कुछ लोगों को इस घड़ी टमाटर के जायकों का जिक्र करना जले-कटे पर नमक छिड़कने जैसा लग सकता है, जब इसकी कीमतें 250 से 300 रुपये प्रति किलो के रूप में आम आदमी के बस के बाहर झूल रही है. विडंबना यह है कि टमाटर, आटा, दाल-चावल, नून-तेल, लकड़ी जैसी अनिवार्य खाद्य सामग्री नहीं जिसके बिना हम जिंदगी बसर ही नहीं कर सकते. इस बारे में विद्वान एकमत हैं कि टमाटर नामक फल ( वनस्पति शास्त्री इसे फलों में ही शुमार करते हैं ), पुर्तगालियों के साथ हमारे देश में दक्षिण अमेरिका से कोई 500 साल पहले ही पहुंचा और अपने अनोखे जायके के कारण हमारी जुबान ही नहीं, हमारे सिर पर भी चढ़ बैठा. पहले-पहल यूरोप में टमाटर को शक की निगाह से देखा जाता था.
कुछ लोगों को भ्रम था कि यह जहरीला हो सकता है, और इस अजनबी को अपनाने में उन्होंने देर लगाई. आखिरकार इसकी दिलकश खटास और व्यंजनों को अपनी सुर्खी से रंग देने की क्षमता ने इसे भूमध्यसागरीय, खासकर इतालवी खाने का प्रमुख अंग बना दिया. स्पैगेटी, पैने, मैकरोनी आदि पास्ता की कल्पना टमैटो सॉस के बिना नहीं की जा सकती. हालांकि, यह बात ध्यान रखने लायक है कि इतालवी टमाटर का सॉस हमेशा ताजा बनाया जाता है, और उसमें सिरके आदि का प्रयोग नहीं होता. सूखी जड़ी-बूटियां (हर्ब) उसका स्वाद निखारती हैं. पिज्जा में भी गोलाकार बड़ी सी रोटी के ऊपर पहली परत टमाटर के पेस्ट की ही होती है, जिसके साथ प्रोसेस्ड चीज (पनीर) की जुगलबंदी साधी जाती है. हिस्पानी पाइला (पुलाव जैसा) और ऑमलेट में भी टमाटर की प्रमुख भूमिका रहती है. सलाद के रूप में टमाटर का खुले हाथ से इस्तेमाल, तुर्की के खाने में भी होता है और पकाये व्यंजनों में भी.
चीन की रसोई में स्वीट एंड सावर नामक जो व्यंजन दुनिया भर में पेश किये जाते हैं उनमें भी खट्टा-मीठा टमाटर का सॉस ही जान डालता है. टमाटर चीन में भी पुर्तगालियों की मार्फत पहुंचा. इसके पहले खट्टा-मीठा जायका पैदा करने के लिये सिरके और चीनी का इस्तेमाल किया जाता था. एक दिलचस्प जानकारी यह भी है कि जिस टमेटो केचप का खुले हाथ से इस्तेमाल फिश एंड चिप्स, हैम बर्गर और हॉट डॉग और तरह-तरह के कटलेट के साथ किया जाता है, समोसे और पकौड़े भी इससे अछूते नहीं रहे. वह भी चीनियों की ही ईजाद हैं. खानपान के इतिहासकारों का मानना है कि उन्नीसवीं सदी में अमेरिका पहुंचने वाले चीनियों ने इसका आविष्कार किया, परदेस में अपने घर जैसे जायके को पाने के लिए.
भारत के विभिन्न प्रदेशों में टमाटर के जायके का रस तरह-तरह से लिया जाता रहा है. बंगाल में खजूर, किशमिश डालकर इसकी गाढ़ी मीठी चटनी बनाई जाती है तो हैदराबाद, दक्कन में टमाटर का कूट चाव से खाया जाता है. पूर्वांचल और बिहार में टमाटर को सेंक कर चोखा बनता है. पंजाब में आजकल शायद ही कोई ऐसा व्यंजन हो जिसमें टमाटर का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. कश्मीरी रोगन जोश की सुर्खी रतनजोत से पैदा होती है. खटास का पुट दही देता है, और टमाटर का नामोनिशान उसमें नहीं रहता. पर पंजाब के रोगन जोश का टमाटर वैसे ही अभिन्न अंग है जैसे बटर चिकन, मखनी पनीर आदि का. अवधी बावर्ची, भरवां टमाटर को दुलमा का नाम देते हैं. कभी यह शाकाहारियों का प्रिय व्यंजन हुआ करता था. आलू की तरह टमाटर की एक विशेषता यह भी है कि वह सब्जियों और पदार्थों के साथ बड़ी आसानी से अंतरंग नाता जोड़ देता है. टमाटर की कीमतें गिरने तक फिलहाल इतना ही.
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