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मां के लिए कर्ज को चुकाने गुमला की सुधा तिर्की ने फुटबॉल खेलना शुरू किया, आज भारतीय टीम में हुआ चयन

FIFA U-17 महिला विश्वकप फुटबॉल चैंपियनशिप के लिए गुमला की बेटी सुधा अंकिता तिर्की का चयन हुआ है. सुधा के पिता 20 साल पहले परिवार को छोड़ दिये, तो मां ने स्कूल में झाड़ू-पोंछा कर दो बेटियों को पढ़ाया. आज सुधा के चयन से ग्रामीणों में काफी खुशी है.

Jharkhand news: FIFA U-17 महिला विश्वकप फुटबॉल चैंपियनशिप में भारतीय टीम में चयनित हुई गुमला की बेटी सुधा अंकिता तिर्की के पीछे की कहानी काफी प्रेरणादायक है. मां के संघर्ष की कहानी और बेटी के जज्बे एवं बुलंद हौसले से भरी खबर है. पिता छोड़कर भाग गया. मां किराये के घर में रहती है. वह स्कूल में झाड़ू-पोछा करती है. एक-एक पैसा जमा कर दो बेटियों को पढ़ा रही है. इन्हीं में सुधा अंकिता तिर्की है. मां के कर्ज को चुकाने के लिए बेटी ने फुटबॉल खेलना शुरू की.

गुमला वासियों में खुशी की लहर

खेल में ईमानदारी और अनुशासन है. इसी का परिणाम है कि आज गरीब मां की बेटी सुधा अंकिता तिर्की फीफा अंडर-17 बालिका विश्वकप फुटबॉल मैच खेलेगी. 2022 के अक्तूबर माह में विश्वकप मैच है. जिसमें सुधा को खेलते हुए देख सकते हैं. चैनपुर प्रखंड के दानपुर गांव की सुधा अंकिता तिर्की का फीफा अंडर-17 बालिका फुटबॉल विश्व कप में चयन हुआ है. जिससे उसके परिवार समेत पूरे जिले के लोगों को गर्व है.

तुर्की में खेल चुकी है सुधा अंकिता

फुटबॉलर सुधा अंकिता तिर्की गुमला के संत पात्रिक इंटर कॉलेज में पढ़ती है. सुधा 11वीं की छात्रा है. अभी वह जमशेदपुर कैंप में है. सुधा अंकिता तिर्की की मां ललिता तिर्की ने कहा कि आज मैं काफी खुश हूं कि मेरी बेटी का फीफा अंडर-17 महिला विश्वकप में सलेक्शन हुआ है. कहा कि सुधा को बचपन से ही फुटबॉल खेलने में काफी रूचि थी. वह पारिस मीडिल स्कूल में पढ़ाई करती थी. तभी से बहुत अच्छा फुटबॉल खेलती है. फुटबॉल खेलने में रुचि को देखते हुए उसका नामांकन नुकरुडीपा स्कूल में कराया गया. जहां अच्छा खेल प्रदर्शन के बाद गुमला संत पात्रिक विद्यालय में नामांकन किया गया. जहां से वह खेल में अच्छा प्रदर्शन करते हुए इंटर नेशनल लेवल तक खेली. फुटबॉल खेलने के लिए सुधा अंकिता तुर्की गयी थी.

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20 साल पहले पति ने साथ छोड़ा

उसने बताया कि पति 20 वर्ष पहले हमें छोड़ दिये हैं. पति के छोड़ने के बाद गांव में हमारा काफी शोषण होने लगा. जिसके बाद मैं थक-हारकर गांव छोड़कर दोनों बच्चियों के साथ दानपुर आ गयी. यहां लोगों के घरों में काम कर अपने परिवार का गुजारा करने लगी. वह स्कूल के शिक्षकों के घर पर काम करती थीं. जहां उन्हें और दोनों बेटियों को खाना मिल जाता था. स्कूल के फादर ने बेटियों की पढ़ाई में मदद की.

मां की लगन ने सुधा को किया प्रेरित

साल 2019 में कोल्हापुर (महाराष्ट्र) में जूनियर नेशनल चैंपियनशिप के दौरान सुधा का चयन इंडिया कैंप में हुआ था. सुधा की छोटी बहन सविता तिर्की ने बताया कि उसके पिता ने 20 वर्ष पहले उनके परिवार को छोड़ दिया है. इनका मूल गांव चैनपुर प्रखंड के कातिंग पंचायत अंतर्गत खोड़ा चितरपुर है. पिता के छोड़ने के बाद मां हम दो बहनों को लेकर दानपुर गांव आ गयी. मां ने दूसरों के घर में काम कर और स्कूल में झाड़ू-पोछा कर हमें पढ़ाया-लिखाया. 20 वर्षों से मां ने मेहनत मजदूरी कर हम दोनों बहनों की परवरिश कर रही है.

एक घर की जरूरत

सुधा की बहन कहती है कि अत्याधिक गरीबी होने के बावजूद भी मेरी दीदी को फुटबॉल खेलने के लिए भी कभी मना नहीं किया, बल्कि दीदी के हौसले को बढ़ाने के लिए मां ने हमेशा सहयोग किया है. आज भी हम किराये के घर में रहते हैं. हमारा अपना घर भी नहीं है. उसने बताया कि मेरी दीदी का लक्ष्य फुटबॉल खेल में नाम कमाना एवं देश का नाम रोशन करना है. उन्होंने सरकार एवं प्रशासन से मदद के तौर पर एक घर की मांग की है.

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रिपोर्ट : दुर्जय पासवान, गुमला.

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