झारखंड के लोग भी तेजी से डायबिटीज की चपेट में आ रहे हैं. इसका मुख्य कारण है खराब जीवनशैली. सुबह में देर से उठना, तेल-मसालों से युक्त भोजन व जंक फूड का सेवन अधिक करना. वर्तमान में इन आदतों के कारण युवा भी तेजी से मधुमेह के शिकार हो रहे हैं, जो चिंता का कारण है.
राज्य के विशेषज्ञ डॉक्टरों की मानें, तो शहरी क्षेत्र में करीब 15 फीसदी और ग्रामीण क्षेत्र में पांच से सात फीसदी की दर से डायबिटीज अपना पैर पसार रहा है. ऐसे में बेहतर जीवनशैली, अच्छा खानपान और योग-व्यायाम के जरिये मधुमेह जैसे जटिल रोग पर जीत दर्ज कर सकते हैं.
वहीं, पीड़ित मरीजों को समय पर दवा उपलब्ध हो, इसके लिए इस साल (वर्ष 2021) का थीम- डायबिटीज केयर तक पहुंच : यदि अभी नहीं, तो कब? रखा गया है. डायबिटीज के मरीजों को समय पर इलाज मिल सके, इसके लिए अलग अस्पताल की जरूरत महसूस की जा रही है.
विशेषज्ञों के अनुसार, रांची जिले की आबादी लगभग 25 लाख है, जिसमें शहरी और ग्रामीण इलाकों में लोग निवास करते हैं. रांची की कुल आबादी के करीब 10 फीसदी लोग डायबिटीज से पीड़ित हैं. पांच फीसदी ऐसे भी हैं, जिनको यह नहीं पता है कि उनको डायबिटीज है. रांची में डायबिटीज रोगियों की इतनी बड़ी संख्या के बावजूद मुश्किल से एक दर्जन विशेषज्ञ हैं. हालांकि, कुछ फिजिसियन भी इसका इलाज करते हैं. वहीं, नर्स और पारा मेडिकल स्टाफ भी इसके लिए प्रशिक्षित नहीं हैं.
कोरोना काल में डायबिटीज का खतरा बढ़ा है. क्योंकि, दवाओं के अधिक इस्तेमाल से कोरोना संक्रमितों का शुगर लेवल अनियंत्रित हो गया है. यही वजह है कि डायबिटीज के नये मरीज बढ़े हैं. इसके अलावा वर्क फॉर होम और फूड हैबिट बढ़ने से प्री-डायबिटीक के मरीज सामने आये हैं.
रिसर्च सोसाइटी फॉर द स्टडी आॅफ डायबिटीज इंडिया (आरएसएसडीआइ) ने झारखंड के हर जिला में डिस्ट्रिक कोऑर्डिनेटर बनाया है. इसकी मॉनिटरिंग डायबिटीज विशेषज्ञ करते हैं. जिला कोऑर्डिनेटर को अगर ऐसा लगता है कि मरीज गरीब है और उसको इंसुलिन की जरूरत है, तो उसको एसोसिएशन द्वारा दवा उपलब्ध करायी जायेगी.
सर फ्रेडरिक बैंटिंग के जन्मदिन के रूप में इस दिवस को मनाया जाता है. उन्होंने वर्ष 1922 में इंसुलिन की खोज की थी. डायबिटीज मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन (आइडीएफ) द्वारा डायबिटीज रोग के प्रति लोगों में जागरूकता लाने के लिए हर साल 14 नवंबर वर्ल्ड ‘डायबिटीज डे‘ मनाया जाता है. वर्ल्ड डायबिटीज डे का एक थीम तैयार किया जाता है, जिसके माध्यम से लोगों को जागरूक किया जाता है.
झारखंड में डायबिटीज (शुगर) की बढ़ती समस्या के बावजूद राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में अलग से डायबिटीज का विभाग नहीं है. डायबिटीज के मरीजों का इलाज मेडिसिन विभाग के डॉक्टरों द्वारा किया जाता है. मरीज मेडिसिन विभाग के आेपीडी में परामर्श लेते हैं. वहीं बच्चों में डायबिटीज की बीमारी का इलाज शिशु विभाग के डॉक्टरों द्वारा किया जाता है. रिम्स द्वारा सुपर स्पेशियालिटी ओपीडी का शिड्यूल तैयार किया गया था, जिसमें डायबिटीज की बीमारी के लिए मेडिसिन के कुछ डॉक्टरों को जिम्मेदारी दी गयी थी, लेकिन इसका लाभ मरीजों को नहीं मिलता है.
टाइप वन डायबिटीज को किशोरावस्था का डायबिटीज कहा जाता है. यह जन्मजात बीमारी होती है. टाइप वन डायबिटीज में शरीर इंसुलिन बनाना बंद कर देता है. इसलिए इसको डिजीज कहा जाता है. आइडीएफ की वर्ष 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में सबसे ज्यादा मरीज टाइप वन डायबिटीज के हैं. ऐसे मरीज को जीवन के लिए इंसुलिन की जरूरत पड़ती है. टाइप वन डायबिटीज के मरीजों की उम्र सीमा कम हो जाती है. ऐसे में बच्चों को बचाने और उनकी उम्र को बढ़ाने के लिए इंसुलिन की उपलब्धता जरूरी है.
डायबिटीज की बीमारी भारत में तेजी से बढ़ी है. सबसे ज्यादा टाइप वन डायबिटीज के मरीज बढ़ रहे हैं, जिनको इंसुलिन की जरूरत पड़ती है. झारखंड के शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में डायबिटीज के मरीज बढ़े हैं. रांची में कुल आबादी के 10 फीसदी लोग डायबिटीज से पीड़ित हैं, लेकिन इलाज के लिए पर्याप्त डॉक्टर नहीं हैं. डायबिटीज के मरीजों को समय पर इलाज की जरूर है.
डॉ विनय कुमार ढनढनिया, डायबिटीज विशेषज्ञ
Posted by: Pritish Sahay
Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.