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rajesh kumar:एक्टर ने बताया फिल्म बिन्नी एंड फैमिली से जुड़ा है जबरदस्त बिहारी कनेक्शन..जानिये क्या

अभिनेता राजेश कुमार ने इस इंटरव्यू में बताया है कि इस फिल्म में वह विनय के किरदार से बेहद जुड़ाव महसूस करते हैं.वह भी निजी जिंदगी में 48 की उम्र में आकर भी अपने पिता से बात करने की हिम्मत खुद से नहीं कर पाते हैं.

rajesh kumar:एक वक़्त टेलीविजन के लोकप्रिय चेहरों में शुमार अभिनेता राजेश कुमार इनदिनों ओटीटी और फिल्मों में सक्रीय हैं. वह इसे अपने अभिनय की सेकेंड इनिंग और खुद को अभिनेता के तौर पर रीसायकल वर्जन करार देते हैं, जिसमें हर तरह के किरदार उन्हें ऑफर हो रहे है और उन्हें उनके परफॉरमेंस के लिए सराहना भी जा रहा है. उनकी इस नयी इनिंग और उनकी आगामी 27 सितम्बर को रिलीज को तैयार फिल्म बिन्नी एंड फॅमिली पर उर्मिला कोरी से हुई बातचीत 

 
फिल्म  हड्डी से बिन्नी एंड फॅमिली तक अपने करियर की इस सेकंड इनिंग को आप किस तरह से देखते हैं?

मैं इसको ऐसा मानता हूं कि मैं ट्वेल्थ पास हो गया और मैं ग्रेजुएशन में आ गया हूं. इस सेकंड इनिंग में  कास्टिंग एजेंसीज हो या फिर निर्देशकों को यह बात समझ आ गई है कि राजेश में एक्टर के तौर पर बहुत कुछ एक्सप्लोर करने को है.वह सिर्फ कॉमेडी ही नहीं कर सकता है .यही वजह है कि मुझे भिन्न-भिन्न प्रकार के रोल मिल रहे हैं.

टर्निंग पॉइंट किसको करार देंगे?

निश्चित तौर पर ओटीटी को श्रेय देना चाहूंगा. उन्होंने बताया कि सिर्फ हीरो हीरोइन या विलेन सिर्फ ये तीन किरदार ही कहानी में नहीं होते हैं.कहानी हीरो होती है और उसकी रियल लाइफ के किरदार चाहिए होते हैं.इसकी वजह से हर तरह के एक्टर की जरूरत बढ़ गई. हर तरह के इससे मेरा मतलब यहां यह है कि कद, काठी,रंग,रूप मायने नहीं रखता है बल्कि सिर्फ उसका परफॉर्मेंस आपके लिए अहमियत रखता है.

अपने बीच में एक्टिंग से ब्रेक भी लिया था क्या हुआ उसने भी आपको फायदा पहुंचाया है?

उसे दौरान मुझे अपने बारे में सोचने का मौका मिला कि मैं किस दिशा में जाऊं.टेलीविजन आपको आर्थिक तौर पर हर तरह से सिक्योर तो जरूर कर देता है क्योंकि हर महीने की पहली 5 तारीख तक आपके अकाउंट में पैसे आ जाते हैं, लेकिन  एक्टर एक बतौर लॉन्ग टाइम कमिटमेंट हो जाता है,जिससे आप बाहर नहीं निकल पाते हैं.ओटीटी और फिल्मों  की अच्छी बात यह है कि यहां पर 20 दिन का काम होता है और इसकी प्लानिंग 5 से 6 महीने अच्छे से चलती है. इस वजह से आप साल में अलग -अलग काम कर लेते हैं.

बिन्नी एंड फैमिली में आपको क्या अलग करने को मिल रहा है?

