Coronavirus vaccine, Covaxin, Largest human trial, Delhi AIIMS : ICMR और भारत बायोटेक (Bharat Biotech) द्वारा संयुक्त रूप विकसित किये जा रहे कोराना वायरस वैक्सीन (Coronavirus Vaccine) का सबसे बड़ा ह्यूमन ट्रायल (Human Trial) सोमवार से दिल्ली एम्स (AIIMS) में शुरू होना है. इस परीक्षण को कम से कम 100 वॉलंटियर्स पर आयोजित किया जाना है. वहीं, भारत बायोटेक की मानें तो इस वैक्सीन (Vaccine) को कुल 375 वॉलंटियर्स पर प्रयोग किया जाएगा. ऐसे में क्या आपने कभी सोचा है कि इन मानव परीक्षणों में क्या होता है? कौन इसमें लेता है भाग? क्या आपको मौका मिलेगा तो लेंगे भाग? इसके लिए कितने पैसे दिए जाते हैं ? और सबसे महत्वपूर्ण क्या इसमें जान का भी होता है खतरा? जानें सब कुछ डिटेल में..
खबरों की मानें तो दिल्ली एम्स ने स्वदेशी कोविड-19 (COVID-19) वैक्सीन के मानव परीक्षण के लिए केंद्र से अनुमति प्राप्त कर ली है. कुल 3 चरणों में होने वाले इस ट्रायल का पहला फेज सोमवार से दिल्ली एम्स में शुरू होना है. वर्तमान में कम से कम 18 कोरोना वायरस वैक्सीन (Coronavirus Vaccine) पर ह्यूमन ट्रायल (Human Trial) जारी है. इसमें भारत (India) के भी दो वैक्सीन (Vaccine) शामिल है.
दरअसल, जबतक कोरोना का टीका नहीं बन जाता लोगों के मन में कई सवाल उठते रहेंगे. अभी पूरी दुनिया इन्हीं मानव परीक्षणों के परिणामों पर निर्भर है.
आपको बता दें कि देश में हैदराबाद के भारत बायोटेक (Bharat Biotech) और अहमदाबाद के जाइडस कैडिला (Zydus Cadila) कंपनी ने ह्यूमन ट्रायल शुरू कर दिया है. हालांकि, विशेषज्ञों की मानें तो मानव परीक्षण को पूरा करने में बहुत लंबा समय लग सकता है.
तो, आइये जानते हैं कि इन ह्यूमन ट्रायल के दौरान क्या किया जाता है और ट्रायल फेज क्या हैं. और वैक्सीन का निर्माण पूरी तरह से कब तक संभव है.
जैसा कि इस शब्द से ही स्पष्ट होता है. ह्यूमन ट्रायल के दौरान इंसानों पर दवा या वैक्सीन को प्रयोग करके देखा जाता है. इसमें दो तीन चीजें जांची जाती है. पहला ये कि वैक्सीन व्यक्ति पूरी तरह से स्वस्थ रूप से कार्य कर रहा है या नहीं. क्या टीका या दवा सुरक्षित है बड़ी संख्या में लोगों पर आजमाने के लिए. दूसरा, वैक्सीन या ड्रग को जिस मकसद से बनाया गया है वह कार्य कर रहा है कि नहीं. जैसे कोरोना वायरस के मामले में ही ले लें तो इसमें यह देखा जाएगा कि रोगज़नक़ वायरस के खिलाफ प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाकर उसके रोकथाम में कार्य कर रहा है या नहीं.
विभिन्न देशों में विभिन्न लोगों के मानव शरीर अलग-अलग तरीके या लक्षणों के साथ कार्य करते है. ऐसे में कुछ लोगों पर मानव परीक्षण करके देखा जाता है कि टीका वास्तव में मनुष्यों पर सही से काम करेगा या नहीं.
दरअसल किसी भी दवा या वैक्सीन को सीधे इंसानों पर परीक्षण नहीं किया जाता है. इसके लिए सबसे पहले प्रयोगशाला में जानवरों पर परीक्षण किया जाता है. इस क्लिनिकल ट्रायल में टीका सही से कार्य करने लगता है या इससे सकारात्मक उम्मीद जगती है तो इसका ह्यूमन ट्रायल शुरू कर दिया जाता है.
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR), मानव परीक्षणों के लिए जिम्मेवार होता है. भारत में मानव परीक्षणों की जिम्मेदारी स्वास्थ्य मंत्रालय की केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन के पास होती है. अगर जमीनी स्तर पर बात करें तो, इसकी देखरेख एथिक्स कमेटी (Ethics Committee) द्वारा की जाती है. यह एथिक्स कमेटी मानव परीक्षण के हर पहलू पर नजर रखती है.
