वैक्सीन का इतिहास बहुत पुराना है. वर्ष 1796 में सबसे पहले एडवर्ड जेनर ने चेचक का टीका तैयार किया था. उसने चेचक पीड़ित व्यक्ति के सीरम को लेकर एक बच्चे के शरीर में इंजेक्ट किया था, जिससे बच्चे में चेचक की प्रतिरोधक क्षमता पैदा हो गयी थी. तबसे टीकों पर लगातार बहुत काम हुआ है और कोरोना जैसे घातक वायरस से बचाव के लिए वैक्सीन का निर्माण बड़ी उपलब्धि है.
बचपन में लगे कई टीके व्यक्ति के शारीरिक व मानसिक विकास में तो सहायक होते ही हैं. ये टीके हमारे शरीर में एंटीबॉडीज बनाते हैं, जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करते हैं और बीमारी के वायरस या बैक्टीरिया से लड़ने में मदद करते हैं, लेकिन किसी कारणवश जब बच्चे जीवनरक्षक टीकों की खुराक से वंचित रह जाते हैं, तो वे जिंदगीभर विकलांगता का दर्द झेलने के लिए भी मजबूर हो जाते हैं. टीकाकरण हर वर्ष डिप्थीरिया, टेटनस, पर्टुसिस, इन्फ्लुएंजा और खसरा जैसी बीमारियों से होने वाली 3.5-5 मिलियन मौतों को रोकता है.
वैश्विक स्तर पर टीकाकरण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए विश्व टीकाकरण सप्ताह भी मनाया जाता है. हर वर्ष विश्व टीकाकरण सप्ताह की थीम अलग होती है- इस वर्ष की थीम है द बिग कैच-अप. इसका मूल उद्देश्य उन बच्चों को जल्द-से-जल्द उन बच्चों को ढूंढ़ना और उनका टीकाकरण करना है, जो कोरोना महामारी के दौरान जीवन रक्षक टीके लेने से चूक गये हैं. इसके चलते दुनियाभर के देशों को आवश्यक टीकाकरण सेवाओं में तेजी लाने और संसाधनों की आपूर्ति करने आह्वान किया जा रहा है.
कोरोना काल में स्वास्थ्य व्यवस्था पर पड़े बोझ का असर बच्चों की नियमित टीकाकरण पर भी पड़ा. डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के मुताबिक, दुनियाभर में 2021 में 1 करोड़, 80 लाख से ज्यादा बच्चों को कोई टीका नहीं मिला.
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जन्म के समय : बीसीजी, ओरल पोलियो ड्रॉप्स, ओपीवी (जीरो डोज), हेपेटाइटिस बी की वैक्सीन लगती हैं.
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प्राइमरी सीरीज में : शिशु के जन्म के 6 सप्ताह,10 सप्ताह 14 सप्ताह के होने पर पेंटावैलेंट वैक्सीन लगायी जाती हैं. जो 8 बीमारियों को कवर करती हैं. इसके अलावा डायरिया के लिए रोटावायरस, निमोनिया के लिए न्यूमोकोकल और पोलियो के लिए वैक्सीन लगायी जाती है.
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जन्म के 6, 10 और 14 सप्ताह में पोलियो वैक्सीन या ओपीवी : 1, 2, 3 की ओरल पोलियो ड्रॉप्स दी जाती हैं. रोटावायरस ड्रॉप्स की 3 डोज भी पिलायी जाती है. पहली डोज 6-12 सप्ताह, दूसरी 4-10 सप्ताह और तीसरी 32 सप्ताह या 8 महीने के बीच दी जाती है.
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छठे महीने में : शिशु को टाइफायड कॉजुगेट वैक्सीन, ओरल पोलियो वैक्सीन और इंफ्लुएंजा दिये जाते हैं.
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नौ महीने में : एमएमआर या खसरे (मीजल्स, मम्स और रुबैला) की कंबीनेशन वैक्सीन लगती है. ओरल पोलियो ड्रॉप्स की दूसरी डोज पिलायी जाती है. विटामिन ए की 9 डोज दी जाती हैं. 9 महीने पूरे होने पर बच्चों को जैपनीज एंसेफलाइटिस (दिमागी बुखार) दो डोज दी जाती हैं.
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12वें महीने पर : हेपेटाइटिस ए वैक्सीन दी जाती है. यह 2 तरह की होती है- लाइव वैक्सीन, जिसकी सिंगल डोज दी जाती है, दूसरी इनएक्टिव वैक्सीन, जिसकी 6 महीने के अंतराल पर 2 डोज (12वें और 18वें माह में) दी जाती हैं.
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15वें माह पर दी जाने वाली वैक्सीन : इस उम्र के बच्चों को एमएमआर सेकंड डोज, वैरीसेला 1 (चिकनपॉक्स के लिए) दी जाती है.
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बूस्टर वैक्सीन : 15वें महीने पर नीमोकोकल वैक्सीन का बूस्टर डोज दी जाती है. 16-18वें महीने में डीपीटी बूस्टर, इंजेक्टेड पोलियो वैक्सीन वैक्सीन लगायी जाती है. इनएक्टिव हेपेटाइटिस, वैक्सीन का बूस्टर डोज 18वें महीने में लगायी जाती है.
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4-6 वर्ष में जरूरी वैक्सीन : डीटीपी वैक्सीन बूस्टर डोज, एमएमआर वैक्सीन की तीसरी डोज और वेरीसेला वैक्सीन की दूसरी डोज दी जाती है.
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बातचीत : रजनी अरोड़ा
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