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झवेरचंद मेघाणीः जिन्हें कहा गया ‘राष्ट्रीय शायर’

गुजराती साहित्य के ख्यातिलब्ध नामों में गिने जाने वाले झवेरचंद कालिदास मेघाणी की प्रतिष्ठा का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है, कि स्वयं महात्मा गांधी ने उन्हें ‘राष्ट्रीय शायर’ के नाम से पुकारा था.

1930 में गुजराती में उनका एक काव्य-संग्रह ‘सिंधुड़ो’ नाम से आया जिसमें स्वाधीनता की अलख जगाने वाली कविताएं थीं. देखते ही देखते ये कविताएं खासी लोकप्रिय हो गईं जिसके बाद ब्रिटिश शासन ने इस किताब पर प्रतिबंध लगा कर उन्हें जेल में डाल दिया.

झवेरचंद कालिदास मेघाणी

गुजराती साहित्य के ख्यातिलब्ध नामों में गिने जाने वाले झवेरचंद कालिदास मेघाणी की प्रतिष्ठा का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है, कि स्वयं महात्मा गांधी ने उन्हें ‘राष्ट्रीय शायर’ के नाम से पुकारा था. उनकी स्मृति में गुजरात में उनके जन्मस्थान चोटिला में स्थित सरकारी कॉलेज का नाम ‘राष्ट्रीय शायर झवेरचंद मेघाणी आर्ट्स कॉलेज’ रखा गया. 28 अगस्त, 1896 को उस समय के सौराष्ट्र व वर्तमान गुजरात के सुरेंद्रनगर जिले में स्थित चोटिला में कालिदास व ढोलिमा मेघाणी के घर में जन्मे झवेरचंद की अधिकांश शिक्षा-दीक्षा राजकोट में हुई. छुटपन से ही वह ‘सादा जीवन उच्च विचार’ के इतने बड़े समर्थक थे कि कॉलेज में सहपाठी उन्हें राजा जनक पुकारा करते थे. 1917 में कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह कोलकाता की एक कंपनी में नौकरी करने लगे. वहां उन्होंने बहुत जल्दी अपनी मेहनत और लगन से काफी नाम व ऊंचा पद हासिल कर लिया. 1922 में वह कोलकाता छोड़ गुजरात वापस आ गए और ‘सौराष्ट्र’ नामक साप्ताहिक समाचार-पत्र से जुड़ गए. लिखने-पढ़ने में उन्हें बचपन से ही अभिरुचि थी. कोलकाता में नौकरी करने के दौरान उन्होंने न केवल रवींद्रनाथ टैगोर, बंकिम चंद्र चटर्जी, दिनेश चंद्र सेन जैसे विख्यात बांग्ला साहित्यकारों को पढ़ा, अपितु उनके संपर्क में आने से उनके भीतर का साहित्य-सागर भी हिलोरें लेने लगा.

‘राष्ट्रीय शायर’ की उपाधि

बचपन से ही कविताएं लिखने के शौकीन रहे झवेरचंद की पहली किताब ‘कुर्बानी नी कथा’ 1922 में प्रकाशित हुई जो असल में रवींद्रनाथ टैगोर के लघु-कथाओं के संग्रह ‘कथा ओ काहिनी’ का गुजराती रूपांतरण थी. गुजराती लोक-साहित्य के क्षेत्र में झवेरचंद ने अविस्मरणीय योगदान दिया. उन्होंने गुजरात के गांव-गांव में घूम कर लोक-कथाओं को एकत्र किया और अपने संग्रह ‘सौराष्ट्र नी रसधार’ के विभिन्न संस्करणों में प्रकाशित किया. उनकी लिखी कविताएं गुजरात के पाठ्यक्रमों में भी पढ़ाई जाती हैं व उनके अंग्रेजी अनुवाद भी हुए हैं. 1930 में गुजराती में उनका एक काव्य-संग्रह ‘सिंधुड़ो’ नाम से आया जिसमें स्वाधीनता की अलख जगाने वाली कविताएं थीं. देखते ही देखते ये कविताएं खासी लोकप्रिय हो गईं जिसके बाद ब्रिटिश शासन ने इस किताब पर प्रतिबंध लगा कर उन्हें जेल में डाल दिया. 1931 में जब गांधी जी भारत की आजादी की मांग को लेकर दूसरे गोल मेज सम्मेलन में भाग लेने लंदन जा रहे थे तो झवेरचंद ने उन्हें प्रेरित करने के लिए एक कविता लिखी. ‘छेल्लो कटोरो’ नाम की इस कविता में उन्होंने गांधी जी का आह्वान किया कि वह भारत के लिए विष से भरे इस आखिरी कटोरे का भी पान करें. उनके लेखन से प्रभावित होकर गांधी जी ने उन्हें ‘राष्ट्रीय शायर’ की उपाधि दी थी.

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झवेरचंद ‘फूलछाब’ समाचार-पत्र के संपादक भी रहे. उन्होंने ढेरों लघु-कहानियां भी लिखीं. लोकगीतों और लोक-काव्य में उनके किए काम ने उन्हें ‘मानभट्ट’ कवि का दर्जा भी दिलाया. इस शैली में लिखा उनका एक ‘मोर बणी थन्घाट करे…’ बहुत लोकप्रिय रहा है. असल में 1944 में लिखे उन्होंने यह गीत ‘नवी वर्षा’ शीर्षक से लिखा था जो उनके संग्रह ‘रवींद्र वीणा’ में सम्मिलित था. वास्तव में यह रवींद्रनाथ टैगोर के ‘नववर्षा’ से प्रेरित गीत था जिसे विख्यात गुजराती संगीतकार, गायक हेमू गढ़वी ने संगीतबद्ध किया था. इस गीत को अनेक गायक अलग तरह से गाते आए हैं. 2013 में आई निर्देशक संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘गोलियों की रासलीला राम-लीला’ में इस गीत को गुजराती लोक गायक उस्मान मीर ने गायिका अदिति पॉल के साथ गाया था. 9 मार्च, 1947 को झवेरचंद का निधन हो गया. उनके रचे बेशुमार गीतों, कविताओं, कहानियों को आज भी गुजरात में बेहद चाव से पढ़ा, सुना जाता है.

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