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Drishyam Review: रहस्य और रोमांच से भरी है अजय देवगन की ‘दृश्यम 2’, फुल एंटरटेनमेंट पैसा वसूल

Drishyam Review: दृश्यम 2 ने सिनेमाघरों में दस्तक दे दी है. अजय देवगन की यह सस्पेंस और रोमांच से भरी रीमेक फिल्म आपको बांधे रखती है. बेहतरीन कहानी और स्क्रीनप्ले के साथ- साथ कलाकारों का उम्दा परफॉरमेंस.

फ़िल्म -दृश्यम 2 (Drishyam 2 Review)

निर्माता -पैनोरमा फिल्म्स

निर्देशक -अभिषेक पाठक

कलाकार -अजय देवगन, श्रिया सरन, इशिता दत्ता, अक्षय खन्ना, तब्बू रजत कपूर और अन्य

प्लेटफार्म -सिनेमाघर

रेटिंग -तीन

फ़िल्म में अक्षय खन्ना का एक संवाद है कि गांधीजी और लाल बहादुर शास्त्रीजी के बीच क्या एक चीज कॉमन था. जवाब आता है कि 2 अक्टूबर, लेकिन सिनेमाप्रेमियों के लिए 2 अक्टूबर क़ा दिन दृश्यम से भी जुडा है. सोशल मीडिया पर आज भी ढेरो मीम्स इस पर आते -जाते रहते हैं. जो अपने आप इस फ़िल्म की क़ामयाबी की कहानी को बयां करता है. दृश्यम 2 ने सिनेमाघरों में दस्तक दे दी है. यह फ़िल्म भी मोहनलाल की मलयालम वाली दृश्यम 2 का रीमेक ही है,लेकिन हिंदी मेकर्स ने इस बार यह दांव खेला कि ओरिजिनल फ़िल्म को ओटीटी पर हिंदी भाषा में रिलीज नहीं होने दिया था. वैसे अगर आपने ओरिजिनल देख भी ली है, तो भी अजय देवगन की यह सस्पेंस और रोमांच से भरी रीमेक फिल्म आपको बांधे रखती है, बेहतरीन कहानी और स्क्रीनप्ले के साथ- साथ कलाकारों के उम्दा परफॉरमेंस की वजह से, लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि अगर ओरिजिनल फ़िल्म नहीं देखी है, तो एंटरटेनमेंट फुल ऑन होगा.

Drishyam Review: कहानी गड़े मुर्दे उखाड़ती है

दृश्यम 2 अपने आपमें एक सम्पूर्ण फ़िल्म नहीं है. जैसा क़ि आमतौर पर सीक्वल फ़िल्में होती है.यह पहली फिल्म पर पूरी तरह से निर्भर है. कहानी बार -बार अतीत को रेफ़्रेन्स के तौर पर दिखाती है. मतलब गड़े मुर्दे उखाड़ती है.जो कहानी में दफन है. यही इसे खास भी बनाती है. कहानी पर आते हैं, दृश्यम जहां खत्म हुई थी, उससे कहानी सात साल आगे बढ़ चुकी है. अपना बहुत खास आम आदमी विजय सालगांवकार (अजय देवगन ) जो कल तक एक केबल ऑपरेटर था, वह अब मल्टीप्लेक्स थिएटर क़ा मालिक बन गया है. आर्थिक रूप से यह परिवार बहुत संबल नज़र आ रहा है, लेकिन मानसिक रूप से अभी भी पूरा परिवार कमज़ोर है. उन्हें लगता है कि कभी भी पुलिस उनतक पहुंच जाएगी. सबकुछ ऐसे ही चल रहा होता है कि आईजी तरुण अहलावत (अक्षय खन्ना )की एंट्री होती है, मालूम पड़ता है कि वो मीरा ( तबू ) का परिचित है.

Drishyam Review: तरुण की जांच

तरुण विजय के परिवार को अदालत में दोषी साबित करने के लिए पिछले कई सालों से सबूत जुटा रहा है. इसी बीच उसे नंदिनी (श्रिया सरन )का एक कंफेशन मिल भी जाता है और उसके बाद एक बार फिर पुलिस महकमा विशेषकर गायतोंडे (कमलेश सावंत ) विजय और उसके परिवार पर टूट पड़ता है. फिल्म के आखिरी घंटे में दिखाया गया है कि कैसे विजय फिर से अपने परिवार को उस अपराध के लिए जेल जाने से बचाने के लिए हर हद पार कर चुका है, जो उन्होंने खुद का बचाव करते हुए किया था.

