भारतीय साहित्य को विश्व पटल पर स्थापित करनेवाले उपन्यासकार, नाटककार, चित्रकार और कविगुरु रवींद्रनाथ टैगोर की आज जयंती है. नोबेल से नवाजे जानेवाले पहले भारतीय रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई, 1861 में कलकत्ता में हुआ था. उनकी काव्यरचना ‘गीतांजलि’ के लिये उन्हें सन 1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला. टैगोर ने न सिर्फ भारत को अपनी लेखनी से संपन्न किया, भारतीयों को पढ़ने और सीखने की संस्कृति दी. पढ़ें प्रीति सिंह परिहार की रिपोर्ट…
टैगोर के विशाल रचना संसार से निकली कई कहानियों और उपन्यासों को देश के शीर्ष फिल्मकारों ने रुपहले परदे पर साकार किया है. उनकी रचनाओं पर बनी फिल्मों का जब हम जिक्र करते हैं, तो फिल्मकार सत्यजीत रे का नाम सबसे पहले जुबान पर आता है. टैगोर की जयंती से ठीक पांच दिन पहले 2 मई को सत्यजीत रे का भी जन्मदिन होता है. टैगोर की सुप्रसिद्ध कहानी ‘नष्टनीड़’ का हिंदी अनुवाद ‘चारुलता’ नाम से प्रकाशित हुआ था. इसी नाम से सत्यजीत रे ने एक बेहद खूबसूरत फिल्म बनायी थी. बीते 17 अप्रैल को ‘चारुलता’ ने भी अपने 54 पूरे किये हैं.
कोविड-19 के इस दौर में जब हम अपने घरों में सिमटे हुए हैं, क्यों न टैगोर की रचनाओं पर बनी फिल्में देखकर इस समय में कुछ बेहतर जोड़ें और इसे यादगार बना लें.
जानें, टैगोर की कहानियों पर बनी फिल्मों के बारे में
चारुलता : टैगोर की कहानी पर बनी सत्यजीत रे निर्देशित फिल्म ‘चारुलता’ परदे पर एक स्त्री के प्रेम, अकेलेपन और पीड़ा को व्यक्त करती एक कविता की तरह है. 17 अप्रैल, 1964 में प्रदर्शित माधबी मुखर्जी अभनीत इस फिल्म को रे की महान फिल्मों में शुमार किया जाता है. इसकी खूबसूरती ही है कि बांग्ला भाषा की यह फिल्म गैर बांग्ला भाषी दर्शकों को भी अपने में बांधे रखती है. टैगोर की इस कहानी में दांपत्य जीवन के अनोखे पहलू के साथ एक स्त्री की उमंगों और अकेलेपन का बेहद संवेदनात्मक चित्रण मिलता है. आप यू-ट्यूब पर यह ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म देख सकते हैं.
काबुलीवाला : रवींद्रनाथ टैगोर की इस बेहद खूबसूरत कहानी पर फिल्मकार तपन सिन्हा ने 1957 में इसी नाम से बांग्ला भाषा में एक फिल्म का निर्माण किया था. काबुलीवाला एक मध्यम आयु वर्ग के फल विक्रेता रहमत खान की कहानी है, जो अपना माल बेचने के लिए अफगानिस्तान से कलकत्ता आता है. यहां वह एक छोटी लड़की मिनी से दोस्ती करता है, जो उसे अपनी बेटी की याद दिलाती है. इसके बाद 1961 में इस कहानी पर हेमेन गुप्ता ने भी एक फिल्म बनायी, जिसके निर्मता बिमल रॉय थे. इसमें रहमत खान की भूमिका बलराज साहनी ने निभायी है. हिंदी में बनी काबुलीवाला यू-ट्यूब पर उपलब्ध है.
घरे बाइरे : रवींद्रनाथ टैगोर के उपन्यास पर बनी इस फिल्म का भी निर्देशन सत्यजीत रे ने किया है. बांग्ला/ अंग्रेजी भाषा में बनी यह फिल्म 4 जनवरी, 1985 में रिलीज हुई थी. राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से नवाजी गयी यह फिल्म बिमला और निखिलेश की कहानी कहती है. इनकी जिंदगी में संदीप के आने के बाद कहानी कौन सा मोड़ लेती है, इसे आप फिल्म में देख सकते हैं. यह फिल्म भी यू-ट्यूब पर देखी जा सकती है.
नौकाडूबी : टैगोर के इस उपन्यास पर 1946 में फिल्म निर्देशक नितिन बोस ने ‘मिलन’ नाम से एक फिल्म बनायी थी. रामानंद सागर ने 1960 में इस पर ‘घूंघट’ नाम से एक फिल्म का निर्माण किया था. रितुपर्णो घोष ने 2011 में बांग्ला भाषा में नौकाडूबी फिल्म का निर्देशन किया. इस दिल को छू लेनेवाली कहानी को आप रितुपर्णो के निर्देशन में हिंदी में ‘कश्मकश’ नाम से देख सकते हैं.
चोखेर बाली : एश्वर्या राय अभिनीत इस फिल्म का निर्देशन भी रितुपर्णो घोष ने किया है. टैगोर के उपन्यास चोखेर बाली पर वर्ष 2003 में बनी इस फिल्म को बांग्ला भाषा की सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का पुरस्कार मिला है. यह विधवा बिनोदिनी के साथ होने वाले अविश्वास, संकीर्णता और विश्वासघात की कहानी कहनेवाली एक बेहद संवेदनशील फिल्म है. इसे आप डिजनी हॉटस्टार पर देख सकते हैं.
लेकिन : गुलजार निर्देशित ‘लेकिन’ फिल्म रवींद्रनाथ टैगोर की कहानी क्षुधित पाषाण पर बनी है. वर्ष 1991 में बनी डिंपल कपाड़िया, हेमा मालिनी व विनोद खन्ना अभिनीत इस फिल्म को आपके इसके बेहद मनमोहक गीतों के लिए भी देख सकते हैं. यह फिल्म यू-ट्यूब पर देखी जा सकती है.
और भी हैं कई फिल्में : इनके अलावा 1971 में बनी जया बच्चन अभिनीत और सुधेंदु रॉय निर्देशित फिल्म ‘उपहार’ टैगोर की कहानी समाप्ति पर केंद्रित एक बेहतरीन फिल्म है. वर्ष 2018 में आयी बॉयोस्कोपवाला भी टैगोर की कहानी काबुलीवाला पर आधारित फिल्म है. इसे आप डिजनी हॉटस्टार पर देख सकते हैं. गीत गाता चल फिल्म, जिसमें सचिन ने मुख्य भूमिका निभायी है, टैगोर की कहानी अतिथि पर केंद्रित है.