बेरमो (बोकारो), राकेश वर्मा : बोकारो जिलाअंतर्गत बेरमो निवासी सिद्धार्थ सेन का बेरमो से लेकर मुंबई तक का सफरनामा उनके जज्बा एवं लगन को प्रदर्शित करता है. सिद्धार्थ सेन बेरमो जैसे छोटे शहर से निकलकर आज मुंबई जैसे महानगरी में एक सफल निर्देशक के रूप में काम कर रहे हैं. सिद्धार्थ को 16 वर्ष मुंबई में हो गए हैं. वर्ष 2016 से उन्होंने ऐड फिल्म शुरू किया और अब तक दर्जनों ऐड फिल्म का निर्देशन कर चुके हैं. सिद्धार्थ सेन की प्रारंभिक शिक्षा वर्गत सात तक कार्मेल स्कूल करगली, बेरमो में हुई. इसके बाद सातवीं से 12वीं तक की पढ़ाई डीएवी ढोरी, बेरमो में किया. 18 साल झारखंड के फुसरो में ही बीता.
स्कूलिंग के बाद वे स्नातक करने के लिए दिल्ली शिफ्ट किया. बैचलर डिग्री मॉस कम्युनिकेशन से किया. दिल्ली में पहले दो साल नेशनल अवॉर्ड विजेता दिवाकर बनर्जी निर्देशित फिल्म ‘ओय लकी, लकी ओय’ रिसर्चर का काम किया. अभय देओल उस फिल्म में थे. यह फिल्म कई नेशनल अवार्ड ले चुकी थी. इसके बाद वे मुंबई शिफ्ट हो गया. यहां उन्होंने 10 फीचर फिल्मों में सहयोग की भूमिका निभाया. इन फिल्मों में अग्निपथ, बुधिया सिंह आदि शामिल है.
मुंबई से बातचीत में सिद्धार्थ सेन ने कहां कि गुड लक, जेरी मेरी पहली फीचर फिल्म रही. मशहूर अभिनेत्री श्रीदेवी की बेटी जानवी कपूर उसमें नायिका की भूमिका में थी. इन्होंने कई टीवी शो भी किए. प्रोड्यूसर डायरेक्टर आनंद एल राय के साथ काम किया. इस दौरान तनु वेड्स मनु, रांझना तथा हाल में ही रिलीज हुई फिल्म रक्षाबंधन बनाई है.
Also Read: Budget 2023: झारखंड के खिलाड़ियों को बजट में आयुष्मान योजना का मिले लाभ,खेल संघ के पदाधिकारियों ने रखी कई मांगसिद्धार्थ का ससुराल फुसरो है. ललित राठौर की बेटी दिव्या राठौर से इनकी शादी हुई है. कहा कि उनके माता-पिता कोलकाता शिफ्ट कर गए हैं. सिद्धार्थ के पिता का नाम सुशील सेनगुप्ता है जो कोल इंडिया में थे. 40 वर्षों तक उन्होंने सीनियर ओवरमैन के पद पर मकोली में कार्य किया. उन्होंने कई राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त किये. कहा कि सिद्धार्थ की दो पीढ़ी बेरमो में रही. इनके दादाजी बेरमो आए थे. सिद्धार्थ की माता का नाम सोमना सेनगुप्ता है और वो एक क्लासिकल सिंगर है जो काफी लोगों को सिखाती भी थी. सेवानिवृत्ति के बाद मां-पिताजी कोलकाता शिफ्ट कर गए. मेरा घर भी अब कोलकाता में ही है, लेकिन बेरमो और फुसरो से पुराना नाता रहा है. सिद्धार्थ ने कहा कि आज जब भी आता हूं, तो पुराने मित्रों से मिलता हूं और पुरानी यादों को ताजा करता हूं.
सिद्धार्थ कहते हैं कि मैं बहुत ही साधारण बचपन वाला एक औसत दर्जे का छात्र था. मैंने कभी डायरेक्टर बनने के बारे में नहीं सोचा था. मेरे भाई ने मुझसे कहा कि मैं एक अच्छा वक्ता हूं, इसलिए मुझे पत्रकारिता में आना चाहिए. इसलिए मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई के लिए दिल्ली चले गए. मैंने एक शॉर्ट फिल्म बनायी थी, जिसने फेस्टिवल्स में अच्छा प्रदर्शन किया था. मुझे मधुर भंडारकर के साथ उनकी फिल्म ‘फैशन’ में काम करने का ऑफर मिला, लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सका क्योंकि मैंने ‘ओए लकी’ पर काम करना शुरू कर दिया था. कहते हैं आज डिजिटल दुनिया ने लोगों को इतना काम दिया है. उन दिनों हम तीन-चार महीने काम करते थे और आठ-नौ महीने कोई काम नहीं करते थे. हम छह लोग एक घर में रहते थे. हम सस्ते सिनेमाघरों में फिल्में देखते थे. पहले चार साल मैं कभी घर वापस नहीं गया. जब भी घर जाने का प्लान होता, कोई न कोई मुझे कॉल करके प्रोजेक्ट ऑफर करता. जिस चीज ने हमें जीवित रहने में मदद कि वह हमारा रवैया था. जब हमने संघर्ष किया, तो हमें मजा आया. मैंने कभी घर से पैसे नहीं मांगे क्योंकि बड़े होकर मैंने हमेशा अपने माता-पिता से पैसे नहीं है सुना. इसलिए पैसे मांगना मुश्किल था.