मुझसे दोस्ती करोगे,फना,हम तुम जैसी फिल्मों के निर्देशक कुणाल कोहली इनदिनों ज़ी फाइव की फ़िल्म लाहौर कॉन्फिडेंशियल को लेकर सुर्खियों में हैं. उनकी इस फ़िल्म ,डिजिटल माध्यम और दूसरे पहलुओं पर उर्मिला कोरी की बातचीत
लाहौर कॉन्फिडेंशियल फ़िल्म की कहानी में आपको क्या अपील कर गया जो आपको लगा कि कहानी कही जानी चाहिए ?
जब भी वॉर की कहानी या स्पाई थ्रिलर स्क्रीन पर कही जाती है.उसमें हमेशा लड़के को फंसाने के लिए एक लड़की का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन यहां पहली बार हो रहा था. लड़की को फंसाने के लिए एक लड़के का इस्तेमाल किया जा रहा है. यह ट्विस्ट मुझे थोड़ा अलग लगा।लगा कि कहानी को कहने में मज़ा आएगा. महिला पात्र के ज़रिए कहानी कही गयी है।रिचा चड्ढा जैसी अभिनेत्री फ़िल्म में हैं. ये भी अपील कर गया.
क्या आपको लगता है कि स्पाई फिल्में महिला पात्रों को सही ढंग से पेश नहीं किया जाता है ?
हां मुझे लगता है कि महिला पात्रों को स्पाई फिल्मों में उस तरह से बॉलीवुड में नहीं दिखाया जाता है. जैसे उनको दिखाया जाना चाहिए।हां राजी इस मामले में अपवाद थी. महिला पात्र को बहुत ही सशक्त ढंग से पेश किया गया था.
इस फ़िल्म की शूटिंग लॉकडाउन के बाद हुई थी ऐसे में अरुणोदय और रिचा चड्ढा इंटीमेट सीन को लेकर कितने सहज थे ?
उन्होंने कहा था कि शूटिंग सेट को देखकर वो तय करेंगे. उन्होंने जब देखा कि पूरी सावधानी बरती जा रही है. सभी के टेस्ट हुए हैं तो उन्होंने सहजता से इंटिमेट सीन कर दिया.
डिजिटल माध्यम के लिए फिल्में बनाते हुए क्या चुनौतियां होती हैं ?
डिजिटल के लिए फ़िल्म बनाने का एक अलग ही अनुभव होता है. उससे जुड़ी अपनी चुनौतियां हैं. जब आप थिएटर के लिए फिल्में बनाते हैं तो आपको पता है कि हमारे दर्शक ये हैं।उनके लिए ये फ़िल्म बनानी है. डिजिटल चैनल में जो लोग होते हैं. उनकी बातें कभी कभी सुननी पड़ती है. थिएटर की फिल्मों पर बॉक्स आफिस प्रेशर होता है तो डिजिटल की फिल्मों और प्रोजेक्ट्स पर सोशल मीडिया का. आपकी फ़िल्म की चर्चा सोशल मीडिया पर होनी ही चाहिए. कोई भी डिजिटल प्लेटफार्म अपने नंबर्स तो बताता नहीं है तो यहां इस बात पर ही फोकस होता है कि आपके प्रोजेक्ट की चर्चा सोशल मीडिया पर होनी ही चाहिए. 1992 स्कैम ऐसा प्रोजेक्ट्स है जो हिट है तो हर किसी को उसके बारे में पता है. आपका प्रोजेक्ट हिट है।ये आपको बताने की ज़रूरत नहीं है. सोशल मीडिया खुद बता देता है.
तो सोशल मीडिया ओटीटी की सफलता का अहम पैमाना है ?
सोशल मीडिया तो अभी हर चीज़ के लिए अहम हो गया है फिर इलेक्शन हो सरकार हो. ओटीटी की टारगेट ऑडियंस वही है. जो सोशल मीडिया पर एक्टिव है.
ओटीटी प्रोजेक्ट्स पर बढ़ते विवाद के बीच सेंसरशिप की बातें आती रहती हैं ?
हर चीज़ को सेंसर कर देंगे तो फ्रीडम ऑफ स्पीच का मतलब क्या रह जायेगा.
आपके आनेवाले प्रोजेक्ट ?
एक रामायण पर फ़िल्म बना रहा हूं रामयुग. जो मैक्स प्लेयर पर फरवरी में रिलीज होंगी.
Posted By: Shaurya Punj