फिल्म :मानवत मर्डर्स
निर्माता:स्टोरी टेलर नुक्कड़
निर्देशक :आशीष बेंदे
कलाकार :सोनाली कुलकर्णी, आशुतोष गोवारिकर,सई ताम्हणकर, मकरंद अनासपुरे
प्लेटफार्म – सोनी लिव
रेटिंग – ढाई
manvat murders review: सेक्टर 36 की चर्चा अभी थमी भी नहीं है कि सोनी लिव पर मानवत मर्डर्स ने दस्तक दे दी है. सेक्टर 36 की तरह यह सीरीज भी रियल घटना से प्रेरित है. जो 70 के दशक में महाराष्ट्र के एक गांव में सिलसिलेवार निर्मम हत्याओं और बलात्कार की घटना को सामने लेकर आती है.सेक्टर 36 की तरह यहां भी हैवानियत ने मानवता को शर्मसार किया है,लेकिन यहां मामला अंधविश्वास और लालच का इंसानी बलि से जुड़ा हुआ है. इस रियल लाइफ की दिल दहला देने वाली घटना से जुड़ा बैकड्रॉप और कहानी बेहद दिलचस्प है.जिससे एक यादगार मनोरंजक सीरीज बनायी जा सकती थी,लेकिन इस कहानी को परदे पर जीवंत करने में थ्रिलर की कमी रह गयी है. सीरीज के प्लाट को अगर स्क्रीनप्ले थोड़ा और सस्पेंस के साथ खोलता तो यह सीरीज औसत नहीं रहती थी.
असल घटना से प्रेरित है कहानी
सीरीज की कहानी की बात करें तो डीएसपी रमाकांत कुलकर्णी की किताब फुटप्रिंटस ऑन द सैंड क्राइम पर यह सीरीज आधारित है. शुरुआत भी उन्ही के किरदार डीएसपी रमाकांत कुलकर्णी (आशुतोष गोवारिकर ) से ही होती है. वह पुलिस प्रशिक्षण में कैडेट को क्राइम केसेज के सुलझाने के बारे में अपने अनुभवों को साझा करते रहते हैं. उसी बीच उनका तबादला मानवत केस पर कर दिया जाता है,क्योंकि एक के बाद महिलाओं और बच्चियों की हत्या से पूरा सिस्टम परेशान है. कुलकर्णी के लिए इस अपराध को सुलझाना आसान नहीं है.उसकी तहकीकात उसे गांव के सबसे रसूख इंसान रुक्मिणी (सोनाली कुलकर्णी )और उसके पति उत्तमराव (मकरंद अनासपुरे)तक पहुंचाती है. उनकी गिरफ्तारी हो जाती है, लेकिन हत्याएं फिर भी रुकने का नाम नहीं ले रही है.आखिरकार असली अपराधी कौन है. उसका मकसद क्या है. क्या डीएसपी कुलकर्णी अपराधियों को सजा दिला पायेगा. यही आगे की कहानी है. वैसे यह सीरीज पूरी तरह से असल घटना पर आधारित नहीं है.उत्तमराव,रुक्मिणी और उसकी बहन को सुप्रीम कोर्ट ने सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था.सिर्फ उन चार लोगों को फांसी हुई थी, जिन्होंने ह्त्या की थी. उनसे ये हत्या किसने करवाई थी. इसके पक्के सबूत जांच अधिकारी नहीं दे पाए थे.
सीरीज की खूबियां और खामियां
इस सीरीज की बात करें तो इसकी मूल कहानी में एक उम्दा मिस्ट्री थ्रिलर बनने की सभी जरूरी चीजें मौजूद थी.मर्डर,मिस्ट्री, पुलिस की जांच और ढेर सारे सस्पेक्ट्स लेकिन कहानी में सबकुछ होते हुए वह परदे पर मनोरंजक ढंग से सामने नहीं आ पाया है. सीरीज के शुरूआती एपिसोड खासकर पहले और दूसरे में कुलकर्णी के किरदार को बिल्ड अप करने में कुछ ज्यादा ही समय ले लिया गया है. भारत का शेरलॉक होम्स जैसी कई बातें जोड़ी गयी हैं. मौजूदा दौर में कॉप का रियल प्रेजेंटेशन कुछ इस कदर परदे पर लगातार हो रहा है कि डीएसपी कुलकर्णी का किरदार फिल्मी सा ज्यादा फील होता है. इसके साथ ही शुरूआती एपिसोड्स में सीरीज पुलिस के काम करने के तौर तरीके पर भी ज्यादा फोकस करती है.लगभग 4 एपिसोड बीत जाने के बाद मूल कहानी पर सीरीज आती है.ह्यूमन बेहेवियर और साइकोलॉजी की अलग – अलग परतों के जरिये इस कहानी और इससे जुड़े किरदारों को दर्शाने की उम्मीद थी,लेकिन यहां पर सबकुछ ब्लैक एंड वाइट जैसा ही है.यह पहलू सीरीज का अखरता है.मानवत मर्डर एक क्राइम थ्रिलर सीरीज है, लेकिन इस सीरीज से थ्रिलर का अहम पहलू गायब है.आपको शुरुआती एपिसोड्स में ही आपको अपराधी कौन है. यह बात समझ आ जाती है और होता भी वही है.फिल्म का ट्रीटमेंट बेहद स्लो रह गया है. सीरीज का बैकग्राउंड म्यूजिक फिल्म के विषय के साथ न्याय नहीं करता है. सिनेमेटोग्राफी कहानी के अनुरूप है. 70 के दशक के महाराष्ट्र के एक गांव को हर फ्रेम रखने की पूरी कोशिश की गयी है.
सोनाली कुलकर्णी की दमदार अदाकारी
अभिनय की बात करें तो सोनाली कुलकर्णी ने रुक्मणि के किरदार में दमदार अभिनय किया है.सई ताम्हणकर ने भी सीरीज में मजबूती के साथ अपनी उपस्थिति दर्शायी है. आशुतोष गोवारिकर भी अपनी भूमिका के साथ न्याय करते हैं, उनके किरदार में लेयरिंग की कमी थी. बाकी के कलाकारों ने अपने अभिनय से अपने किरदार और कहानी को एंगेजिंग बनाया है.