहे नौकरी पेशा युवाओं के दर्द को सामने लाता है ,जिन्हें छठ पर छुट्टी नहीं मिलती है. इस गाने से छठ पर छुट्टी देने की गुहार है. हम अब तक भोजपुरी भाषा में ही गीत बना रहे थे. इस साल हमें लगा कि बिहार की हर भाषा पर काम होना चाहिए. हमारी कोशिश आगे भी ऐसी ही रहेगी. अगले साल मगही ,ब्रजिका और पुर्वांचल की दूसरी भाषाओं पर काम होगा. भोजपुरी गीतों की इमेज को साफ सुथरा करने में जुटे आदर्श अपने अब तक के सफर से जुड़ी चुनौतियों पर कहते हैँ कि लोगों को चैनल का काम पसंद है लेकिन जब बात स्पॉन्सरशिप की होती है तो अगला बोलता था कि हिन्दी में होता था तो करते थे. वैसे इस बार बिहार की कंपनी है टफ कॉन एक्सटी ,जिसके ब्रांड एम्बेसडर टाइगर श्रॉफ़ हैं. उन्होंने ख़ुद से कॉल करके कहा कि हमें आपके साथ काम करना है ,जो एक अच्छा बदलाव है. हालांकि अंगिका वाले छठ गीत हमने ख़ुद से पैसे लगाकर बनाया है गाया मैंने ही है लिखा भी ख़ुद से है. उससे जुड़े आर्टिस्ट और तकनीकी टीम में से सभी ने मुफ़्त में काम किया है ,जिससे ३० से ३५ हज़ार की ही लागत आयी जिसे फिर हमने अपने जेब से भरे.मख़ुशी है कि अपनी भाषाओं को बढ़ावा देने में हम कुछ योगदान तो दे पा रहे हैं.

समय पर स्पॉन्सरशिप नहीं मिला तो रुकने का फ़ैसला करना पड़ा- नितिन चंद्रा

छठ पूजा के मौक़े पर बेजोड़ बीते सात सालों से बेजोड़ छठ गीत बनाते आये हैं, लेकिन इस बार बेजोड़ ने छठ गीत जारी नहीं किया है. इस पर बातचीत करते हुए चंपारण टॉकीज के निर्माता,निर्देशक और लेखक नितिन चंद्रा कहते हैं कि इस बार रुकना पड़ गया. समय पर कोई स्पांसरशिप नहीं मिली. टाटा टी के साथ तीन सालों का करार पिछले साल ही ख़त्म हो गया था. हम जून जुलाई से ही छठ गीत पर काम करना शुरू कर देते हैं , दो भाइयों की कहानी को हमलोग इस बार छठ गीत में दिखाने की सोच रहे थे ,लेकिन अगस्त तक कोई बड़ा स्पान्सरशिप नहीं मिला तो हमने रुकने का फ़ैसला ना चाहते हुए करना पड़ा. हर बार मैं और नीतू ( चंद्रा)ने अपना पैसा लगाया है. सात में से चार छठ गीत हमारे घर पर शूट हुए हैं,हां सपोर्ट भी मिला. इस बार समय रहते वैसा सपोर्ट नहीं मिल पाया. दुर्भाग्य की बात है कि कुछ बड़े जो एंटरप्राइसेज हैं. उनकी सलाह थी कि उस भोजपुरी सिंगर एक्टर अपने छठ गीत में ले लीजिए तो हम फंडिंग कर देंगे. मुझे लगता है कि भोजपुरी ही एक मात्र ऐसी इंडस्ट्री हैं, जिसमें साल भर फूहड़ता फैलाने वाले कलाकार फिर देवी गीत और छठ के गीत भी गाते हैं. मेरे लिये ये कोई व्यवसाय नहीं है. मेरे लिये ये आस्था और परम्परा को बढ़ावा देने का मुहिम है. अच्छी बात ये है कि बेजोड़ ने अच्छे छठ गीतों का एक माहौल बना दिया है ।जिसका हिस्सा कई युवा कलाकार पिछले पांच सालों से लगातार बन रहे हैं. जिनके काम को देखकर ख़ुशी मिलती हैं.

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