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Drishyam Review: आखिरी एक घंटे में बसती है फिल्म की जान

फ़िल्म की स्क्रिप्ट की बात करें तो यही सबसे बड़ी स्टार है. यही वजह है कि इस फ़िल्म का रिमेक हर भाषा में सराहा गया है. फ़िल्म मलयालम फ़िल्म की रिमेक है तो कहानी हूबहू वैसी ही है. हिंदी रिमेक की रनिंग टाइम को मलयालम रिमेक के मुकाबले 20 मिनट कम रखा गया है. जो मलयालम फ़िल्म की खामी से मिली अच्छी सीख थी. निर्देशक अभिषेक पाठक और लेखक जीतू जोसेफ ने कहानी में कुछ नये पहलू जोड़े हैं, लेकिन वह कहानी को बहुत ज़्यादा प्रभावित नहीं करते हैं. जो अच्छी भी बात है.

Drishyam Review: फिल्म का आखिरी एक घंटा है जबरदस्त

फ़िल्म का फर्स्ट हाफ में कहानी को बिल्डअप करने में थोड़ा ज़्यादा समय ले लिया गया है. कहानी सेकेंड हाफ से भागती है और रोमांच को भी दुगुना कर जाती है. फ़िल्म क़ा आखिरी एक घंटा फ़िल्म क़ी जान है और क्लाइंमैक्स फ़िल्म को एक अलग ही लेवल पर ले जाती है. विजय फिल्मों का शौक़ीन है और खुद को बचाने के लिए वह फिल्मों क़ा ही सहारा लेता आया है. इस बार भी उसकी कहानी में फ़िल्म है. स्क्रीनप्ले में सबकुछ बढ़िया है, ऐसा भी नहीं है. कुछ बात खटकती भी है जैसे फॉरेनसिक डिपार्टमेंट में सीसीटीवी क़ा ना होना. पुलिस जब विजय पर इतनी निगरानी रख रही थी, तो विजय का फॉरेनसिक डिपार्टमेंट के वॉचमैन क़ी गहरी दोस्ती को कैसे नज़रअंदाज कर गयी.

Drishyam Review: अजय और अक्षय ने किया कमाल

अभिनय की बात करें तो अजय देवगन ने एक बार फिर शानदार काम किया है. ज़्यादा कुछ बोले बिना अपनी आँखों से उन्होने अपने किरदार के हर पहलू को बखूबी बयां किया है.उन्होने अपने लुक में भी सात सालों के अंतर को बखूबी लाया है.तबू और रजत कपूर सीमित स्क्रीन स्पेस में भी प्रभावित करते हैं.श्रिया सरन, इशिता दत्ता, मृणाल जाधव क़ा काम औसत रह gya है.अक्षय खन्ना की फ़िल्म में एंट्री नयी है, लेकिन उन्होंने अपनी मौजूदगी से फ़िल्म को और अजय के बाद सबसे ज़्यादा एंगेजिंग बनाया है लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि कहीं ना कहीं उनका किरदार इत्तेफ़ाक़ फ़िल्म की याद दिलाता है. गायतोंडे के किरदार में कमलेश सावंत को देखना दिलचस्प है. सौरभ शुक्ला सहित बाकी के किरदार ने भी अपनी मौजूदगी से इस फ़िल्म के रोमांच को और बढ़ाया है.

Drishyam Review: ये पहलू भी हैं खास

फ़िल्म की सिनेमाटोग्राफी अच्छी है. गोवा की खूबसूरती को कैमरे में ठहराव के साथ दिखाना हो या शेकिंग कैमरे से फ़िल्म का शुरूआती एक्शन वाला दृश्य हो या विजय सालगांवकर के परिवार को पुलिस स्टेशन में टॉर्चर करने वाला दृश्य है.यें सभी दृश्य अच्छे बने हैं.इस फ़िल्म के संगीत और बैकग्राउंड म्यूजिक से पुष्पा फेम संगीतकार देवी प्रसाद जुड़े हैं और गीत अमित भट्टाचर्या क़ा है.फ़िल्म का रैप सांग सही गलत सबसे कमाल बन पड़ा है लेकिन वह फ़िल्म के एन्ड क्रेडिटस में आता है. फ़िल्म में दो गाने और हैं, जो औसत है. फ़िल्म के संवाद अच्छे बन पड़े हैं.

Drishyam Review: देखें या ना देखें

रहस्य और रोमांच से भरपूर इस फ़िल्म आप अपने पूरे परिवार के साथ देख सकते हैं. अगर ओरिजिनल नहीं देखी है,तो यह फ़िल्म आपके लिए यादगार अनुभव साबित होगी. इससे इंकार नहीं किया जा सकता है.

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