फ़िल्म- शाबाश मिट्ठूू
निर्देशक-श्रीजीत
कलाकार-तापसी पन्नू, विजय राज, मुमताज सरकार,शिल्पी मारवाह और अन्य
प्लेटफार्म- सिनेमाघर
रेटिंग- 3
पुरुषों के वर्चस्व वाले खेल क्रिकेट में क्रिकेटर मिताली राज ने महिला क्रिकेट को एक खास पहचान दिलायी है. जो उन्हें दुनिया भर की महिलाओं का आदर्श बनाता है. यह फ़िल्म उन्ही की बायोपिक है. जो खेल के मैदान में उनके जीत के संघर्ष भर तक सीमित नहीं था बल्कि घर,समाज,प्रशासन से भी उनके संघर्ष को दर्शाता है.
Shabaash Mithu Review: अंडर डॉग की है कहानी
यह एक अंडर डॉग की कहानी है,और अगर वह अंडर डॉग महिला है,तो मुश्किलें और बढ़ जाती है. जिस देश में क्रिकेट को धर्म और क्रिकेटर्स को भगवान का दर्जा दिया जाता है. उसी देश की महिला क्रिकेट टीम को अपने नाम की इंडियन जर्सी का भी हकदार नहीं समझा जाता है. इस एक बात से समझा जा सकता है कि किस कदर लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी है. इसी पहचान के लिए मिताली और महिला क्रिकेट टीम को जबरदस्त संघर्ष से गुज़रना पड़ा. फ़िल्म में मिताली की जर्नी को उनके बचपन से लेकर भारतीय क्रिकेट टीम की कप्तान बनकर 2017 के वर्ल्ड कप में महिला टीम के शानदार प्रदर्शन तक बयां किया है. इस जर्नी में कदम-कदम पर उन्हें मुसीबतें ही मिली.
संघर्ष की शुरुआत उसके अपने घर से ही बचपन से होने लगती है. उसका भाई और दादी उसके क्रिकेट खेलने के खिलाफ हैं. उसके बाद नेशनल कोचिंग सेंटर में महिलाएं उसके राह में रोड़ा बनती हैं, लेकिन वह अपनी प्रतिभा से भारतीय महिला टीम ही नहीं टीम मेंबर्स के भी दिल में अपनी जगह बनाती है,लेकिन उसे मालूम पड़ता है कि खुद भारतीय महिला क्रिकेट टीम की,तो कोई पहचान ही नहीं है. यहां से पहचान बनाने का सफर शुरू होता है,जो भारतीय महिला क्रिकेट टीम को वुमन इन ब्लू की खास पहचान दिलाती हैं. फ़िल्म की शुरुआत एंगेजिंग और एंटरटेनिंग है. खासकर फ़िल्म का शुरुआती आधा घंटा खास है. आम बायोपिक फिल्मों से अलग शुरुआती आधा घंटा फ़िल्म का है. जिसमें भरतनाट्यम डांसर मिताली के क्रिकेट से जुड़ाव को दिखाया गया है . महिला टीम के लिए एक अदद वॉशरूम भी नहीं है. उन्हें खुले में जाना पड़ता है. यह बात झकझोरती है.
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फ़िल्म की कहानी में सब प्लॉट्स की कमी खलती है।बाकी के खिलाड़ियों और उनकी ज़िंदगी के जद्दोजहद को बस कुछ लाइन्स और दृश्यों के ज़रिए बताया गया है. यह पहलू इस फ़िल्म का खटकता है. फ़िल्म के कई दृश्यों को बेवजह लंबा खिंचा गया है. कई बार वह दुहराते हुए भी लगते हैं. फ़िल्म कुछ दृश्यों में चक दे की भी याद दिला जाता है. मिताली का ड्रेसिंग रूम वाला स्पीच से लेकर शिल्पी मारवाह के किरदार का ग्रे शेड होना. शिल्पी मारवाह का किरदार फ़िल्म में अचानक से निगेटिव से पॉजिटिव कैसे हो गया. मिताली की मां अचानक से मिताली को इतना सपोर्ट कैसे करने लगती है. मिताली और उसके भाई की अनबन भी ठीक तरह से कहानी में स्थापित नहीं हो पायी है. फ़िल्म की कहानी क्रिकेट की है ,लेकिन क्रिकेट मैच का रोमांच परदे से गायब है. गीत -संगीत की बात करें तो यह एक स्पोर्ट्स ड्रामा है तो गीत उसी तरह से जोश से लबरेज हैं हालांकि वह उस तरह से प्रभावी नहीं बन पाए है और फ़िल्म में ज़रूरत से ज़्यादा गाने हैं. जो फ़िल्म की गति में अवरोध बनते हैं.
अभिनय पहलू की बात करें तो इस फ़िल्म की यह अहम यूएसपी है. तापसी पन्नू की मेहनत दिखती हैं. बाकी के कलाकार भी पूरी तरह से अपनी भूमिका में रचे-बसे नज़र आए हैं. उनका लुक हो,संवाद हो या फिर बॉडी लैंग्वेज वह सभी में फिट नज़र आईं हैं. विजय राज भी प्रभावी रहे हैं. बाल कलाकारों ने ज़रूर दिल जीत लिया है खासकर नूरी के किरदार में नज़र आईं बच्ची का आत्मविश्वास बहुत खास है. अभिनय के साथ साथ संवाद भी फ़िल्म में एक अलग रंग भरते हैं. खेल के मैदान में खेल बड़ा है बाकी हर दुख छोटा है. फ़िल्म की सिनेमेटोग्राफी कहानी के अनुरूप है. फ़िल्म में रियल फुटेज का भी इस्तेमाल किया गया है.
एंटरटेनमेंट के लिहाज से मामला भले ही शाबाश वाला नहीं रहा है,लेकिन मिताली राज की प्रेरणादायी कहानी सभी को देखनी चाहिए. जिसने महिला क्रिकेट टीम को उसके सम्मानित मुकाम तक पहुंचाने में एक अहम भूमिका अदा की है. इसके साथ ही यह फ़िल्म हर महिला को तमाम विरोध और अभावों को झेलते हुए अपने सपने को पूरा करने के लिए प्रेरित भी करती है.