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Hotstar पर ट्रेंड कर रही है एक्शन-ड्रामा से भरपूर नई सीरीज, जानें क्यों लगे रीलीज होने में 5 साल

क्रिएटर और निर्माता शैलेश आर सिंह हैं. तनु वेड्स मनु, दिल कबड्डी जैसी फिल्मों से जुड़े रहे हैं. इनदिनों उनका पहला ओटीटी शो लुटेरे स्ट्रीम कर रहा है.

Hotstar पर इन दिनों वेब सीरीज लुटेरे स्ट्रीम कर रही है. इस सीरीज के क्रिएटर और निर्माता शैलेश आर सिंह हैं. तनु वेड्स मनु, दिल कबड्डी जैसी फिल्मों से जुड़े रहे हैं. यह पहला मौका है, जब वह ओटीटी के किसी प्रोजेक्ट का हिस्सा बनें हैं. उनके इस शो, उससे जुड़ी चुनौतियों और फिल्म निर्माण पर उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के अंश            

लुटेरे अपने विषय की वजह से सभी को काफी पसंद आ रही है, इस पर सीरीज बनाई जाए यह ख्याल कैसे आया?

ये मेरा पहला ओटीटी डेब्यू है. अगर आप गौर करेंगी तो मैंने उन्हीं फिल्मों का चुनाव किया है, जो थोड़ी अलग हों. चाहे अलीगढ़ हो, ओमेर्टा हो, तनु वेड्स मनु हो. यह मेरा ओटीटी डेब्यू था तो ये तय था कि मुझे कुछ अलग करना है, जो ओटीटी में नहीं हो रहा है. वो करना है. एक बार विदेश में रहने के दौरान मैंने एक खबर ऐसी ही पढ़ी थी. मैं बताना चाहूंगा कि जो ये शिप पर काम करने वाले होते हैं. ये ज़्यादातर एशियाई होते हैं.  2015 – 2016 में जो भी मर्चेंट और कार्गो शिप होते हैं, उन पर आर्म्स को लाने की रजामंदी नहीं थी. लेकिन लोग कई महीनों तक उनको बंधक बनाकर रखते हैं. जो लोग ये करते हैं. उनका पूरा मोटिव क्या होता है. उनका बिजनेस क्या है. फिर सोमालिया का नाम आया. जो देखा जाए तो बहुत ही पॉलिटिकली डिस्टर्ब देश है, आधा देश आतंकी द्वारा कंट्रोल किया जाता है. मुझे लगा कि यह दुनिया एक्सलोर की जानी चाहिए. कुछ फिक्शनल भी था. हमलोग लार्जर लाइफ कुछ प्रस्तुत करना चाहते हैं. इंटरनेशनली बहुत सारी डॉक्यूमेंट्री और फिल्में बनी हैं. भारत में ऐसा कुछ नहीं हुआ था. हमने सोचा क्यों ना इसी पर कुछ किया जाए. रिसर्च शुरू हुआ. 15 सालों में कितनी हाइजैकिंग हुई है. गूगल में आपको बहुत सारे इंटरव्यूज मिल जाएंगे. इस बात के साथ मैं ये भी कहूंगा कि आखिर में मुझे फिक्शनल स्टोरी ही बनानी थी, लेकिन रीयलिस्टिक टच के साथ.

वसन बाला के जाने के बाद हंसल मेहता को शो से जोड़ना आसान था या मुश्किल?

शो के शूट होने के दो महीने पहले हंसल मेहता से जुड़े. वसन बाला के साथ हमने प्रोजेक्ट शुरू करने वाले थे, लेकिन उनके साथ भी एक ही मीटिंग हुई थी उसके बाद पेंडेमिक आ गया और चीजें पूरी तरह से बदल गईं, क्योंकि उनके दूसरे कमिटमेंट्स थे. हमारे लिए उस वक्त सबसे मुश्किल था एक सही टीम को प्रोजेक्ट से जोड़ना. हंसल और मेरा लंबा साथ रहा है. हमने साथ में चार फिल्में की हैं. मैं बताना चाहूंगा कि जय उन चारों फिल्मों में मेरे साथ अस्सिटेंट रहा है. मैं उसको 14 सालों से जानता हूं. मुझे लगा कि इस शो के लिए जो एनर्जी चाहिए. वो जय के पास है.

इस सीरीज से जुड़ी सबसे बड़ी चुनौती क्या थी?

