Health Tips: कोरोना महामारी से अब उबरने की ओर हम बढ़ चले हैं. मगर हमें नहीं भूलना चाहिए कि इसने हमारी जीवनशैली को किस कदर प्रभावित किया है. अधिकांश लोगों में चिंता, अवसाद और कई शारीरिक समस्याएं देखी गयी हैं. इसने खान-पान, बॉडी पॉश्चर, फिटनेस और कामकाज पर भी बुरा असर डाला है. जीवनशैली की दिक्कतों के कारण ही कमर दर्द, मांसपेशियों में खिंचाव, मोटापा, डायबिटीज आदि रोगों का खतरा कई गुना बढ़ गया है. नये वर्ष में सेहत के प्रति ज्यादा अलर्ट रह कर अपना ध्यान रखें, तभी फिट रहेंगे और दोगुनी ऊर्जा से इस पूरे साल का भरपूर सदुपयोग कर पायेंगे.
अभी हमलोग बहुत बड़ी महामारी का सामना कर रहे हैं. इससे बचाव के लिए संतुलित आहार लें और अपनी इम्युनिटी मजबूत बनाएं. इससे संक्रमण या रोगों का असर हमारे शरीर पर नहीं होगा. सर्द मौसम में पाचन क्रिया की अग्नि मंद हो जाती है. इसलिए ठंडा मारने पर बहुत लोगों को उल्टी और पतला पैखाना होने लगता है. देर से पचने योग्य भोजन न लें.
अधपचा अनाज उल्टी और पखाने के द्वारा बाहर निकल जाता है. बहुत से लोगों में महामारी के कारण तनाव बढ़ा है. जीवनशैली और खान-पान में बदलाव करके खुद को मानसिक और शारीरिक तौर पर स्वस्थ रखें. जीवन से जुड़े ऐसे ही अनेक पहलुओं के बारे में बतायेंगे, जिससे आप स्वस्फूर्त व ऊर्जावान बने रहें.
जागने की क्रिया : सूर्योदय से दो घंटे पहले उठें. इस समय वातावरण में शांति और सात्विकता बनी रहती है. प्रातः काल दिनभर की कार्य योजना बना लें. इससे आपका दिन व्यवस्थित तरीके से गुजरेगा. सुबह जागने के बाद बहुत सारे लाभदायक बैक्टीरिया हमारे मुंह में मौजूद होते हैं. इसलिए, सुबह उठने के बाद बिना कुल्ला किये ही गुनगुना पानी पीएं.
मुख धोना : बिस्तर छोड़ने के बाद स्वच्छ जल से मुख धोएं. इससे आंख, नाक और चेहरे पर जमी गंदगी साफ हो जाती है. इससे सुस्ती दूर होती है और शरीर में ताजगी आती है. जाड़े में थोड़े गुनगुने पानी से मुंह धोएं.
खाली पेट पीएं पानी : रोजाना मुख धोने के बाद खाली पेट 2 गिलास गुनगुना गर्म पानी पीएं. मोटापे से ग्रसित लोग गुनगना पानी जरूर लें. आयुर्वेद में इसे ही उषः पान कहा जाता है. इससे मल-मूत्र का त्याग ठीक तरह से हो पाता है. हमेशा बैठकर पानी पीएं. खड़े-खड़े पानी पीने से घुटने या जोड़ों में दर्द हो सकता है.
मल-त्याग : प्रातः काल नियमित मल-त्याग की आदत विकसित करें. इस तनावपूर्ण और व्यस्त जीवन में कई लोगों को समय पर मल के वेग का अनुभव नहीं होता. इसके अनेक कारण हैं, जैसे- रात में लिए गये भोजन का न पचना, पूरी नींद न लेना, अधिक तनाव रखना इत्यादि. इन कारणों से वातकारक भोजन (भारी दाल या तला हुआ पदार्थ) लेने से आंतों में वात जमा हो जाता है. इससे मल-त्याग की गति में रुकावट पैदा होती है.
दातुन करना : आयुर्वेद में मल-त्याग के बाद दांतों की सफाई करने का विधान है. कटु रस वाले औषधीय वृक्षों की लकड़ी से दातुन करें. इससे मुख के रोग व बैक्टीरिया का शमन होता है. बबूल, करंज और नीम वृक्षों की टहनी के दातुन औषधीय गुणों से परिपूर्ण होते हैं.
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आयुर्वेद में खान-पान को समय, मौसम और शारीरिक प्रकृति के आधार पर निर्धारित किया गया है. भोजन में सभी 6 रस शामिल हो. ये 6 रस हैं- मीठा, नमकीन, खट्टा, कड़वा, तीखा और कसैला.
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जाड़े में तिल से बने पदार्थ लें. तिल का लड्डू या तिलकुट खाएं. इसके अलावा सोंठ का लड्डू रोजाना खाएं. मेथी का लड्डू फायदेमंद होता है. इससे ठंड से बचाव होता है.
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सब्जियों को पकाने में अधिक समय न लगाएं. सब्जियां न अधिक पकी हों और न ही कच्ची.
