मानसिक स्वास्थ्य जिसे लेकर आज चारों तरफ बात हो रही है. मानसिक परेशानियों का शिकार आज के दौर में सबसे अधिक महिलाएं ही हैं. पुरूषों की तुलना में यह महिलाओं में काफी अधिक होती है. इस मानसिक परेशानी में सबसे पहले जिससे महिलाएं जूझती हैं वो है अवसाद. महिलाओं में मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं विभिन्न कारणों से उत्पन्न हो सकती हैं. इन कारणों में जैविक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक पहलू शामिल हैं. ये स्थितियां कई लक्षणों के माध्यम से प्रकट होती हैं और समग्र कल्याण के लिए सावधानी बरतना महत्वपूर्ण है.
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सामाजिक दबाव– सामाजिक मानदंड और अपेक्षाएं महिलाओं पर सामाजिक दबाव बनाती है. पुरूषों की तुलना में महिलाओं पर अधिक सामाजिक दबाव होता है. महिलाएं पुरूषों के मुकाबले ज्यादा इमोशनल होती है. समाज के अनुसार एक औरत पर अच्छी मां, अच्छी पत्नी और बहु होने का दबाव होता है. इसके साथ ही उनका फ्रेंडली होना भी जरूरी माना जाता है.
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हार्मोनल परिवर्तन– हार्मोन में उतार-चढ़ाव, विशेष रूप से मासिक धर्म, गर्भावस्था और रजोनिवृत्ति के दौरान, मूड और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डाल सकता है. आत्मसम्मान में कमी भी इसका मुख्य कारण है.
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जेनेटिक फैक्टर– मानसिक स्वास्थ्य विकारों का पारिवारिक इतिहास महिलाओं के लिए जोखिम बढ़ा सकता है, जो आनुवंशिक प्रवृत्ति का संकेत देता है।
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तनाव और आघात– महिलाओं को अक्सर काम, परिवार और सामाजिक अपेक्षाओं से संबंधित तनाव का सामना करना पड़ता है, जो चिंता और अवसाद जैसी स्थितियों को बढ़ावा देता है. दर्दनाक अनुभव मानसिक स्वास्थ्य पर स्थायी प्रभाव भी डाल सकते हैं.
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दुव्यर्वहार– महिलाओं के साथ दुव्यर्वहार मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों को समझने और व्यक्त करने के तरीके पर प्रभाव डाल सकते हैं. किसी भी तरह का फिजिकल, इमोशनल और सेक्सुअल दुव्यर्वहार महिलाओं पर आजीवन छाप छोड़ सकता है.
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अवसाद– लगातार उदासी निराशा से घिरे रहना. कोई महिला अगर लगातार उदासी या निराशा से घिरी है तो वह अवसाद में हो सकती है.
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चिंता – अत्यधिक चिंता, भय, या घबराहट के दौरे जो दैनिक जीवन में बाधा डालते हैं. अक्सर महिलाएं अपनी परेशानी छुपा लेती है और वहीं लंबे समय तक उन्हें परेशान करती है. इससे महिलाओं की मानसिक स्वास्थ्य को हानि पहुंचती है.
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खान-पान में बदलाव– अस्वास्थ्यकर खान-पान, अत्यधिक परहेज, या शरीर के वजन और आकार के प्रति जुनून. कभी ज्यादा खाना कभी बिल्कुल नहीं खाना. ये मानसिक स्वास्थ्य विकार के लक्षण हैं.
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प्रसवोत्तर अवसाद– बच्चे के जन्म के बाद उदासी और चिंता की तीव्र भावनाएं भी कई बार महिलाओं को डिप्रेशन में डालती हैं.
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पीटीएसडी– किसी दर्दनाक घटना के बाद फ्लैशबैक, बुरे सपने और गंभीर चिंता.
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मूड स्विंग– अगर महिलाओं के मूड में लगातार बदलाव आ रहे हैं और उसकी कोई ठोस वजह नहीं है तो फिर यह मानसिक स्वास्थ्य के सही नहीं होने के लक्षण हैं.
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एक्सपर्ट एडवाइस– अगर आपको ये सारे लक्षण दिखाई दे रहे हैं और लगातार आप इनसे जूझ रही हैं तो इन मामलों में आपको एक्सपर्ट की एडवाइस लेने की जरूरत है.
ओपन कम्यूनिकेशन- इस परेशानी के बारे में खुल कर बात करना ही इसका सबसे बड़ा हल है. परिवारों और समुदायों के भीतर मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बातचीत करें.
स्वस्थ जीवन शैली- बेहतर स्वास्थ्य के लिए संतुलित आहार, नियमित व्यायाम और पर्याप्त नींद बनाए रखें.
तनाव प्रबंधन- प्रभावी तनाव प्रबंधन तकनीकों का विकास करें, जैसे कि माइंडफुलनेस, ध्यान, या गहरी साँस लेने के व्यायाम.
सीमाएं निर्धारित करना- तनाव को रोकने के लिए व्यक्तिगत और व्यावसायिक संबंधों में स्वस्थ सीमाएं निर्धारित करना सीखें.
जागरूकता बढ़ाएं- गलतफहमियों को कम करने और समझ को बढ़ावा देने के लिए मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता को बढ़ावा दें.
नियमित जांच– किसी भी उभरती मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं की निगरानी और समाधान के लिए स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के साथ नियमित जांच को प्राथमिकता दें.
प्रारंभिक हस्तक्षेप- मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के शुरुआती लक्षणों को पहचानें और इसे बढ़ने से रोकने के लिए तुरंत मदद लें.
महिलाओं में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के बहुत कारण हैं. इनमें जैविक से लेकर सामाजिक कारण तक शामिल हैं. लक्षणों की पहचान करना और सक्रिय सावधानी बरतना, जिसमें पेशेवर मदद लेना और एक सहायक वातावरण को बढ़ावा देना शामिल है, मानसिक कल्याण बनाए रखने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं.
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