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पितृपक्ष मेला: विष्णुपद मंदिर में बनाये गये हैं अतिरिक्त द्वार, अब भक्तों को आने-जाने में नहीं होगी दिक्कत

मंदिर के पश्चिमी व उत्तरी क्षेत्र में बने द्वार को तीर्थयात्रियों के लिए प्रवेश की व्यवस्था रहेगी, जबकि मंदिर प्रांगण के उत्तरी क्षेत्र अवस्थित श्रीलक्ष्मी नारायण भोजनालय से सटे धर्मशाला से व मंदिर के दक्षिणी क्षेत्र स्थित श्रीलक्ष्मी नारायण उद्यान की ओर दो अलग-अलग निकास द्वार बनाया गया है.

गया. पितृपक्ष मेला महासंगम 2023 में देश-विदेश से आने वाले तीर्थयात्रियों को विष्णुपद मंदिर में दर्शन, पूजन व पिंडदान का कर्मकांड करने में इस बार दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ेगा. तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए श्रीविष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति द्वारा मंदिर में प्रवेश के लिए अलग-अलग दो निकास व दो प्रवेश द्वार बनाये गये हैं. समिति के अध्यक्ष शंभू लाल विट्ठल ने बताया कि मंदिर के पश्चिमी व उत्तरी क्षेत्र में बने द्वार को तीर्थयात्रियों के लिए प्रवेश की व्यवस्था रहेगी, जबकि मंदिर प्रांगण के उत्तरी क्षेत्र अवस्थित श्रीलक्ष्मी नारायण भोजनालय से सटे धर्मशाला से व मंदिर के दक्षिणी क्षेत्र स्थित श्रीलक्ष्मी नारायण उद्यान की ओर दो अलग-अलग निकास द्वार बनाया गया है.

तीर्थयात्रियों की सहायता के लिए होगी अतिरिक्त कर्मचारियों की प्रतिनियुक्ति

उन्होंने बताया कि मंदिर के सभी चारों द्वार पर तीर्थयात्रियों की सुविधा व सहायता के लिए अतिरिक्त कर्मचारियों की प्रतिनियुक्ति पितृपक्ष मेला अवधि के दौरान की जायेगी, ताकि मंदिर प्रांगण तक आने-जाने में किसी भी तीर्थयार्थियों को परेशानी नहीं झेलनी पड़े. उन्होंने बताया कि मंदिर के दक्षिणी क्षेत्र स्थित नवनिर्मित निकास द्वार का काम लगभग पूरा करा लिया गया है. वहीं श्रीलक्ष्मी नारायण भोजनालय से सटे धर्मशाला क्षेत्र से निकास द्वार बनाने का काम युद्ध स्तर पर चल रहा है. उन्होंने बताया कि अक्षयवट वेदी की ओर जानेवाले तीर्थयात्रियों को मंदिर के दक्षिणी क्षेत्र स्थित निकास द्वार से बाहर निकलने में उन्हें सुविधा होगी. वहीं फल्गु नदी व देवघाट की ओर जाने वाले तीर्थयात्रियों को श्रीलक्ष्मी नारायण भोजनालय से सटे धर्मशाला क्षेत्र के निकास द्वार का उपयोग करना उनके लिए सहायक साबित होगा.

