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पहले भी फैल चुकी है Corona जैसी महामारी, Vaccine नहीं बन पाया तो लॉकडाउन के बाद कैसा होगा जीवन?

What happens if corona vaccine is never developed दुनियाभर में तमाम कोशिशों के बावजूद वैज्ञानिक अबतक कोरोना का मर्ज नहीं निकाल पाएं है. हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी कहा था कि हमें कोरोना के साथ जीना का तरीका सीख लेना चाहिए. यह हमारे बीच लंबे समय तक रहेगा. ऐसे में आपके मन में भी ख्याल आ रहा होगा कि वाकई में अगर हमें इस वायरस के साथ जीना होगा तो कैसी हो जाएगी हमारी जिंदगी. जिस वायरस ने आते ही लोगों को आईसीयू में ढ़केल दिया, जिसने कई जानें ले ली, जिसने दुनिया भर में लॉकडाउन कर दिया, वह लंबे समय तक अगर हमारे साथ रहा तो हमारे जीवनशैली में कितना बदलाव आ जाएगा. ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब पर है हमारा ये रिर्पोट.

What happens if corona vaccine is never developed दुनियाभर में तमाम कोशिशों के बावजूद वैज्ञानिक अबतक कोरोना का मर्ज नहीं निकाल पाएं है. हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी कहा था कि हमें कोरोना के साथ जीना का तरीका सीख लेना चाहिए. यह हमारे बीच लंबे समय तक रहेगा. ऐसे में आपके मन में भी ख्याल आ रहा होगा कि वाकई में अगर हमें इस वायरस के साथ जीना होगा तो कैसी हो जाएगी हमारी जिंदगी. जिस वायरस ने आते ही लोगों को आईसीयू में ढ़केल दिया, जिसने कई जानें ले ली, जिसने दुनिया भर में लॉकडाउन कर दिया, वह लंबे समय तक अगर हमारे साथ रहा तो हमारे जीवनशैली में कितना बदलाव आ जाएगा. ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब पर है हमारा ये रिर्पोट.

आपको बता दें कि दुनिया में इससे पहले भी ऐसा संकट आ चुका है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण है (HIV AIDS) एचआईबी एड्स. गौरतलब है कि सन 1984 में वॉशिंगटन में एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान एक अधिकारी ने घोषणा की थी कि वैज्ञानिकों ने सफलतापूर्वक वायरस की पहचान कर ली है. जो बाद में एचआईबी एड्स के तौर पर जाना जाने लगा.

इसके लिए वैज्ञानिकों ने 2 साल का समय मांगा था. उन्होंने कहा था कि इसके टीके का परिक्षण करने में करीब दो साल का समय लग सकता है. लेकिन देखिए आज चार दशक के बाद और 32 मिलीयन से अधिक लोगों के मृत्यु हो जाने के बाद भी इसके वैक्सीन का निर्माण नहीं किया जा सका है.

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इसके अलावा भी कई अन्य बीमारियां है जिसने वैज्ञानिकों को काफी भ्रमित किया है. आपको बता दें डब्ल्यूएचओ के अनुसार डेंगू हर वर्ष 400,000 से अधिक लोगों को संक्रमित करता है. हालांकि, इसकी दवाई तो है लेकिन इसे दुनिया से जड़ से समाप्त नहीं किया जा सका है.

इसी तरह, सामान्य राइनोवायरस और एडेनोवायरस के लिए टीके विकसित करना भी बहुत मुश्किल है.

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उपर बताए गए रोगों से कहने का मतलब यह कतई नहीं है कि वैक्सीन की उम्मीद छोड़ दी जाए, बल्कि हमें प्लान बी पर काम करना शुरू कर देना चाहिए. इसके साथ जीने का तरीकों पर कार्य शुरू कर देना चाहिए.

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तो आईये जानते है क्या हो सकता है प्लान बी

– जैसा कि आपको ज्ञात हो की कोरोना से कई लाख लोगों की अबतक मौत हो चुकी है तो कई स्वस्थ भी हुए है. कुछ जानी-मानी दवाईयों के मदद से मरीजों को ठीक किया जा रहा है. जिसमें हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन, कीथ नील, रेमेडिसविर, प्लाजमा डोनेट, पैरासीटामोल व अन्य शामिल है. जबतक कोई वैक्सीन का निर्माण न हो इन दवाओं की उपलब्धता पूर्ण रूप से होनी चाहिए.