दरअसल, यह शोधकर्ता तय करते है कि उन्हें कैसे व्यक्ति चाहिए ह्यूमन ट्रायल के लिए. उदाहरण के लिए आपको बता दें कि एक कोविड-19 रोगी इस मानव परीक्षण का हिस्सा कभी नहीं बन सकता. उस व्यक्ति में वायरस के लक्षण आ गए होते है अत: उनपर यह ट्रायल नहीं किया जा सकता है. इसके लिए स्वस्थ व्यक्तियों की जरूरत होती है. हालांकि, कैसंर की दवा के लिए पीड़ित रोगी की जरूरत होती है.
आपको बता दें कि शोधकर्ताओं द्वारा एक विशेष रूप का मानदंड तैयार किया जाता है. अगर आप उन मानदंडों में खड़ा उतरते है तो आसानी से भाग ले सकते हैं. इस दौरान मानव परीक्षण के लिए तैयार व्यक्ति को सरल शब्दों में इससे संबंधित जोखिमों के बारे में पूर्ण जानकारी दी जाती है. जिसके बाद कोई व्यक्ति को भाग लेने की अनुमति प्रदान की जाती है.
यह काफी हद तक ह्यूमन ट्रायल के प्रकार पर निर्भर करता है. आमतौर पर संबंधित व्यक्ति को प्रयोगशाला या कंट्रोल रूम में रखा जाता है. प्रयोगशाला में उस वॉलेंटियर को रखा जाता है जिनपर वैक्सीन का प्रयोग किया जाना है. जबकि, कंट्रोल रूम में उन्हें रखा जाता है जिनपर सफलता पूर्वक प्रयोग कर लिया गया है.
कंट्रोल रूम में बैठाये लोगों को प्रायोगिक टीका या प्लेसबो (एपी फोटो) दिया जाता है जो इस बात का संकेत होता है कि यह उनके स्वास्थ्य को किसी भी तरह से प्रभावित नहीं किया है.
आईसीएमआर दिशानिर्देशों की मानें तो मानव परीक्षण में वॉलेंटियर को भुगतान किया जाता है. उनके लिए अतिरिक्त चिकित्सा सेवाओं मुफ्त कर दी जाती है. एथिक्स कमेटी ही इन भुगतानों पर नजर रखने के लिए जिम्मेदार होती है. इसके अलावा यदि इस ट्रायल के दौरान प्रतिभागी को किसी तरह का स्वास्थ्य नुकसान होता है तो उसके लिए अलग से मुआवजा का भी प्रावधान है.
(What are the phases of a human trial)
अभी तक आपने सुना होगा कि ह्यूमन ट्रायल को कुल तीन चरण में किया जाता है.
पहला चरण : इसमें शोधकर्ताओं ये देखते है कि वैक्सीन सुरक्षित है और इंसान इसे आसानी से ले सकते है या नहीं. अर्थात टीके का कोई साइड-इफैक्ट तो नहीं हो रहा.
दूसरा चरण : दूसरे चरण में देखा जाएगा कि यह टीका शरीर में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के स्तर को बढ़ा रहा है कि नहीं. ताकि यह वायरस से लड़ सके.
तीसरा चरण : इसमें शोधकर्ताओं निष्कर्षों की पुष्टि करते है कि उनके द्वारा बनायी वैक्सीन सही साबित हुई या नहीं. इसे महत्वपूर्ण अंतिम चरण माना गया है.
चौथा चरण : वास्तविक दुनिया में टीके के प्रभाव पर नजर बनाए रखते हैं कि वैक्सीन प्रभावकारी साबित हो रहा है या नहीं.
इसके लिए कोई अंतरराष्ट्रीय मानक निर्धारित नहीं है की कितने लोग मानव परीक्षण में शामिल हो सकते है. आमतौर पर, पहले फेज में बहुत कम लोग शामिल होते हैं. जबकि दूसरे और तीसरे फेज में बड़ी संख्या में लोग भाग लेते हैं.
इसके बारे में फिहलाल नहीं बताया जा सकता है. अगर कोरोना वायरस का टीका असफल नहीं हुआ तो भी एक वर्ष से ऊपर ही लगेंगे. आपको बता दें कि एचआईवी को खोजे हुए लगभग चार दशक हो चुके हैं, लेकिन अभी तक इसका टीका नहीं बन पाया है. हालांकि, वर्तमान में विशेषज्ञ अनुमान लगा रहे हैं कि कोरोनावायरस वैक्सीन अगले साल के मध्य या अंत तक सार्वजनिक रूप से मार्केट में आ जायेगा. हालांकि, कुछ वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि ज्यादा आशावादी बनने से अपना ही नुकसान है.
Posted By : Sumit Kumar Verma
Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.