पितृ पक्ष एक नजर में

  • अगस्त्य ऋषि तर्पण- शुक्रवार 29 सितंबर

  • पितृपक्ष आरंभ (प्रतिपदा) – शनिवार 30 सितंबर

  • चतुर्थी श्राद्ध – मंगलवार 3 अक्तूबर

  • मातृ नवमी – रविवार 8 अक्तूबर

  • इंदिरा एकादशी- मंगलवार 10 अक्तूबर

  • चतुर्दशी श्राद्ध- शुक्रवार 13 अक्तूबर

  • अमावस्या, महालया व सर्व पितृ विसर्जन – शनिवार 14 अक्तूबर

पितृपक्ष 30 सितंबर से होगा आरंभ, तर्पण व पिंडदान से उन्नति

भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा 29 सितंबर यानी शुक्रवार को अगस्त्य मुनि को खीरा, सुपारी, कांस के फूल से सनातन धर्मावलंबी तर्पण करेंगे. फिर आश्विन कृष्ण प्रतिपदा 30 सितंबर यानी शनिवार को पितरों को तिल, जौ से तर्पण किया जायेगा. ज्योतिषाचार्य राकेश झा ने बताया कि कुंडली से पितृ दोष की शांति, पुरखों के आशीर्वाद, पितरों की तृप्ति के लिए पितृपक्ष में तर्पण, पिंडदान कर ब्राह्मणों को भोजन कराया जायेगा. इस बार पितृपक्ष में सभी तिथियां पूर्ण होने से पितरों की कृपा पाने के लिए पूरे 15 दिन मिलेंगे. मान्यता है कि पितरों को जब जल और तिल से पितृपक्ष में तर्पण किया जाता है, तब उनकी आत्मा तृप्त होती है और उनका आशीष कुटुंब को कल्याण के पथ पर ले जाता है.

तीन पुरखों का होगा तर्पण

झा ने वैदिक कर्मकांड पद्धति के हवाले से बताया कि पितृपक्ष में पिता, पितामह, प्रपितामह और मातृ पक्ष में माता, पितामही, प्रपितामही इसके अलावा नाना पक्ष में मातामह, प्रमातामह, वृद्धप्रमातामह. वहीं नानी पक्ष में मातामही प्रमातामही, वृद्ध प्रमातामही के साथ-साथ अन्य सभी स्वर्गवासी सगे-संबंधियों का गोत्र व नाम लेकर तर्पण किया जायेगा. विष्णु पुराण के अनुसार श्राद्ध से तृप्त होकर पितृगण समस्त कामनाओं से हमें तृप्त करते हैं.

इस तिथि को करें तर्पण व श्राद्ध

जिन लोगों की मृत्यु के दिन की सही जानकारी ज्ञात न हो, उनका श्राद्ध अमावस्या तिथि को करना चाहिए. वहीं अकाल मृत्यु होने पर भी अमावस्या के दिन ही श्राद्ध करना चाहिए. जिसने आत्महत्या की हो, या जिनकी हत्या हुई हो, ऐसे लोगों का श्राद्ध चतुर्थी तिथि को किया जाना चाहिए. पति जीवित हो और पत्नी की मृत्यु हो गयी हो, तो उनका श्राद्ध नवमी तिथि को करना चाहिए. वहीं साधु सन्यासियों का श्राद्ध एकादशी तिथि को किया जाता है. बाकी सभी का उनकी तिथि के अनुसार किया जाता है.

14 अक्तूबर को शनैश्चरी अमावस्या में होगा पितृ विसर्जन

आश्विन कृष्ण प्रतिपदा 30 सितंबर शनिवार से 14 अक्तूबर आश्विन कृष्ण अमावस्या शनिवार तक पितृ पक्ष रहेगा. 13 अक्तूबर शुक्रवार को पितृपक्ष की चतुर्दशी तिथि है. इस दिन शस्त्रादि से मृत्यु को प्राप्त हुए पितरों का श्राद्ध किया जायेगा. इसके बाद 14 अक्तूबर को शनैश्चरी अमावस्या तिथि में स्नान -दान सहित सर्वपितृ अमावस्या का श्राद्ध व पितृ विसर्जन महालया पर्व के रूप में संपन्न होगा. इस तिथि को अमावस्या सूर्योदय से लेकर देर रात 11:05 बजे तक है. इसलिए सर्व पितृ का तर्पण 14 अक्तूबर को करते हुए ब्राह्मणों को भोजन कराकर पितरों की विदाई की जायेगी.

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