बहुत कम ऐसे किरदार होते हैं,जो निजी जिंदगी से इस कदर जुड़े हो.यही वजह है कि मुझे कुछ परफॉर्म करने की जरूरत नहीं पड़ी बस मैं जो हूं ,वही मैं करता चला गया. इस फिल्म से जबरदस्त बिहारी कनेक्शन है.फिल्म की कहानी में बिहार है. हमारी फिल्म के जो निर्देशक है संजय त्रिपाठी,उनसे ही मेरा कई लेवल पर कनेक्शन है.वह बिहार से हैं. मैं भी बिहार से हूं.वह भी दिल्ली यूनिवर्सिटी के पास आउट है. मैं भी हूं. (हंसते हुए )उनकी वाइफ इनकम टैक्स कमिश्नर है और मेरी वाइफ मेरे इनकम पर टैक्स हैं. फिल्म की बात करूं तो मुझे संजय जी ने जब  कहानी सुनाई थी,तो मैंने उनसे कहा था कि मेरे अलावा इस किरदार को  कोई कर नहीं सकता है क्योंकि मैं विनय की तरह निजी जिंदगी में हूं। अपने बाबूजी से बात करता हूं,तो बिहारी बोलता हूं.अपनी पत्नी से बात करता हूं तो अंग्रेजी बोलता हूँ. बच्चों से  बात करता हूं तो खड़ी हिंदी में बात करता हूं.इस किरदार में भी यह तीनों रूप है . निजी जिंदगी में  मेरे और मेरे पिताजी के बीच सीधे तौर पर बात नहीं होती है.आप उसे लिहाज कहें या इज्जत।मैं पहले अपनी बात अपनी मां के जरिए कहता था. अब मां बीमार हो गई हैं. उनको अल्जाइमर हो गया है.वह सब भूल चुकी हैं.आज अपने पिताजी से कोई बात कहनी होती है,तो मैं अपनी बहनों का सहारा लेता हूं. मेरे पिताजी मेरी बहनों को कहते भी है कि तुम ही राजेश की वकील हो.तुम ही लोग वकालत करती रहती हो.मैं भले 48 साल का हो गया हूं,लेकिन मेरे पिताजी के लिए मैं आज भी 8 साल का राजेश ही हूं.मैं कितने भी अपने अच्छे विचार रख दूं वह सबसे पहले उसको रिजेक्ट करेंगे फिर अपना विचार रखेंगे. (हंसते हुए )फ्रीडम का स्पीच जो है वह सिर्फ संविधान के किताब में है. मेरे घर पर नहीं है.

निजी जिंदगी आपके और आपके बेटों के बीच कैसा रिश्ता है ? 

मेरा जो बड़ा बेटा है.वह हॉस्टल में रहता है. हॉस्टल के बाहर या भीतर जो एक्टिविटीज  होती है. वह जानता है कि मुझसे बेहतर कोई नहीं समझ सकता है क्योंकि मैंने  खुद अपने कई साल हॉस्टल में बिताए हैं.मैंने अपने पिता के साथ रिश्ते की सीख लेते हुए अपने बेटे से किसी तरह का कम्युनिकेशन गैप नहीं रखा है. मौजूदा दौर में पेरेंट्स और बच्चों के बीच दोस्ती होनी ही चाहिए।डर के आगे जीत गलत है.डर के आगे झूठ है.यह बात सच है. मौजूदा दौर में आप अपने बच्चों को जितना डरा कर रखेंगे तो वह झूठ बोलने के लिए उतना मजबूर हो जाएंगे.जब वह झूठ बोलते जाएंगे तो वह कुछ ऐसे ट्रैप में फंस जाएंगे कि जहां से वापसी नहीं हो पाएगी तो आप ऐसा माहौल बना कर रखें कि अपने बच्चों से कम्युनिकेशन गैप ना हो. और आने वाले समय में जब उनके बच्चे हो जाए तो जेनरेशन गैप ना हो.

पंकज कपूर के साथ अभिनय का एक्सपीरियंस कैसा रहा? 

शुरू में मुझे लगा कि वह गंभीर हैं, लेकिन वह बहुत ही खुश मिजाज और चिल्ड आउट किस्म के इंसान है.इस ओहदे के कलाकार साथ आपको यह सीखने को मिलता है कि कितनी सहजता से आप किरदार को कर सकते हैं. सहजता आती है तो आपके परफॉरमेंस में ठहराव भी आता है, जिससे ऑडियंस भी आपकी परफॉर्मेंस को बहुत इंजॉय करती है

क्या शूटिंग के वक़्त पंकज कपूर का ओहदा आपको नर्वस भी करता था ? 

मैं किसी भी एक्टर को देखकर नर्वस नहीं होता हूं, क्योंकि मेरी खुद की तैयारी पूरी होती है.मेरे अंदर नर्वस एनर्जी प्रोजेक्ट को लेकर होती है. शुरुआत में अपने किरदार को लेकर एक नर्वस एनर्जी रहती है.जो फिल्म के एंड तक रहती है.वैसे यह घबराहट आपको सचेत रखती है. वह आपको इतना रिलैक्स नहीं कर देती है कि आप अपने काम को कैजुअल ले.(हँसते हुए) मेरा हमेशा मानना है कि कैजुअल अप्रोच लीड्स टू कैजुअल्टी.वैसे सामने वाले एक्टर को देखकर घबराने वाला जो फेज था वह 2004 तक था.2014 में मैंने रेखा जी के साथ सुपर नानी फिल्म की थी. रेखा जी और रणबीर कपूर ने भी हमारी तारीफ की थी कि यह लड़के ना तो लाइन बोलते हैं ना अपना मार्क भूलते हैं.यंगस्टर्स (उस वक़्त मैं भी यंगस्टर था)कितने ज्यादा तैयारी के साथ आते हैं. वैसे अभिनय करते हुए वह मुझे रेखाजी नहीं बल्कि किरदार दिखाई देती थी.

आपके आने वाले प्रोजेक्ट

 फ्रीडम एट मिडनाइट में पाकिस्तान का पहला प्रधानमंत्री लियाकत अली खान बना हूं.उसमें मेरे अभिनय की एक अलग रेंज देखने को मिलेगी.इसके अलावा दो और फिल्में हैं.

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