फिल्म अभिनेता मनोज बाजपेयी ने प्रभात खबर संवाद में कहा कि आज वह अपने जीवन के सर्वश्रेष्ठ समय में हैं. आशय यह है कि काम के कारण व्यस्त रहना होता है, पर इसके बावजूद जीवन के अनुशासन मे ढील नही बरतते. उन्होंने कहा कि सुबह से देर रात तक काम कर पा रहा हूं, तो यह अनुशासन से ही संभव हो पाता है. वह बताते है कि मुंबई के शुरूआती दिन बड़े ही ‘भयानक’ थे. एक छोटे से चाॅल के एक कमरे मे दो लोगो के साथ रहना, कभी खाना मिलता तो कभी नही भी. दिल्ली मे रंगमंच का सफल कलाकार होना मुंबई के फिल्म निर्दशकों के लिए कोई मायने नही रखता. उनका फाॅर्मूला है कि बाॅक्स ऑफिस पर कितनी कमाई होगी.
कविता और राजनीति की गहरी समझ रखने वाले मनोज ने कहा कि राजनीति उनका प्रिय विषय है. चुनाव को लेकर उनकी टिप्पणी सटीक रही है, लेकिन राजनीति मे वह खुद नही आयेंगे. राजनीति का ‘र’ भी मुझ में नही है. चुनाव आता है तो सभी पार्टियों से फोन आने लगते है. इसलिए मैं फोन उठाना कम कर देता हूं. उन्होने बताया कि 18 साल की उम मे पश्चमी चंपारण के बेलवा गांव से ट्रेन से दिल्ली पहुंच गये. यहां उन्होने ग्रेजुएशन किया और नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) मे दाखिले के लिए प्रयास करने लगे. इस दौरान पैसे का अभाव रहा, रहने का ठिकाना नही, इसके बावजूद उन्होंने 10 साल तक मंडी हाउस मे बेहतर काम किया. पैसा भले नही मिला, लेकिन व्यस्तता आज की ही तरह रही.
खुद को अभिनेता के रुप मे स्थापित करने के इरादे के बावजूद वह मुंबई नहीं गए. उन्होंने अभिनय की विधा को मजबूत करने के लिए एनएसडी मे नामांकन के लिए पहले दिन से रंगमंच करना शुरु कर दिया. इसमे वह सफल भी हुए, लेकिन एनएसडी मे नामांकन नहीं हो पाया. तीन-तीन बार रिजेक्शन झेलना पड़ा. मुंबई मे भी रिजेक्ट किया गया. उन्होने बताया कि एक डायरेक्टर ने कहा: यार इसका क्या किया जाए. ये न तो हीरो लायक है न खलनायक की तरह. मनोज बताते है कि मुझे लगता है कि रिजेक्शन आदमी को मजबूत बनाता है. वह दिल्ली मे शेखर कपूर की सलाह पर मुंबई गये. मुंबई मे उन्हें पहला मौका बैंडिट क्वीन मे मिला. बैंडिट क्वीन के बाद उसके सभी कलाकारों को काम मिलता गया.