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चीनी के स्थान पर शहद या गुड़ लें. मैदे के स्थान पर चोकरयुक्त आटा और दलिया खाएं.
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अदरक का एक छोटा-सा टुकड़ा लें और उसे तवे पर भून लें. ठंडा होने पर इस पर थोड़ा-सा सेंधा नमक लगाएं. अब इस टुकड़े को भोजन करने से 5 मिनट पहले खा लें. इससे भूख बढ़ती है और पाचन क्रिया सही रहती है.
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जंक फूड में सोडियम, ट्रांस फैट और शर्करा प्रचुर मात्रा में होती है. ऐसे फूड लेने से परहेज करें.
भोजन करते वक्त क्यों न पीएं पानी : भोजन करने से आधा घंटा पहले और आधे घंटे बाद पानी पीएं. जरूरत होने पर भोजन करते वक्त एक-दो घूंट पानी पी सकते हैं. सादा या गुनगुना पानी पीएं. भोजन के तुरंत बाद पाचन क्रिया शुरू हो जाती है. पाचन क्रिया में अग्नि की बड़ी भूमिका है. यदि बीच-बीच में पानी देकर उसको ठंडा करते रहेंगे, तो अग्नि बुझ जायेगी. इससे भोजन का पाचन सही तरीके से नहीं होगा और अम्ल बनने लगेगा. इससे अनेक वात या व्याधि होने लगती है. एसिडिटी और अपच जैसी समस्याएं बढ़ जाती हैं.
ये चीजें हमेशा न खाएं : हफ्ते में बार-बार पनीर न खाएं. सप्ताह में दो या तीन बार ही दही खाएं. रोजाना दही खाने से मोटापा, जोड़ों का दर्द, डायबिटीज आदि बीमारियां हो सकती हैं. दही में गुड मिलाकर खाएं. जिन्हें जोड़ों का दर्द हो, एलर्जी हो, वे दही और केला न ही खाएं.
ये फूड एक साथ न लें : आयुर्वेद में खान-पान की कुछ चीजों का कॉम्बिनेशन सही नहीं माना गया है, जैसे- दूध और दही एक साथ नहीं खाएं. फल के साथ दूध का सेवन न करें. ज्यादा ठंडी दही के साथ गर्म पराठे न खाएं. दूध के साथ ऐसी चीजें न लें, जिसमें नमक मिला हो.
जाड़े में तेल का उपयोग
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सिर : तिल, जैतून व सरसों का तेल सिर में लगाएं. नारियल का तेल शीतल होता है, इसलिए ठंड में इसका इस्तेमाल न करें. सिर में तेल लगाने से बालों का गिरना, सफेद या भूरा होना, गंजापन, सिरदर्द और अन्य वात रोग नष्ट होते हैं.
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नाभि : जाडे में सरसों का तेल नाभि में लेना चाहिए. नाभि में सारे नाड़ियों का समागम है. रात को सोते समय तलवा में सरसों तेल लगाएं. इससे नींद अच्छी आती है.
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कान : मनुष्य को कान में प्रतिदिन तेल डालना चाहिए. इससे ऊंचा सुनना, बहरापन, कान के रोग (वात से होने वाले) नहीं होते हैं. ध्यान रहे कि तेल गुनगुना गर्म हो.
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पैरों में मालिश : पैर में तेल लगाने से पैरों का खुरदरापन, रूखापन, शिथिलता, थकावट, सुन्न होना, पैरों का फटना आदि ठीक होता है. इससे आंखों की दृष्टि तेज होती है. तेल के अलावा लौकी, खीरा और अन्य औषधीय द्रव्यों को मलने से बहुत से विकार दूर होते हैं.
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नाक में तेल डालना : नहाने से पहले नाक में सरसों तेल लेकर ऊपर की ओर खींचें, जिससे सिर में साइनस जैसी बीमारियां ठीक होती हैं. इससे सर्दी-जुकाम में भी राहत मिलती है. जो तेल हाथ में बच जाता है, उसे सिर के तालू में लगाएं. इससे नहाने के बाद ठंड से बचाव होगा. इससे गर्दन के ऊपर के सभी रोग दूर होते हैं. ऐसा करने से लकवा, सिरदर्द और नाक में सूजन ठीक होता है.
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ऑयली, जंक फूड, कोल्ड ड्रिंक आदि चीजों से परहेज करें.
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फ्रिज का ठंडा पानी न पीएं. गुनगुना या सामान्य पानी पीएं.
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जितनी भूख हो, उससे कम खाएं.
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भोजन करने के तुरंत बाद न सोएं. खाने और सोने में कम-से-कम 2-3 घंटे का अंतराल रखें.
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ठंड में उबले हुए भोजन को प्राथमिकता दें.
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सर्दियों में अमूमन प्यास कम लगती है, लेकिन पानी पीते रहना चाहिए. इससे शरीर के विषैले पदार्थ बाहर निकलते हैं.
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प्रदूषण का स्तर अधिक हो, तो घर से न निकलें.
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हरी सब्जियां, सलाद और प्रोटीनयुक्त डाइट लें.
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Posted by: Pritish Sahay