मैं बताना चाहूंगा कि हंसल कभी भी जय को निर्देशक के तौर पर सीरीज से लांच करने को नहीं कहा था. यह मेरा फैसला था. मुझे शो के लिए एक युवा एनर्जी की जरूरत थी और इस शो के क्रू में भी युवा लोग ही थे. जिसका हमें बहुत फायदा मिला. शूट के लिए हम केपटाउन पहुंचे ही थे कि ओमीक्रोन ने दस्तक दे दी. क्रू में बहुत सारे लोग हॉस्पिटलाइज्ड हुए थे. एक बार तो मैंने कहा कि हमलोग शूट को बीच में ही छोड़ देते हैं, लेकिन मेरी टीम में ज़्यादातर युवा लोग थे तो उन्होंने कहा कि नहीं हम पूरा करके ही आएंगे 2019 के दिसंबर में हमने शुरू किया था और हमने मार्च 2024 में इस शो को रिलीज किया. पोस्ट प्रोडक्शन में हमको लगभग एक साल गया था. युवा लोगों का जज्बा ही था, जो उन्होंने उस हालात में भी शो को नहीं छोड़ा.

क्या आनेवाले समय में ओटीटी और फिल्मों में बैलेंस करना चाहेंगे?

फिल्में मेरा पैशन हैं. एक साल फिल्म बनाऊंगा उसके बाद ओटीटी के लिए कुछ काम करूंगा. फिल्मों की बात करूं,तो जुलाई से कुछ रोचक चीजें आएंगी.  

मौजूदा दौर में इंडिपेंडेंट प्रोड्यूसर की क्या चुनौतियां होती है ?

मैं आपको बताऊं तो इंडिपेंडेंट प्रोड्यूसर का वापस से जमाना आ गया है. आप मुश्किल से कॉर्पोरेट प्रोडक्शन में  मिलेंगे. 2010 से 2020 तक यूटीवी, स्टूडियो 18, एरोस और भी दो से तीन थे. अभी कोई नहीं है जिओ है बस. वो भी प्रोडक्शन हाउस की तरह काम करता है. सभी को यह बात समझ आ गई कि प्रोडक्शन में पैशन की जरूरत होती है, जो किसी कॉर्पोरेट हाउस के पास नहीं है.

फिल्मों की मेकिंग में ओटीटी की दखलअंदाज़ी पर क्या कहना है?

मेकर्स की यह गलती है. उन्हें समझना होगा कि दो तीन प्लेटफार्म मिलकर ये तय नहीं कर सकते हैं कि क्या फिल्म बनेगी क्या नहीं. हमें दो तीन सालों में आदत लग गयी थी कि अमेजॉन, नेटफ्लिक्स, हॉटस्टार से पूछो वो लेंगे तो हम बनाएंगे. क्या फिल्म मेकिंग ये रह गया है कि वो अगर लेंगे तो हम बनाएंगे. यह सिनेमा के लिहाज से अच्छा नहीं है.  साउथ के लोग हमसे ज्यादा फिल्में बना रहे हैं. वह अभी भी वही फिल्में बनाते हैं कि ये दर्शक देखेंगे या नहीं ना कि  हॉटस्टार लेगा या डिज्नी. वो फिल्म बनाते हैं फिर बेचते हैं. हम पहले बेचने निकल जाते हैं, फिर फिल्म बनाते हैं. ये सोच हमको इंडस्ट्री में बदलनी पड़ेगी.


मौजूदा समय में फिल्मों पर अति राष्ट्रवाद भी हावी होता दिखता रहता है ?
ये अभी नहीं हर समय रहा है. देश की सामाजिक,राजनीतिक और आर्थिक स्थिति जैसी रहती है.वो कहानियों में कहीं ना कहीं झलकता है. कलेक्शन उठाएंगे, तो आपको मालूम होगा कि ऐसी फिल्में चलती भी हैं. मेकर्स को भी लगता है कि ये चलेगी तो बनाओ.

क्या आपको लगता है कि थिएटर में फिल्में देखने का जो कल्चर पेंडेमिक से जो पहले था, वो वापस आ पायेगा?
हां, हालात बदलते दिख रहे हैं. धीरे-धीरे थिएटर में लोग जाने लगे हैं. हिट्स की संख्या भी बढ़ रही है. कोरोना में टीवी और मोबाइल पर फिल्म देखने की आदत लगी थी. आदत है, लगती है तो छूटती भी है.

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