फ़िल्म-थैंक गॉड
निर्देशक-इंद्र कुमार
कलाकार-अजय देवगन,सिद्धार्थ मल्होत्रा,रकुलप्रीत,सीमा पाहवा,कीकू शारदा,सानंद और अन्य
प्लेटफार्म-सिनेमाघर
रेटिंग-ढाई
इश्क,मस्ती,टोटल धमाल जैसी फिल्में साथ कर चुके अभिनेता अजय देवगन और निर्देशक इंद्र कुमार की जोड़ी की फ़िल्म थैंक गॉड डेनिश फिल्म सॉर्ट कुगेलेर का ऑफीशियल हिंदी रीमेक है. रुपहले पर्दे पर हंसाने के साथ-साथ ज़िन्दगी की अहम सीख देने की कोशिश कर रही यह फैमिली एंटरटेनर फिल्म मस्ट वॉच तो नहीं टाइमपास जरूर साबित होती है.
कहानी वही पुरानी
फिल्म की कहानी अयान (सिद्धार्थ मल्होत्रा) की है. जो एक रियल एस्टेट एजेंट की है. जो बेहद बुरे दौर से जूझ रहा है. उसका घर बिकने पर है. कहानी में ऐसा मोड़ आ जाता है कि वह जिन्दगी और मौत के बीच आ खड़ा होता है और उसके अच्छे कर्म ही उसे अब बचा सकते हैं. उसके अच्छे और बुरे कर्मों का हिसाब खुद चंद्रगुप्त (अजय देवगन) कर रहे हैं. क्या अयान ने अच्छे कर्म किए हैं या उसके बुरे कर्मों का हिसाब ज्यादा है. चित्रगुप्त का फैसला क्या होगा. इसी प्लाट पर कॉमेडी और इमोशन के जरिए कहानी कही गयी है. फंतासी जॉनर वाली इस फिल्म की कहानी में नयापन नहीं है, ऐसी कई फिल्में बॉलीवुड और हॉलीवुड में बन चुकी है लेकिन हां इसे मनोरंजक तरीके से कहने की कोशिश जरूर की गयी है. जिस वजह से फिल्म आपको एंगेज करके रखती है. फिल्म का फर्स्ट हाफ कॉमेडी से भरपूर है. ऐसा नहीं है कि आप पेट पकड़ पकड़ कर हंसेंगे, लेकिन हां फर्स्ट हाफ एंटरटेनिंग है. कॉमेडी पंचेस आपके चेहरे पर मुस्कान ले आते हैं.
सेकेंड हाफ में थोड़ी इमोशनल
फिल्म सेकेंड हाफ में थोड़ी इमोशनल हो गयी है. फैमिली वाला इमोशन, प्यार वाला इमोशन हावी हो गया है. कमजोर स्क्रिप्ट की वजह से कई बार ऐसा लगता है कि अयान के किरदार को जबरदस्ती विलेन बताया जा रहा है, जबकि हालात उसे गलत साबित नहीं करते हैं. सेकेंड हाफ में कॉमेडी की थोड़ी कमी भी रह गयी है. यह बात अखरती है. हां फिल्म जिन्दगी की कुछ अहम सीख भी सीखा जाती है, हालांकि ये अलग बात है कि ये सीख आजकल व्हाट्सअप पोस्ट पर भी आम है. बहन वाला ट्रैक फिल्म में अच्छा है. गौरतलब है कि फिल्म के ट्रेलर लॉन्च के बाद कुछ लोगों की भावनाएं आहत भी हुई थी,यह फिल्म सीख देती है कि इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं होता है.
अजय का अभिनय दमदार
अजय देवगन एक बार फिर स्क्रीन पर जादू जगा गए हैं. उन्होंने अपने अभिनय से अपने किरदार में एक अलग ही रंग भरा है. सिद्धार्थ मल्होत्रा का अभिनय ठीक ठाक है. कॉमिक टाइमिंग और बेहतर हो सकती थी. उन्हें उसपर थोड़ा काम करने की जरूरत है. अभिनेत्री रकुलप्रीत का काम औसत है. फिल्म में उनको करने को ज़्यादा कुछ नहीं था।सीमा पाहवा सहित बाकी के किरदारों का काम ठीक -ठाक है
यह पहलू हैं खास
फिल्म की कहानी में वीएफएक्स एक अहम किरदार की तरह है. स्वर्ग और नर्क को बताने वाला सीजीआई प्रभावशाली है. पाप और पुण्य के हिसाब किताब को आपको यह महसूस करवाने का पूरा इंतजाम है कि आप एक गेम शो देख रहे हैं. फिल्म के संवाद अच्छे पड़े हैं.
यहां हुई है चूक
फ़िल्म की स्क्रिप्ट के साथ-साथ इसका गीत संगीत भी कमजोर रह गया है. गीत संगीत की बात करें तो रीमिक्स गानों की अधिकता है. दिल दे दिया है और श्रीलंकाई गीत मन हारी को फिल्म में एक बार फिर से रिपीट किया गया है. गीत-संगीत में ओरिजिनल के नाम पर कुछ भी खास नहीं बन पाया है.
देखें या ना देखें
दीवाली के इस मौसम में इस फैमिली एंटरटेनर को एक बार देख सकते हैं.