– यदि इसके वैक्सीन की खोज नहीं हो पायी तो हमारा जीवन पहले की तरह नहीं रह जाएगा. सामान्य तरह से जीने की आदत छोड़ देनी होगी.

– “लॉकडाउन आर्थिक रूप से स्थायी उपाय नहीं है. बड़े-बड़े देश की अर्थव्यवस्था इसके वजह से घुटनों पर आ गयी है. अत: किसी भी हाल में जीवन को दूसरे तरीकों से सामान्य करना होगा. वरना, बेरोजगारी और भूखमरी कोरोना से बड़ी संकट बन सकती है.

– सिर्फ सरकार को नहीं बल्कि समाज के हर व्यक्ति को जागरूक होना होगा. यदि उनमें ऐसे कोई भी लक्षण दिखते हैं तो दूसरों के संपर्क में आने से बचना होगा. और फौरन इसकी सूचना सरकार या स्वास्थ्य विभाग को देनी होगी.

– खांसी या हल्के ठंडे वाले लक्षणों के कारण काम में बाधा नहीं होना चाहिए. कोरोना कहर के दौरान ऐसा देखा गया सामान्य लक्षणों वाले मरीज के कारण भी काम को कई जगह ठप कर दिया गया.

– हमें वर्क नेचर में काफी बदलाव करने की जरूरत है. वर्क फ्रॉम होम को प्राथमिकता देनी होगी. जहां इससे काम चल जाए इसे ही अपनाना सही होगा. बाकि मैनूफैक्चरिंग यूनिट्स में कुछ लोगों को रोस्टर के तहत काम करवाना होगा. जिसमें सोशल डिस्टेंसिंग फॉलो किया जा सके.

– कई कॉलेज संस्थान और स्कूलों में भी ऑनलाइन पढ़ाई की व्यवस्था पर जोड़ देना होगा.

– कंपनियों को शिफ्ट के अनुसार कर्मियों से कार्य लेना होगा ताकि कार्यालय कैंपस का भी यूज हो सके.

– इन सब के अलावा स्वास्थ्य सेवा पर सारा फोकस होना चाहिए. नेता के तर्क-वितर्क हो या चुनाव की घोषणा पत्र, सबमें स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा मुद्दा होना चाहिए.

– परीक्षण और संपर्क ट्रेसिंग का बड़ा अभियान चलाना होगा. ताकि घर-घर तक जांच की व्यवस्था हो सके.

– इसके लिए मॉनिटरिंग और ट्रेसिंग और जांच का बड़े पैमाने पर विभाग या मंत्रालय बना कर कार्य करना होगा.

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इसके अलावा लॉकडाउन के बाद ये भी बदलाव आ सकता है

– ऑनलाइन होम डिलेवरी करने वाले बिजनेस का डिमांड बढ़ सकता है

– मास्क और ग्ल्वस हमारे ड्रेस का हिस्सा बन जाएगा

– लोग एक दूसरे को पहले की तरह घर बुलाना नहीं चाहेंगे

– बैठकें या अड्डेबाजी करना अपराध के श्रेणी में आ सकता है

– हो सकता है कि ब्लॉकबस्टर मूवी भी सिनेमा हॉल के बदले आपके मोबाइल पर रिलीज हो

– अगर लोग घर से बैठकर काम निपटाने लगें तो जमीन-जायदाद जैसे कमर्शियल बिल्डिंग या रेन्ट के दाम में भी कमी हो सकती है

– जिस तरह शुद्धि के लिए गंगाजल का छीड़काव होता है उसी तरह सैनिटाइजर का उपयोग करने वाले लोगों को ही शुद्ध और स्वच्छ माना जाएगा

– आदमी कोरोना का स्लीपर सेल बनकर रह जाएगा. थर्मल स्कैनर से स्कैन किए बिना कहीं आने जाने की इजाजत नहीं होगी

– दुनिया भर में क्वारेंटाइन करवाना एक बिजनेस के तौर पर उभर सकता है, इसके लिए रूम भाड़े पर दिए जाने लगेंगे.

Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.

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