गोरखपुर : महानगर के मोहल्ले बेनीगंज में ऐसा परिवार है जो आज भी गंगा जमुनी तहजीब का एक उदाहरण है.रावण का पुतला बनाने वाला समीउल्ला का परिवार, गोरखपुर के बेनीगंज में हिंदू मुस्लिम एकता की अनूठी मिसाल है.यहां मोहल्ले के समीउल्ला का परिवार रामलीला के लिए रावण और मेघनाथ का पुतला बनाता है.यह काम उन्होंने अपने पुरखों से सीखा है. इनके काम से उभरती गंगा-जमुनी तहजीब शहर के कौमी एकता की झलक दिखाती है. बेनीगंज शहर के उन मुहल्लों में शामिल हैं जहां हिन्दू और मुसलमानों का परिवार लगभग समान संख्या में है,और सभी लोग मेलजोल से रहते हैं.बेनीगंज मे समीउल्ला का घर है. समीउल्ला के यहां रामलीला के दौरान जलाए जाने वाला रावण का पुतला बनाने का पुस्तैनी कारोबार है.वर्तमान में समीउल्ला नहीं हैं, लेकिन उनके बेटे मुन्नू व पोते अफजल आज भी महानगर में होने वाले रामलीलाओं के लिए रावण व मेघनाद का पुतला,राम दरबार व अशोक वाटिका का निर्माण करते हैं. शहर की सभी रामलीलाओं के लिए रावण के पुतले यहीं बनते हैं. बर्डघाट लगाये शहर के कई जगहों पर इनके बनाये गए पुतले दूर दूर तक जाते है .
सनातन धर्म के पर्व हिंदू ही नहीं अन्य वर्ग के लोगों के लिए भी प्रमुख स्वरूप से खुशी लेकर आता है. दशहरा में यही खुशी बेनीगंज के ईदगाह रोड के समीउल्ला के पुत्र मुन्नू पेंटर के परिवार को मिलती है.इस परिवार के लोग हर वर्ष रावण का पुतला बनाकर बेचते आ रहे है. लंबाई के हिसाब से पुतले की कीमत तय होती है. देश में दशानन रावण को बुराई का प्रतीक माना जाता है.दशहरा पर रावण के पुतला दहन की परंपरा वर्षों पुरानी है.मुन्नू पेंटर के परिवार में पांच पीढ़ियों से रावण का पुतला बनाने का कार्य होता है. मुन्नू और उनके लड़के बताते हैं कि 10 शीश वाले रावण का एक बड़ा पुतला बनाने में परिवार के सदस्यों को 15 दिन का समय लग जाता है.
बताते चले दशहरे और मुहर्रम के दो माह पूर्व से ही परिवार के लोग जी तोड़ मेहनत कर के पाँच से छः रावण ही बना पाते है. जिनकी बाजार मे कीमत 5 से 6 हजार होती है.परिवार के सभी सदस्य मिल कर एक रावण बनाने मे कम से कम पंद्रह दिन का समय और 12 से 16 घंटे की कड़ी मेहनत लगती है.जिसके बाद एक रावण का पुतला बन कर तैयार हो जाता है.अगर लागत की बात करे तो एक रावण का पुतला बनाने मे सभी मेटेरियल और साजसज्जा का समान ले कर 3 हजार से 3.5 हजार रुपये तक का खर्च आ जाता है. लेकिन इस पापी पेट के लिए इस परिवार के लोग पूरे साल इन तेवहारों का बेसबरी से इंतजार करते रहते है.इतना ही नहीं अगर मौसम ने बेरुखी दिखाई तो इनकी महीनों की मेहनत पर पानी भी फिर जाता है. रावण का पुतला बनाने वाले मुन्नू का कहना है कि अल्ला और भगवान का शुक्र है कि हमारी कलाकारी कई पीड़ियों से चली आ रही है. उसे आम जन को दिखने का हमे मौका मिल जाता है. हम पैसे के लिए नहीं अपनी पूस्तैनी विरासत को बचाने के लिए ये काम करते है .और इससे भाई चारे का एक संदेश भी समाज को जाता है .
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वही रावण का पुतला बनाने वाले अफजन ने बताया कि रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद का पुतला बनाना हमारी पुस्तैनी परंपरा है. एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी यह हस्तांतरित होती रही. आज भी हम लोग शहर के सभी रामलीलाओं के लिए पुतले बनाते हैं. महंगाई के हिसाब से कोई पैसा देने को राजी नहीं है, फिर भी हमारी परंपरा है, इसलिए इसका निर्वाह कर रहे हैं. और एक तैयार हुए रावण के स्टेचू की कीमत तक़रीबन 5 से 6 हजार के आस पास है . इसे बनाने के लिए लगभग 15 दिन लग जाते है, और दो महीने पहले से ही इनकी सारी तैयारी शुरू हो जाती है .
गोरखपुर के उर्दू बाजार, बर्ड घाट रामलीला,धर्मशाला बाजार की रामलीला,पिपराइच की रामलीला और मानसरोवर की रामलीला में रावण का पुतला दहन किया जाता है. इसके लिए रावण का पुतला 30 से 35 फीट ऊंचा तैयार करते हैं. इसकी कीमत 5 से 6 हजार तक है. अन्य जगहों के लिए तैयार किए जाने वाले पुतले की लंबाई कम होती है इसलिए कीमत भी काम है यह लोग ताजिया भी बनाते हैं. 30,35 फीट ऊंचा बनने वाले पुतले में तीन भाग होते हैं. इसे बनाने में तो सुविधा होती ही है. गंतव्य पर ले जाने में भी आसानी होती है. पुतला दहन स्थल पर इसे जोड़कर तैयार कर लिया जाता है.
रिपोर्ट : कुमार प्रदीप